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    #NewsBytesExplainer: राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है और अक्सर विवादों में क्यों रहती है इनकी भूमिका?
    राजनीति

    #NewsBytesExplainer: राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है और अक्सर विवादों में क्यों रहती है इनकी भूमिका?

    लेखन भारत शर्मा
    February 12, 2023 | 09:12 pm 0 मिनट में पढ़ें
    #NewsBytesExplainer: राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है और अक्सर विवादों में क्यों रहती है इनकी भूमिका?
    राज्यों में राज्यपाल की भूमिका के विवादित होने का क्या है कारण?

    राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने रविवार को 12 राज्यों में राज्यपाल और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख में नए उपराज्यपाल की नियुक्ति को मंजूरी दे दी है। इसके साथ उन्होंने महाराष्ट्र में विवादों में रहे राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का इस्तीफा भी स्वीकार कर लिया है। वैसे राज्यों में अमूमन राज्यपालों का भूमिका विवादों में ही रहती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर राज्यपालों की नियुक्ति कैसे होती है और अक्सर उनकी भूमिका विवादों में क्यों रहती है।

    कौन होता है राज्यपाल?

    किसी भी राज्य के प्रमुख को राज्यपाल कहा जाता है। भारतीय संविधान के अनुसार राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी। राज्य में राज्यपाल की स्थिति बिल्कुल वही है, जो केन्द्रीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति की होती है। संविधान के अनुच्छेद 153 में कहा गया है कि प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा। इसी तरह आवश्यकता पड़ने पर एक राज्यपाल को एक से अधिक राज्यों में भी नियुक्त किया जा सकेगा।

    राज्यपाल बनने के लिए आवश्यक योग्यता क्या है?

    अनुच्छेद 157 के अनुसार, राज्यपाल बनने के लिए भारत की नागरिकता और 35 वर्ष की आयु जरूरी है। वह किसी भी सरकारी लाभ के पद पर न हो और राज्य विधानसभा का सदस्य चुने जाने योग्य हो। इसी तरह पागल या दिवालिया घोषित न हो।

    कौन करता है राज्यपाल की नियुक्ति?

    अनुच्छेद 155 के अनुसार, राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित अधिपत्र द्वारा करता है। इसी तरह अनुच्छेद 156 के अनुसार, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त राज्यपाल पद धारण करेगा, लेकिन उसका सामान्य कार्यकाल पांच साल का होगा। हालांकि, राष्ट्रपति पांच साल से पहले उसे पद से हटा भी सकता है। बड़ी बात यह है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करता है। ऐसे में राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त और हटाया जाता है।

    राज्यों में क्या होती है राज्यपाल की भूमिका?

    राज्यपाल की स्थिति राजनीतिक प्रमुख की होती है, जिसे राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है। हालांकि, राज्यपाल को संविधान के तहत कुछ शक्तियां मिली हुई है। इनमें विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक पर सहमति देना या रोकना, किसी पार्टी को बहुमत साबित करने के लिए समय देना, किस पार्टी को बहुमत साबित करने के लिए पहले बुलाना और बहुमत साबित न होने पर मुख्यमंत्री की नियुक्ति करना आदि शामिल है। ये शक्तियां राज्यपाल को महत्वपूर्ण बनाती है।

    राज्यपाल के पास होती हैं ये अन्य शक्तियां 

    अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल के पास क्षमा और कुछ मामलों में सजा के आदेश पर रोक, बदलाव या कम करने की भी शक्ति होती है। हालांकि, सजा माफ करने का निर्णय राज्य सरकार की सलाह पर ही करना होता है। इसी तरह मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति और धन विधेयक को अनुमति, विधानमण्डल के विश्राम काल में अध्यादेश निकालने, राज्य सरकार के किसी भी अनुदान को अनुमति देने की शक्ति भी राज्यपाल के पास होती है।

    राज्यपाल की भूमिका को लेकर कैसे होता है विवाद?

    अमूमन राज्यपाल की भूमिका उन राज्यों में विवाद का कारण बनती है, जहां केंद्र की सत्ता पर काबिज पार्टी के विपक्ष की सरकार होती है। दशकों से देखा जा रहा है कि ऐसी स्थिति में राज्यपाल केंद्र के इशारों पर काम करते हैं और राज्य सरकार उन पर केंद्र के एजेंट के रूप में काम करने का आरोप लगाती है। संविधान में कोई प्रावधान नहीं किया गया है कि राय में अंतर होने पर राज्य और राज्यपाल कैसे एकमत होंगे।

    इन राज्यों में देखा जा चुका है राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच विवाद

    कई राज्यों में राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों के बीच विवाद देखने को मिले हैं। वर्तमान राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल, आरएन रवि को तमिलनाडु, आरिफ मोहम्मद खान को केरल, भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र और राजस्थान और तमिलिसाई सुंदरराजन को तेलंगाना में विवादों का सामना करना पड़ा है। इन सभी राज्यों में गैर भाजपा सरकार है और मुख्यमंत्रियों ने उन पर पक्षतापूर्ण कार्य करने के आरोप लगाए हैं। कई बार तो मामलों में केंद्र को दखल देना पड़ा है।

    आखिर क्या है विवाद का कारण?

    संविधान विशेषज्ञ डॉक्टर फैजान मुस्तफा ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, "राज्यपाल के राजनीतिक नियुक्तियां बनने के कारण राज्यों में विवाद वाली स्थिति पैदा हो रही है। संविधान सभा ने राज्यपाल के अराजनीतिक होने की परिकल्पना की थी, लेकिन वर्तमान समय में राजनेता ही राज्यपाल बन रहे हैं और फिर चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे देते हैं।" उन्होंने कहा, "इस प्रकार की नियुक्तियों के कारण राज्यों में टकराव हो रहा है।"

    "विवाद के लिए जिम्मेदार है संविधान का मूलभूत दोष"

    विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के संवैधानिक विशेषज्ञ आलोक प्रसन्ना ने कहा था, "मुख्यमंत्री लोगों के प्रति जवाबदेह होते हैं, लेकिन राज्यपाल केंद्र के अलावा किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है।" उन्होंने कहा था, "सच्चाई यह है कि संविधान में एक मूलभूत दोष है। वह यह है कि राज्यपाल पर महाभियोग चलाने का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में राज्य और केंद्र के बीच टकराव की स्थिति में केंद्र राजभवन का उपयोग समस्याएं पैदा करने के लिए कर सकता है।"

    किन राज्यों में बदले गए हैं राज्यपाल?

    राष्ट्रपति मुर्मू के आदेश से झारखंड के मौजूदा राज्यपाल रमेश बैस को महाराष्ट्र, लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को सिक्किम, सीपी राधाकृष्णन को झारखंड, गुलाब चंद कटारिया को असम और शिव प्रताप शुक्ला को हिमाचल प्रदेश, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एस अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का नया राज्यपाल नियुक्त किया है। इसी तरह बिहार के राज्यपाल फागु चौहान को मेघालय, हिमाचल से राजेंद्र विश्वनाथ को बिहार, आंध्र प्रदेश से बिस्वा भूषण हरिचंद्रन को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल का कार्यभार सौंपा है।

    अनुसुईया उइकये को अरुणाचल प्रदेश लगाया

    राष्ट्रपति के आदेशों से छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइकये को मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश से बीडी मिश्रा को बतौर उपराज्यपाल लद्दाख लगाया गया है। मिश्रा की जगह लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) केटी पटनायक अब अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल की जिम्मेदारी संभालेंगे।

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