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    जानिए कौन हैं संगीत के उस्ताद भूपेन हज़ारिका जिन्‍हें मरणोपरांत मिला भारत रत्‍न

    जानिए कौन हैं संगीत के उस्ताद भूपेन हज़ारिका जिन्‍हें मरणोपरांत मिला भारत रत्‍न

    लेखन मोहम्मद वाहिद
    संपादन Manoj Panchal
    Jan 26, 2019
    05:07 pm

    क्या है खबर?

    सिनेमा, संगीत और कला के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए मशहूर डॉक्टर भूपेन हज़ारिका को भारत रत्‍न दिया जाएगा।

    भूपेन हज़ारिका हमेशा संगीतकार, गायक, अभिनेता और फिल्म निर्देशक के रूप में सक्रिय रहे। समाज के तमाम गंभीर मुद्दों को उन्होंने फिल्मों और संगीत के माध्यम से पेश किया।

    समाज के प्रति उनके समर्पण को देखते हुए केंद्र सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्‍न देने का ऐलान किया है।

    भूपेन हज़ारिका जी का निधन 2011 में हुआ था।

    जीवन परिचय

    भूपेन हज़ारिका के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें

    भूपेन हज़ारिका जी का जन्म असम के तिनसुकिया जिले के सदिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम नीलकांत और माता का नाम शांतिप्रिया था।

    हज़ारिका ने 10 साल की उम्र से ही गीत गाना शुरू कर दिया था। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायन, फिल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया।

    हज़ारिका की असरदार आवाज में जिस किसी ने उनके गीत 'दिल हूम हूम करे' और 'ओ गंगा तू बहती है' को सुना वो उनका फैन हो गया।

    गाने की शुरूआत

    12 साल की उम्र में पहली बार की थी प्लेबैक सिंगिंग

    कहते हैं कि 'पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं'। हज़ारिका पर ये कहावत बिलकुल फिट बैठती है।

    हज़ारिका के संगीत सफर की शुरूआत बचपन में ही हो चुकी थी। 12 साल की उम्र में हज़ारिका ने पहली बार प्लेबैक सिंगिंग की थी।

    असमिया के मशहूर गीतकार और फिल्मकार अगरवाला की 1939 में रिलीज़ हुई फिल्म 'इंद्रमालती' के लिए हज़ारिका ने दो गाने गाए थे। इन दो गानों के बोल थे 'काक्षोते कोलोसी लोई' और 'बिस्वो बिजयी नौजवान'।

    क्या आप जानते हैं?

    13 साल की उम्र में लिखा पहला गीत

    हज़ारिका ने महज़ 13 साल उम्र में अपना पहला गीत खुद लिखा और उसे खुद कंपोज़ किया। यह गीत था 'अग्निजुगोर फिरिंगोती मोई' जिसे खूब सराहना मिली थी। इसके बाद उन्होंने अनेक गाने लिखे और गाए।

    करियर

    2004 में हुए थे भाजपा में शामिल

    भूपेन हज़ारिका केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के सदस्य भी थे। 2003 में उन्हें प्रसार भारती बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया।

    वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के प्रदर्शन से प्रभावित होकर 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे। वह असम विधानसभा के एक स्वतंत्र सदस्य भी थे।

    मई 2017 में, प्रधानमंत्री मोदी ने भूपेन हज़ारिका के नाम पर भारत के सबसे लंबे पुल का नाम रखा।

    सम्मान

    इन पुरस्कारों से सम्मानित किए जा चुके हैं हज़ारिका

    भूपेन हज़ारिका को 1975 में सर्वोत्कृष्ट क्षेत्रीय फिल्म के लिये 'राष्ट्रीय पुरस्कार' और 1992 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।

    इसके बाद उन्हें 2009 में 'असोम रत्न', 'संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड' और 2011 में 'पद्म भूषण' जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

    भूपेन हज़ारिका के गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। उन्होंने अपनी मूल भाषा असमिया के साथ-साथ हिंदी, बंगला समेत कई भारतीय भाषाओं में गाने गाए।

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