क्या था गेस्टहाउस कांड, जिसके बाद सपा से नफरत करने लगी थीं मायावती?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में आज एक बार फिर दो बड़ी राजनीतिक ताकतें साथ आ रही हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच आज गठबंधन का ऐलान होने वाला है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती, संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करेंगे। दोनों पार्टियां के बीच लगभग 24 साल पहले हुए गेस्ट हाउस कांड के बाद दूरियां बढ़ी थी। आइये जानते हैं कि यह गेस्ट हाउस कांड क्या था?
साल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण चरम पर था। 1993 में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। इन चुनावों में सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली थीं। दोनों पार्टियों ने गठबंधन कर सरकार बनाई। हालांकि, दोनों के बीच यह गठबंधन ज्यादा दिन नहीं चला और बसपा ने सरकार से अपना समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। इससे मुलायम सिंह की सरकार गिर गई।
तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार को मायावती ने बाहर से समर्थन दिया था। इस दौरान भाजपा ने तत्कालीन राज्यपाल को चिट्ठी सौंपी कि अगर बसपा सरकार बनाने की कोशिश करे तो भाजपा उसे समर्थन देने को तैयार है।
यह 2 जून, 1995 का दिन था। मायावती ने सपा से अपना समर्थन लेने का फैसला लेने के बाद लखनऊ के गेस्ट हाउस में अपने विधायकों की बैठक बुलाई। उधर सपा कार्यकर्ताओं को इस बात की भनक लग गई कि मायावती इस बैठक में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की रणनीति बनाएगी। कुछ ही देर में वहां सैंकड़ों सपा कार्यकर्ता जमा हो गए और उन्होंने बैठक में खलल डालना और बसपा कार्यकर्ताओं से मार-पीट शुरू कर दी।
मारपीट और हुड़दंग को देखकर मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। सपा कार्यकर्ता इस कमरे के दरवाजे पीट रहे थे। कमरे में मायावती के साथ बंद अन्य लोगों ने सोफा और मेज लगाकर दरवाजे को खुलने से बचाया। बीबीसी के मुताबिक, इस दौरान बसपा के नेता पुलिस अधिकारियों को फोन लगाते रहे, लेकिन किसी ने भी इन नेताओं के फोन नहीं उठाये। बसपा ने आरोप लगाया कि भीड़ मायावती को मारने की कोशिश कर रही थी।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश में DGP ओपी सिंह लखनऊ के SSP थे। घटना के वक्त वे घटनास्थल पर मौजूद थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने इस घटना को रोकने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए। इसके दो दिन बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था।
इस कांड के अगले दिन 3 जून, 1995 को मायावती ने भाजपा के साथ मिलकर राज्य की सत्ता संभाल ली। इसके साथ ही सपा और बसपा के बीच ऐसी दूरियां आईं जो अब लगभग 24 साल तक चलीं। बताया जाता है कि मायावती का मानना है कि इस कांड में उनकी जान लेने की कोशिश की गई थी, ताकि बसपा को खत्म किया जा सके। इसके बाद दोनों पार्टियां हर चुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरीं।
गेस्टकांड के बाद रिश्तों में आई तल्खी को भूलाकर आज मायावती और अखिलेश यादव दोनों संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करेंगे। दोनों पार्टियां लोकसभा चुनावों में भाजपा को रोकने के लिए एक साथ आ रही हैं। इससे पहले गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन तब बड़े नेता एक साथ नहीं दिखे थे। इसलिए कहा जाता है कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त और दुश्मन नहीं होता है।