सरकार की नीतियों के खिलाफ 8 जनवरी को भारत बंद, करोड़ों लोग ले सकते हैं हिस्सा
क्या है खबर?
मोदी सरकार की "जन विरोधी नीतियों" के खिलाफ 10 ट्रेड यूनियनों ने 8 जनवरी को भारत बंद बुलाया है।
यूनियनों ने सोमवार को अपने बयान में कहा कि लगभग 25 करोड़ लोग इस देशव्यापी हड़ताल में शामिल होंगे।
गौरतलब है कि ये हड़ताल ऐसे समय पर होने जा रही है जब मोदी सरकार पहले से ही नागरिकता कानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (NRC) के खिलाफ देशभर में हो रहे प्रदर्शनों से जूझ रही है।
भारत बंद
सितंबर में लिया था भारत बंद का प्रण
जिन ट्रेड यूनियनों ने ये भारत बंद बुलाया है उनमें INTUC, AITUC, HMS, CITU, AIUTUC, TUCC, SEWA, AICCTU, LPF और UTUC शामिल हैं।
इन यूनियनों ने अन्य स्वतंत्र संघों और संस्थाओं के साथ मिलकर पिछले साल सितंबर में 8 जनवरी को देशव्यापी हड़ताल पर जाने का प्रण लिया था।
छात्रों के 60 संगठन और कुछ यूनिवर्सिटीज के चुने गए पदाधिकारियों ने भी हड़ताल में शामिल होने का फैसला लिया है।
बयान
यूनियनों ने कहा, मजदूरों के प्रति सरकार का रवैया तिरस्कार वाला
इन यूनियनों ने अपने साझा बयान में कहा है कि उन्हें कम से कम 25 करोड़ कामकाजी लोगों के इस हड़ताल में शामिल होने की उम्मीद है।
इसमें कहा गया है, "श्रम मंत्रालय कामगारों की किसी भी मांग लेकर आश्वस्त करने में नाकाम रहा है, जिन्होंने 2 जनवरी 2020 को एक बैठक बुलाई थी। जैसा कि हम सरकार की नीतियों और कार्यों से समझते हैं, मजूदरों के प्रति उसका रवैया तिरस्कार वाला है।"
फैसले
सरकार के इन फैसलों से भी नाखुश हैं यूनियनें
यूनियनों ने जुलाई 2015 के बाद कोई भी भारतीय मजदूर सम्मेलन न होने, श्रम कानूनों के संहिताकरण और सार्वजनिक कंपनियों के निजीकरण पर नाखुशी व्यक्त की।
उनके अनुसार, "12 एयरपोर्ट्स को पहले ही निजी हाथों को बेच दिया गया है। एयर इंडिया की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी और BPCL को बेचने पर भी फैसला लिया जा चुका है। BSNL-MTNL के विलय की घोषणा हो चुकी है और VRS के तहत में 93,600 टेलीकॉम कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा चुका है।"
जानकारी
JNU में हुई हिंसा की निंदा की
यूनियनों ने अपने बयान में रविवार को JNU में हुई हिंसा और अन्य यूनिवर्सिटीज में हुई ऐसी ही घटनाओं की निंदा की और पूरे देश के छात्रों और शिक्षकों के अपनी एकजुटता का प्रदर्शन किया।
समर्थन
175 किसान और कृषि मजदूर यूनियन भी देंगी हड़ताल को समर्थन
यूनियनें रेलवे के निजीकरण, 49 रक्षा उत्पादन इकाइयों के निगमीकरण और बैंकों के जबरदस्ती विलय के भी खिलाफ हैं।
उनके इस भारत बंद को किसान और कृषि मजदूरों की 175 यूनियनें भी बाहर से समर्थन देंगी और 8 जनवरी को अपनी मांगों के साथ ग्रामीण भारत बंद का आयोजन करेंगीं।
नागरिकता कानून-NRC के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों के बीच ये भारत बंद केंद्र सरकार के लिए नई सिरदर्दी बन सकता है।