अखिलेश-मायावती का गठबंधन भाजपा के लिए कितना बड़ा खतरा, देखें विश्लेषण
क्या है खबर?
मायावती और अखिलेश यादव ने आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच गठबंधन का ऐलान कर दिया है।
बुआ और भतीजे की इस जोड़ी को यूपी में भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है।
2014 लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 में से 71 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए यह जोड़ी इस बार बड़ा खतरा पैदा कर सकती है।
गठबंधन की नींव
उपचुनाव से मिला गठबंधन का पहला संकेत
अखिलेश और मायावती के बीच गठबंधन की संभावनाओं का पहला संकेत यूपी के उपचुनावों से आया था।
लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमटने के बाद मायावती ने उपचुनाव न लड़ने का फैसला लिया था।
चुनाव में भाजपा को अपने गढ़ गोरखपुर में ही हार का सामना करना पड़ा था। फूलपुर, कैराना और नूरपुर की सीटों पर भी उसे हार मिली।
उपचुनाव के परिणामों से यह सिद्ध हुआ कि अगर दोनों साथ मिलकर लड़ें तो भाजपा को चुनौती दे सकते हैं।
कड़ी टक्कर
क्या कहते हैं 2014 लोकसभा चुनाव के आंकड़े?
मोदी लहर और अमित शाह की चाणक्य नीति के बलबूते भाजपा ने यूपी में 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन तब भी सपा और बसपा का वोट प्रतिशत अच्छा रहा था।
चुनाव में सपा और बसपा को मिलाकर 41.80 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा का वोट प्रतिशत 42.30 रहा था। यानि दोनों के वोट प्रतिशत में ज्यादा अंतर नहीं था।
इन आंकड़ों के हिसाब से देखें तो यह गठबंधन भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकता है।
जाति का गणित
यूपी का जातीय समीकरण
यूपी में चुनाव जीतने के लिए जातीय समीकरण को साधना अहम होता है। भाजपा ने 2014 में यह काम बखूबी किया था।
यूपी में कुल 12 प्रतिशत यादव, 22 प्रतिशत दलित और 18 प्रतिशत मुस्लिम हैं।
सपा-बसपा के गठबंधन का निशाना यही 52 प्रतिशत वोट शेयर है।
आंकड़ों से साफ होता है कि अगर भाजपा को 2014 का अपना करिश्मा दोहराना है तो उसे इन दोनों दलों के मूल वोटबैंक में सेंध मारनी होगी।
मोदी-शाह का भरोसा
कैसे करेगी भाजपा यह मुश्किल काम?
मोदी के चेहरे और शाह की रणनीति के बलबूते भाजपा गठबंधन को छका सकती है।
सपा और बसपा के कार्यकर्ताओं में चला आ रहा छत्तीस का आंकड़ा उसका काम आसान कर सकता है।
यादवों और जाटवों के बीच टकराव दोनों के वोट एक-दूसरे को जाने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है।
वहीं, गठबंधन के कई नेताओं को अपना टिकट गंवाना पड़ेगा। ऐसे नाराज नेताओं और उनके समर्थकों को अपने पाले में ले भाजपा गठबंधन को धूल चटा सकती है।