चुनाव परिणाम के बाद किसकी बनेगी सरकार, संभावित समीकरणों पर एक नजर
ठीक दो दिन बाद लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण का मतदान होगा और इसी के साथ देश के तमाम दिग्गजों की किस्मत EVM में कैद हो जाएगी। वैसे तो चुनाव परिणाम की घोषणा 23 मई को होगी, लेकिन केंद्र शासित भारतीय जनता पार्टी और विपक्षी दलों ने अपने पत्ते पहले से ही सेट कर लिए हैं। परिणाम के बाद क्या समीकरण बन सकते हैं और किस परिस्थिति में किसकी सरकार बन सकती है, आइए इस पर नजर डालते हैं।
अगर भाजपा को मिली 250 के आसपास सीटें
अभी तक किसी भी एक पार्टी को बहुमत मिलने के आसार कम नजर आ रहे हैं। हालांकि, भाजपा के सबसे बड़ी पार्टी के रुप में सामने आने की संभावनाएं हैं, लेकिन वह भी बहुमत से कम के आंकड़े पर अटक सकती है। खुद उसके कई नेता और सहयोगी इस ओर इशारा कर चुके हैं। अगर भाजपा की 230-250 के बीच सीटें आती हैं तो वह आसानी से सहयोगियों के साथ सरकार बना सकती है।
अगर भाजपा की सीटें 200 से कम रहीं
वहीं, अगर भाजपा की सीटें 200 से कम या इसके आसपास रहती हैं और NDA का आंकड़ा भी 250 के आसपास रहता है तो उसके लिए बाहर से समर्थन जुटाना जरा मुश्किल होगा। ऐसे में उसके पास दो विकल्प होंगे कि या तो वह सरकार से बाहर रहें या नरेंद्र मोदी के अलावा किसी अन्य नेता के नेतृत्व में सरकार बनाए। मोदी के प्रभाव को देखते हुए इस समीकरण के बनने की कम ही संभावना है।
क्या पार्टी के लिए प्रधानमंत्री पद त्याग सकते हैं मोदी?
एक स्थिति यह हो सकती है कि खुद मोदी पार्टी हित के लिए प्रधानमंत्री पद से किनारा करें और किसी अन्य नेता को आगे बढ़ाए। हालांकि, उनके पुराने रिकॉर्ड और सत्ता के प्रति 'लगाव' को देखते हुए, यह भी मुश्किल लगता है।
क्या बन सकता है राष्ट्रीय स्तर का गठबंधन?
अगर भाजपा 200 से कम सीट पर सिमटती है तो विपक्षी दलों के पास सरकार बनाने का अच्छा मौका होगा। इस समीकरण में क्षेत्रीय पार्टियों की अहमियत बढ़ जाती है। मायावती और ममता बनर्जी की विपक्षी दलों के किसी भी राष्ट्रीय गठबंधन में अहम भूमिका रहेगी। प्रधानमंत्री पद इन क्षेत्रीय दलों के बीच असहमति का एक बड़ा कारण बन सकता है। इस गठबंधन में कांग्रेस की क्या भूमिका रहेगी, यह बहुत हद तक उसकी सीटों की संख्या पर निर्भर करेगा।
क्या राहुल गांधी बन सकते हैं प्रधानमंत्री?
राहुल प्रधानमंत्री बन पाएंगे, इसकी संभावनाएं बेहद कम दिखती हैं। अगर कांग्रेस की सीट 150 तक आती हैं तो ऐसी संभावनाएं बन सकती हैं। हालांकि, कांग्रेस पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले 100 अधिक सीट जीत पाएगी, इसकी संभावना बेहद कम है। 100 के आसपास सीट आने पर कांग्रेस को भाजपा की सरकार बनाने और किसी क्षेत्रीय नेता के नेतृत्व में सरकार का हिस्सा बनने के बीच में चुनाव करना होगा।
कांग्रेस के समर्थन से ज्यादा नहीं चलतीं सरकारें
कांग्रेस ने 1979 में चौधरी चरण सिंह सरकार से लेकर 1990 में चंद्रशेखर सरकार और 1996-98 में तीसरे मोर्च की 2 सरकारों को बाहरी समर्थन दिया था। हालांकि, हर बार उसने लगभग एक साल के अंतराल में ही अपना समर्थन वापस ले लिया।
क्या गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा तीसरे मोर्चे की सरकार बन सकती है?
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने अपनी कोशिशों से फेडरल फ्रंट यानि तीसरे मोर्चे की अटकलों में भी जान फूंकी है। हालांकि, इस गैर-कांग्रेस गैर-भाजपा मोर्चे के शक्ल लेने के लिए दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के 272 सीटों के बहुमत के आंकड़ों से कम पर सिमटने की जरूरत है। इसकी संभावना बेहद कम नजर आती है। वहीं, राव से मिलने के बाद DMK प्रमुख एमके स्टालिन खुद तीसरे मोर्च की संभावना से इनकार कर चुके हैं।
बुरा है तीसरे मोर्च की सरकारों का ट्रैक रिकॉर्ड
तीसरे मोर्च की सरकारों का ट्रैक रिकॉर्ड कुछ ठीक नहीं रहा है। अब तक जितनी भी तीसरे मोर्चे की सरकारें बनी हैं, सभी को भाजपा या कांग्रेस के बाहरी समर्थन की जरूरत पड़ी है और कोई भी सरकार एक साल से ज्यादा नहीं टिक पाई।