11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पोषण मापदंडों पर खरा नहीं उतरता मिड डे मील
देश के 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मिड डे मील के दौरान दिए जाने वाला खाना पोषण मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास (WCD) मंत्रालय ने पिछले साल नवंबर में एक सर्वे किया था जिसमें इन राज्यों में पोषण मापदंडों का पालन नहीं किए जाने की बात सामने आई है। सर्वे में मिड डे मील के दौरान दिए जाने वाले खाने के करीब आधे सैंपल पोषण मापदंडों पर फेल हो गए।
162 में से 79 नमूने हुए मापदंडों पर फेल
सर्वे में अलग-अलग इलाकों से मिड डे मील के 162 नमूने लिए गए। इन इलाकों में लगभग 2.8 करोड़ बच्चों को ये खाना खिलाया जाता था। इन 162 नमूनों में से 79 अनुपूरक पोषण कार्यक्रम (SNP) के अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किए गए मापदंडों पर खरे नहीं उतरे। एक अधिकारी के अनुसार, सितंबर में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में बच्चों को मिडे मील में नमक के साथ रोटी दिए जाने की घटना के बाद ये सर्वे कराया गया था।
क्या है बच्चों को मिलने वाले खाने में पोषण का मापदंड?
SNP में बच्चों को तीन श्रेणियों में बांटकर उनके लिए अलग-अलग पोषण के मापदंड निर्धारित किए गए हैं। छह महीने से तीन साल तक के बच्चों का टेक-होम राशन और तीन से छह साल के बच्चों के सुबह के नाश्ते और भोजन में कम से कम 500 किलो कैलोरी और 12-15 ग्राम प्रोटीन होनी चाहिए। वहीं छह महीने से छह साल तक के कुपोषित बच्चों के लिए पोषण की मात्रा 800 किलो कैलोरी और 20-25 ग्राम प्रोटीन होनी चाहिए।
एक मील पर राज्यों को खर्च करने होते हैं इतने रुपये
SNP के अनुसार, राज्य सरकारों को छह महीने से छह साल तक के बच्चों के एक मील पर कम से कम आठ रुपये खर्च करने होते हैं। वहीं इसी आयु वर्ग के कुपोषित बच्चों के एक मील पर 12 रुपये खर्च करने होते हैं।
इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लिए गए थे नमूने
जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से मिड डे मील के नमूने लिए गए उनमें दिल्ली, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, पंजाब, छत्तीसगढ़, चंडीगढ़, अरुणाचल प्रदेश, अंडमान और निकोबार और मेघालय शामिल थे। केंद्र सरकार की एक टीम ने इन नमूनों की जांच की थी और ज्यादातर कैलोरी और प्रोटीन के निर्धारित मापदंडों पर खरे नहीं उतरे। 14 नवंबर को बाल दिवस के मौके पर WCD मंत्रालय ने राज्यों के साथ इस सर्वे के नतीजों को लेकर बातचीत भी की।
केंद्र सरकार ने राज्यों को कमियां दूर करने को कहा
इस सर्वे के बाद केंद्र सरकार ने इन राज्यों को ये कमियां दूर करने के लिए उचित इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने सहित कई निर्देश दिए। इन निर्देशों पर काम की स्टेटस रिपोर्ट जानने के लिए इस साल मार्च में समीक्षा बैठक होगी।
क्या है मिड डे मील योजना?
बता दें कि मिड-डे मील केंद्र सरकार की एक अहम योजना है और इसमें स्कूली बच्चों को दोपहर का खाना दिया जाता है। मिड-डे मील योजना के तहत स्कूली बच्चों को कम से कम 200 दिन खाना देना अनिवार्य है। योजना के तहत बच्चों को मिलने वाले खाना (मिड डे मील मैन्यू) तय करते समय SNP द्वारा निर्धारित पोषण के मापदंडों का ख्याल रखा जाता है। हर दिन का खाना इसी के हिसाब से तय होता है।
लगातार सामने आते रहते हैं मिड डे मील में लापरवाही के मामले
हालांकि योजना के दौरान अक्सर लापरवाहियों और घोटालों की खबरें आती रहती हैं। सितंबर में मिर्जापुर में बच्चों को नमक के साथ रोटी दिए जाने की घटना के बाद दिसंबर में मुजफ्फरनगर में मिड डे मील में मरा हुआ चूहा मिलने का मामला भी सामने आया था। इससे पहले नवंबर में सोनभद्र के एक सरकारी स्कूल में मिड डे मील में एक लीटर दूध में एक बाल्टी पानी मिलाने का वीडियो भी सामने आया था।