भूपेंद्र सिंह चौधरी होंगे उत्तर प्रदेश भाजपा के नए अध्यक्ष, 2024 लोकसभा चुनाव पर निशाना
भूपेंद्र सिंह चौधरी को उत्तर प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। कई दिनों से चली आ रही अटकलबाजी को विराम देते हुए आज भाजपा ने उनके नाम का ऐलान किया। चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय से आते हैं और अभी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। माना जा रहा है कि 2024 लोकसभा चुनाव में जाट वोटबैंक को अपनी तरफ एकजुट करने के मकसद से भाजपा ने ये कदम उठाया है।
कौन हैं भूपेंद्र चौधरी?
1966 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के महेंद्री सिकंदरपुर गांव में एक किसान परिवार में जन्मे भूपेंद्र सिंह चौधरी छात्र जीवन में ही विश्व हिंदू परिषद (VHP) से जुड़े गए थे और वह 1991 में भाजपा में शामिल हुए। वह दो बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं और अभी पंचायती राज विभाग संभाल रहे हैं। इसके अलावा वह भाजपा में भी कई अहम पदों पर अपनी सेवा दे चुके हैं।
2024 लोकसभा चुनाव के नजरिए से बेहद अहम है उत्तर प्रदेश भाजपा प्रमुख का पद
बता दें कि 2024 लोकसभा चुनाव के नजरिए से उत्तर प्रदेश भाजपा प्रमुख का पद बेहद अहम है। राजनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 80 लोकसभा सीटें हैं और यहां अच्छा प्रदर्शन किए बिना केंद्र में सरकार बनाना लगभग असंभव होता है। इसलिए नियुक्ति के बाद चौधरी के कंधों पर एक बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। हालिया समय में जाट भाजपा से नाराज भी रहे हैं, उस लिहाज से भी ये नियुक्ति अहम है।
कई बड़े नामों को पीछे छोड़ अध्यक्ष बने चौधरी
चौधरी ने उत्तर प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनने के लिए कई बड़े नामों को मात दी है। इनमें राज्य के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं। मौर्य ने चार दिन पहले ही एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि संगठन सरकार से बड़ा होता है। उनके इस ट्वीट के बाद ये अटकलें बढ़ गई थीं कि उन्हें भाजपा की राज्य इकाई का प्रमुख बनाया जा सकता है। हालांकि ये अटकलें सही साबित नहीं हुईं।
न्यूजबाट्स प्लस
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट बेहद प्रभावशाली है और कई विधानसभा और लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। किसान आंदोलन के समय जाट भाजपा से नाराज हो गए थे और जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल (RLD) ने इसे भुनाने की कोशिश की थी। हालांकि चुनाव में जाटों ने दोनों पार्टियों को वोट दिया और उनका पलड़ा लगभग बराबर रहा। अन्य जातियों के समर्थन से भाजपा अधिकांश सीटें जीतने में कामयाब रही।