महाराष्ट्र: पहली बार आमने-सामने नहीं हैं भाजपा और शिवसेना, पढ़ें 30 साल की "दोस्ती" का इतिहास
क्या है खबर?
महाराष्ट्र की जनता ने हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना गठबंधन को पूर्ण बहुमत देकर सरकार बनाने का आदेश दिया था, लेकिन दोनों में अब तक सरकार के गठन पर सहमति नहीं बनी है।
दोनों पार्टियां मुख्यमंत्री पद और अहम मंत्रालयों को लेकर आमने-सामने हैं।
लेकिन ये पहली बार नहीं है जब महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच तनाव है। 30 साल के उनके इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं।
आइए आपको उनके इसी साथ का इतिहास बताते हैं।
गठबंधन की शुरूआत
1989 लोकसभा चुनाव से पहले आए पहली बार साथ
महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के रिश्तों की शुरूआत 1989 लोकसभा चुनाव से पहले हुई थी और दोनों ने पहली बार हिंदुत्व के मुद्दे पर गठबंधन किया था।
तब राज्य में भाजपा का कोई आधार नहीं था और वो शिवसेना पर निर्भर थी।
वहीं शिवसेना कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने के लिए भाजपा की हिंदुत्ववादी छवि का फायदा उठाना चाहती थी।
भाजपा ने राज्य का जिम्मा प्रमोद महाजन को दिया था, जिनके बाल ठाकरे से अच्छे संबंध थे।
सीटों का बंटवारा
राज्य में 'बड़े भाई' की भूमिका में रही शिवसेना
राष्ट्रीय पार्टी होने के कारण 1989 लोकसभा चुनाव में भाजपा शिवसेना से ज्यादा सीटों पर लड़ी।
वहीं राज्य में शिवसेना ही 'बड़े भाई' की भूमिका में रही और अगले साल हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ी।
चुनाव में शिवसेना को 52 और भाजपा को 42 सीटें मिलीं।
दोनों पार्टियों के बहुमत के आंकड़े से कम रहने के बाद उन्हें विपक्ष में बैठना पड़ा और शिवसेना के मनोहर जोशी नेता विपक्ष बने।
महाराष्ट्र में सरकार
1995 विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना ने पहली बार बनाई सरकार
1995 में अगले विधानसभा चुनाव दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस और मार्च 1993 में मुंबई में सिलसिलेवार धम धमाकों की पृष्ठभूमि में हुए।
इस माहौल में भाजपा और शिवसेना धुव्रीकरण करने में कामयाब रहे और शिवसेना को 73 और भाजपा को 65 सीटें मिलीं।
बाल ठाकरे के फॉर्मूले के अनुसार ज्यादा सीट जीतने वाले सहयोगी को मुख्यमंत्री पद मिलना था।
शिवसेना के जोशी मुख्यमंत्री और भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उप मुख्यमंत्री और गृह मंत्री बने।
जानकारी
नीतियों को लेकर लड़ते रहे भाजपा और शिवसेना
भाजपा और शिवसेना ने मिलकर सरकार तो बना ली, लेकिन नीतियों को लेकर दोनों में लगातार लड़ाई होती रही। 1996 में रमेश किनी केस में शिवसेना के उभरते सितारे राज ठाकरे का नाम सामने आने के बाद गठबंधन में और दरार आई।
टकराव बरकरार
तनाव के बावजूद साथ लड़े 1999 विधानसभा चुनाव
रिश्तों में इसी तनाव के बीच भाजपा और शिवसेना 1999 के विधानसभा चुनाव में एक साथ मैदान में उतरीं, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे के उम्मीदवारों को हराने की कोशिश की ताकि खुद ज्यादा सीट जीतकर मुख्यमंत्री पद पर दावा किया जा सके।
नतीजों में शिवसेना को 69 और भाजपा को 56 सीटें मिलीं।
शिवसेना को भरोसा था कि बहुमत के लिए जरूरी आंकड़ा जुटाया जा सकता है, लेकिन भाजपा ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई।
विपक्ष
विपक्ष में बैठकर भी लड़ती रहीं दोनों पार्टियां
भाजपा और शिवसेना में 23 दिन तक बातचीत चली जो असफल रही।
अंत में शरद पवार की NCP ने कांग्रेस के साथ सरकार बना ली और विलासराव देशमुख मुख्यमंत्री बने।
विपक्ष के तौर पर भी भाजपा और शिवसेना में कई मुद्दों पर सहमति नहीं बनी और दोनों में लड़ाई चलती रही।
महाजन के महाराष्ट्र में "शत-प्रतिशत भाजपा" और ठाकरे के "शिवसेना की वजह से कमलाबाई राज्य में फलफूल रही है" नारों ने इसे और बढ़ाया।
जानकारी
2009 में शिवसेना से आगे निकली भाजपा
2004 में भाजपा-शिवसेना को एक बार फिर से विपक्ष में बैठना पड़ा। 2009 में भी उनका हाल अच्छा नहीं रहा, लेकिन इस चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ जब भाजपा (46) की सीटों की संख्या शिवसेना (44) से ज्यादा हो गई।
उलटफेर
मोदी के उभार के बाद पलट गई सारी स्थिति
महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा की स्थिति में सबसे बड़ा बदलाव नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय पटल पर उभार के बाद आया।
मोदी की "हिंदुत्ववादी" छवि के कारण भाजपा को राज्य में जबरदस्त फायदा हुआ, जिसका सीधा असर शिवसेना पर हुआ जो खुद हिंदुत्व की राजनीति में अपने हाथ आजमा रही थी।
2014 लोकसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व में प्रचंड जीत से उत्साहित भाजपा की सीटों के बंटवारे पर शिवसेना से नहीं बनी और दोनों अलग-अलग 2014 विधानसभा चुनाव लड़े।
2014 विधानसभा चुनाव
महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका में आई भाजपा
2014 विधानसभा चुनाव में भाजपा को 126 सीटें मिलीं, जबकि शिवसेना इससे आधी 63 सीटों पर सिमट गई।
इस चुनाव ने भाजपा को राज्य में बड़े भाई के तौर पर स्थापित कर दिया।
शिवसेना पहले तो विपक्ष में बैठी, लेकिन कुछ समय बाद भाजपा की सरकार में शामिल हो गई।
सरकार में शामिल होने के बावजूद शिवसेना किसी विरोधी पार्टी की तरह व्यवहार करती रही और नोटबंदी और राफेल जैसे कई मुद्दों पर भाजपा की आलोचना की।
मौजूदा टकराव
2019 लोकसभा चुनाव के समय किया गया वादा बना भाजपा के गले की हड्डी
इस टकराव और कड़वे होते रिश्तों के बीच दोनों पार्टियां 2017 BMC चुनाव अलग-अलग लड़ीं।
लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में उन्हें साथ आने की जरूरत महसूस हुई और राज्य सरकार में बराबर की हिस्सेदारी के वादे पर दोनों में गठबंधन हुआ।
इसी वादे के तहत शिवसेना अब ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद और अहम मंत्रालय मांग रही है।
वहीं लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के दम पर और मजबूत होकर लौटी भाजपा राज्य में झुकने को तैयार नहीं है।