मोदी को तानाशाह नेता बताने वाली ममता कैसे खुद बंगाल में कर रही हैं तानाशाही, जानें
कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के छापे के बाद राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी धरने पर बैठ गई हैं। ममता ने भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री मोदी पर देश में तानाशाही चलाने का आरोप लगाया है। लेकिन मोदी पर तानाशाह होने का आरोप लगाने वाली ममता क्या खुद राज्य में तानाशाह की तरह पेश नहीं आतीं? आइए कुछ उदाहरणों से जानते हैं कि कैसे पश्चिम बंगाल में ममता का राज किसी तानाशाही से कम नहीं है।
विरोधियों के खिलाफ तानाशाही
राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ममता की तानाशाही किसी से छिपी नहीं है। हाल ही का उदाहरण लें तो पहले ममता सरकार ने भाजपा को राज्य में रथ यात्रा करने की इजाजत नहीं दी। इसके बाद सरकार ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हेलिकॉप्टर को उतरने की इजाजत देने से इनकार कर दिया। राजनीतिक कार्यक्रम करना किसी भी पार्टी का राजनीतिक अधिकार है और इसे रोक कर ममता तानाशाही कर रही हैं।
मोदी से CBI ने की थी 9 घंटे पूछताछ
कोलकाता बनाम CBI के हालिया मामले की बात करें तो जिन मोदी पर ममता तानाशाह होने का आरोप लगाती हैं, गुजरात के मुख्यमंत्री होते हुए उनसे CBI ने 9 घंटे पूछताछ की थी। इसके बावजूद राज्य में किसी CBI अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन ममता की पुलिस ने एक पुलिस अधिकारी से पूछताछ की कोशिश के लिए CBI अधिकारियों को हिरासत तक में ले लिया। कह सकते हैं कि इस मामले में वह मोदी से इक्कीस साबित हुईं।
पंचायत चुनाव में विरोधियों को नहीं करने दिया नामांकन
पिछले साल मई में हुए पंचायत चुनावों की बात करें तो तृणमूल कांग्रेस ने बिना लड़े रिकॉर्ड 34 प्रतिशत (20,159 सीट) सीटों पर जीत दर्ज की थी। इन सीटों पर केवल तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों ने नामांकन किया था। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने उनसे हिंसा की और नामांकन भरने ही नहीं दिया। चुनावों में हिंसा और बल के जरिए जीत दर्ज करना कितना लोकतांत्रिक है, यह तो ममता ही बता सकती हैं।
वामदलों के नक्शेकदम पर ममता
वामदलों की जिस बम-बंदूक की राजनीति को उखाड़ कर ममता बंगाल में सत्ता में आई थीं, आज उनकी पार्टी ने भी वही सारे तरीके अपना लिए हैं। विरोधी नेताओं पर हमले आम हैं और उनके घर तक फूंक दिए जाते हैं। पंचायत चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने 52 कार्यकर्ताओं की हत्या का दावा किया था। हिंसा का सबसे बड़ा कारण यह है कि उनकी पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ता वामपंथी दलों से आए हैं और बेहद ही अनुशासनहीन हैं।
किस लोकतंत्र को बचा रही हैं ममता?
विरोधियों की राजनीतिक गतिविधियों पर रोक लगाकर और चुनाव में हिंसा का प्रयोग करके ममता किस तरह 'लोकतंत्र को बचा' रही है, यह समझ से परे है। सत्ता खोने के डर से विरोधियों के खिलाफ हिंसा और चुनाव धांधली के आरोप यह सिद्ध करने के लिए काफी हैं कि जिस लोकतांत्रिक परंपरा को बचाने की दुहाई ममता देती हैं, वह खुद भी उसकी हत्या में बराबर की हिस्सेदार हैं। उनमें तानाशाही के गुण अपने राजनीतिक विरोधियों से कम नहीं हैं।