लालकृष्ण आडवाणी: कराची में RSS कार्यकर्ता से देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने तक का सफर
क्या है खबर?
केंद्र सरकार ने कभी भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए इसकी जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि आडवाणी इस समय के सबसे सम्मानित राजनेताओं में से एक हैं और उनका भारत के विकास में योगदान अविस्मरणीय है। प्रधानमंत्री ने फोन कर आडवाणी को बधाई दी है।
आइए आज आडवाणी के राजनीतिक सफर पर एक नजर डालते हैं।
जन्म
कराची में हुआ आडवाणी का जन्म
लालकृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर, 1927 को सिंध प्रांत (पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने कराची के सेंट पैट्रिक्स स्कूल से पढ़ाई की है।
एक इंटरव्यू में आडवाणी ने कहा था कि उनके दिल में कराची के लिए खास लगाव है। उन्होंने कहा था, "मेरा जन्म कराची में हुआ। मैं वहां स्कूल भी गया। जब 19 साल का था, तब कराची छोड़ दी। उस समय कराची की आबादी 3-4 लाख थी।"
जीवन
अकेले ही पाकिस्तान छोड़ भारत लौटे
1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ उस वक्त आडवाणी पाकिस्तान में थे। वे पहले से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए थे।
सितंबर, 1947 में कराची में एक भीषण बम धमाका हुआ था, जिसका आरोप RSS पर लगाया गया। इस वजह से आडवाणी को अकेले ही पाकिस्तान छोड़ भारत आना पड़ा। करीब एक महीने बाद उनका परिवार पाकिस्तान से लौटा।
इसके बाद अडाणी राजस्थान में संघ का काम करने लगे।
राजनीति
राजनीति में कैसे हुई एंट्री?
जनसंघ की स्थापना के वक्त से ही आडवाणी इसके सचिव रहे। बाद में वे जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे।
अप्रैल, 1970 में आडवाणी पहली बार राज्यसभा पहुंचे। 1989 तक वे 4 बार वे राज्यसभा सदस्य बने। आपातकाल के दौरान आडवाणी ने कुछ वक्त जेल में भी गुजारा।
जब आपातकाल हटा और मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो आडवाणी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया।
सफर
कैसा रहा आडवाणी का राजनीतिक सफर?
1980 में भाजपा की स्थापना के बाद से 1986 तक आडवाणी पार्टी महासचिव रहे। वे 1986 से 1990, 1993 से 1998 और 2004 से 2005 तक भाजपा के अध्यक्ष रहे। आडवाणी के नाम सबसे लंबे समय तक भाजपा अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड है।
1989 में आडवाणी पहली बार लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 5 बार और लोकसभा सांसद चुने गए। उन्होंने देश के गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री का पद भी संभाला है।
रथ यात्रा
रथ यात्रा से मिली राष्ट्रीय पहचान
राम मंदिर आंदोलन के लिए आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली थी। 25 सितंबर, 1990 को शुरू हुई इस यात्रा ने देश की राजनीति में हिंदुत्व को उभारा और आडवाणी की पहचान एक हिंदूवादी नेता के तौर पर बनी।
भाजपा को भी इसका फायदा हुआ और 1991 में हुए चुनावों में पार्टी ने 120 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि, यात्रा पूरी होने से पहले ही आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया था।
करियर
प्रधानमंत्री की रेस में भी शामिल थे आडवाणी
2009 के चुनावों में भाजपा ने आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था, लेकिन पार्टी को हार मिली।
इसके बाद 2014 में दोबारा आडवाणी खुद को प्रधानमंत्री दावेदार करने की कोशिशों में लगे रहे, लेकिन अंत में पार्टी ने मोदी के नाम पर मुहर लगा दी।
2014 में आडवाणी ने आखिरी लोकसभा चुनाव लड़ा था। इसके बाद उन्होंने खुद को राजनीति से दूर कर लिया और पार्टी ने उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया।