सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट को बताया मौलिक अधिकार, जम्मू-कश्मीर में लगी पाबंदियों की समीक्षा का आदेश
क्या है खबर?
अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट और अन्य सेवाओं पर लगी पाबंदियों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए शुक्रवार कोॆ सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत एक मौलिक अधिकार बताया।
कोर्ट ने इंटरनेट और अन्य सेवाओं पर अनिश्चितकालीन रोक को अनुचित बताते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन को एक हफ्ते के अंदर राज्य में लगी सभी पाबंदियों की समीक्षा करने का आदेश दिया है।
आदेश
कोर्ट ने कहा, सुरक्षा और मानवाधिकारों में संतुलन बनाने की करेंगे कोशिश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि स्वतंत्रता और सुरक्षा हमेशा एक-दूसरे के आमने-सामने रहती हैं और नागरिकों को सारे अधिकार और सुरक्षा मिले ये सुनिश्चित करना कोर्ट का काम है।
कोर्ट ने कहा, "कश्मीर में हमने बहुत हिंसा देखी है। हम सुरक्षा के मसले को मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के साथ संतुलित करने की पूरी कोशिश करेंगे। हम इन आदेशों के पीछे के राजनीतिक इरादों पर चर्चा नहीं करेंगे।"
मौलिक अधिकार
"अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत इंटरनेट एक मौलिक अधिकार"
न्यायाधीश एनवी रमणा, आर सुभाष रेड़्डी और बीआर गवाई की सुप्रीम कोर्ट ने बेंच ने अपने फैसले में आगे कहा, "इसमें कोई शक नहीं है कि अभिव्यक्ति की आजादी एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक आवश्यक चीज है। इंटरनेट के उपयोग की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की आजादी के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत एक मौलिक अधिकार है। इसलिए इटंरनेट पर पाबंदियों को अनुच्छेद 19(2) के तहत आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना होगा।"
आदेश
बेंच ने कहा, मनमाने तरीके से नहीं लगाया जा सकता मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि शक्तियों के मनमाने उपयोग के जरिए मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट और अन्य सेवाओं पर एक निश्चित समय के लिए ही प्रतिबंध लगाया जा सकता है और ये न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
इसके बाद कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को एक हफ्ते के अंदर राज्य में लगी सभी तरह की पाबंदियों की समीक्षा करने का आदेश दिया।
पाबंदियां
क्यों लगी हुई हैं जम्मू-कश्मीर में पाबंदियां?
दरअसल, केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिए अनुच्छेद 370 में बदलाव करते हुए जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया था।
इसके अलावा राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, में बांटने का फैसला भी लिया गया था।
फैसले के खिलाफ विरोध की संभावना को देखते हुए राज्य में इंटरनेट, केबल टीवी और मोबाइल सेवाओं पर रोक समेत तमाम तरह की पाबंदियां लगाईं गईं थीं।
इंटरनेट पर प्रतिबंध
कई पाबंदियां हटीं, लेकिन इंटरनेट पर रोक बरकरार
सरकार ने धीरे-धीरे चरणों में इन पाबंदियों को हटाया, लेकिन इंटरनेट पर पाबंदी अभी भी लगी हुई है।
इसके खिलाफ 'कश्मीर टाइम्स' अखबार की एडिटर अनुराधा भसीन और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद समेत तमाम लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं।
याचिकाकर्ताओं ने इन पाबंदियों को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आजादी से घूमने के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया था।
जानकारी
केंद्र सरकार ने पाबंदियों के लिए दिया राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला
वहीं सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि CrPC की धारा 144 के तहत ये पाबंदियां लगाई गई हैं। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इन पाबंदियों को सही ठहराया था।