सुप्रीम कोर्ट का आदेश, अपनी और हाथियों की मूर्तियों पर खर्च हुए पैसे वापस लौटाएं मायावती
आपको मायावती के राज में बनाई गई उनकी और हाथियों की मूर्तियां तो याद ही होंगी, जिन्हें लेकर खूब विवाद हुआ था। इन मूर्तियों और पार्कों पर मायावती ने करोड़ों रूपए खर्च किए थे। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मायावती और बहुजन समाज पार्टी को मूर्तियों पर आए खर्चे को लौटाना चाहिए। लोकसभा चुनाव से पहले यह टिप्पणी मायावती की महंगी जीवनशैली और फिजूलखर्ची को एक बार फिर चर्चा में ला सकती है।
'सरकारी खजाने में जमा कराएं पैसे'
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट 2009 में रविकांत और अन्य लोगों द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि मायावती ने अपनी और हाथियों की मूर्तियों में जनता का जिनता पैसा खर्च किया है, वह उन्हें लौटाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने मायावती के वकील से कहा कि अपने मुवक्किल से कहें कि वह मूर्तियों पर खर्च हुए पैसों को सरकारी खजाने में जमा कराएं।
सरकारी खर्चे से हुआ था पार्कों का निर्माण
सुप्रीम कोर्ट इससे पहले 2015 में भी यूपी सरकार से पार्कों और मूर्तियों पर हुए खर्चे की जानकारी मांग चुका है। मामले की अगली सुनवाई 2 अप्रैल को होगी। बता दें कि मायावती ने अपने कार्यकाल के दौरान सरकारी खर्चे से कई पार्कों का निर्माण कराया था। इन पार्कों में बसपा संस्थापक कांशीराम, मायावती और हाथियों की मूर्तियां लगवाई गई थीं। हाथी बसपा का चुनाव चिन्ह है। इसके अलावा कई अन्य दलित प्रतीकों की मूर्तियां भी लगाई गईं थी।
लगभग 6,000 करोड़ हुए थे खर्च
बाद में अखिलेश सरकार के दौरान लखनऊ विकास प्राधिरकरण (LDA) की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि लखनऊ, नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बनाए गए इन पार्कों पर कुल 5,919 करोड़ रुपए का खर्चा आया था। रिपोर्ट के अनुसार, नोएडा के दलित प्रेरणा स्थल पर हाथी की 30 पत्थर और 22 कांसे की मूर्तियां लगवाई गईं थी, जिस पर तकरीबन 685 करोड़ का खर्च आया था। पार्कों के रखरखाव के लिए 5,634 कर्मचारियों को भी बहाल किया गया था।
अखिलेश ने खूब उठाया था मुद्दा
विरोधी मूर्तियों पर आए भारी खर्चे को लेकर सवाल उठाते रहे हैं और यह मायावती के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा रहा है। यूपी 2012 विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। वह मूर्तियों को मायावती के 'दौलत के प्रति प्रेम' का प्रतीक बताते हैं। तब इसके खिलाफ आवाज उठाने वाले अखिलेश का अब मायावती के साथ गठबंधन है। अखिलेश भले ही इस पर शांत रहें, लेकिन भाजपा मौके को भुनाने में कसर नहीं छोड़ेगी।