किसान के दिल्ली मार्च से भाजपा और अकाली दल के बीच दोबारा गठबंधन खतरे में?
क्या है खबर?
किसानों के दिल्ली मार्च का असर अब राजनीति पर भी पड़ता दिख रहा है। इस मार्च में ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा के हैं।
खबरें थीं कि लोकसभा चुनाव के लिए पंजाब में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल (SAD) में गठबंधन हो सकता है। हालांकि, अब किसान आंदोलन की वजह से इस संभावित गठबंधन पर बातचीत मुश्किल में पड़ गई है।
SAD किसानों के साथ एकजुटता दिखा रही है तो भाजपा रक्षात्मक रवैया अपना रही है।
नेता
किसानों की मार्च के कारण गठबंधन के विरोध में SAD नेता
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, SAD के ज्यादातर सदस्यों का मानना है कि जब तक किसानों के मुद्दे हल नहीं हो जाते और कृषि आंदोलन समाप्त नहीं हो जाता, तब तक अकाली दल को भाजपा के साथ गठबंधन की संभावना नहीं तलाशनी चाहिए।
एक नेता ने कहा, "पार्टी के 75 प्रतिशत नेताओं का मानना था कि भाजपा के साथ गठबंधन हित में है, लेकिन अब किसान आंदोलन को देखते हुए अकाली दल को गठबंधन से बचना चाहिए।"
किसान
SAD का बड़ा वोट बैंक हैं किसान
किसान समुदाय हमेशा से SAD का बड़ा वोटबैंक रहा है। पार्टी ने किसानों के लिए कई योजनाएं शुरू कीं। ऐसे में भाजपा के साथ गठबंधन से SAD को वोटबैंक के बिखरने का डर है।
एक अकाली नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "हम कृषक समुदाय के प्रतिनिधि हैं। हमें अब बहुत सावधानी से चलना होगा। गठबंधन तो बनते और टूटते रहते हैं, लेकिन हम अपने मूल समर्थन आधार में से एक को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते।"
भाजपा
किसान आंदोलन से भाजपा को पंजाब में नुकसान संभव
मौजूदा किसान आंदोलन को पंजाब में भाजपा के लिए अच्छा नहीं माना जा रहा है। पिछले किसान आंदोलन से भी भाजपा को राज्य में झटका लगा था।
अब पार्टी ग्रामीण पंजाब में पैठ बनाने की कोशिश कर ही रही थी, लेकिन किसान एक बार फिर सड़कों पर हैं।
जानकारों का मानना है कि अगर आंदोलन लंबा चला तो भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा और गठबंधन में उसकी सौदेबाजी की ताकत कम हो सकती है।
गठबंधन
पिछले किसान आंदोलन ने ली थी भाजपा-SAD गठबंधन की बलि
पंजाब में पहले भी भाजपा और SAD का गठबंधन रहा है और दोनों दशकों तक सहयोगी थे।
हालांकि, 2020 में 3 कृषि कानूनों के बाद हुए किसान आंदोलन के कारण SAD ने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया था।
पिछले कुछ सालों में SAD के प्रदर्शन में बड़ी गिरावट आई है। इस वजह से चर्चाएं हैं कि दोनों पार्टियां फिर साथ आ सकती हैं।
2019 लोकसभा चुनाव में गठबंधन में लडने पर SAD और भाजपा को 2-2 सीटें मिली थीं।