आपातकाल पर स्पीकर के बयान पर कांग्रेस ने जताई आपत्ति, बोली- यह संसदीय परंपराओं का मजाक
18वीं लोकसभा के पहले सत्र में स्पीकर ओम बिरला द्वारा आपातकाल के जिक्र को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। कांग्रेस ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए बिरला को पत्र लिखा है। कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि स्पीकर की कुर्सी दलगत राजनीति से ऊपर है और माननीय अध्यक्ष ने राजनीतिक टिप्पणियों के साथ जो कहा, वह संसदीय परंपराओं का उपहास है। कांग्रेस ने कहा कि ऐसी टिप्पणी से बचा जा सकता था।
क्या बोली कांग्रेस?
वेणुगोपाल ने कहा, "मैं यह पत्र संसद की विश्वसनीयता पर असर डालने वाले एक गंभीर मामले के संदर्भ में लिख रहा हूं। 26 जून को लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में आपके चुनाव के समय सदन में सामान्य सौहार्दपूर्ण माहौल था। हालांकि, अध्यक्ष की ओर से आधी सदी पहले आपातकाल की घोषणा के बारे में जो उल्लेख किया गया, वह बेहद चौंकाने वाला है। अध्यक्ष की ओर से इस तरह का राजनीतिक उल्लेख संसद के इतिहास में अभूतपूर्व है।"
कांग्रेस ने मामले पर गहरी चिंता व्यक्त की
वेणुगोपाल ने लिखा, "एक नवनिर्वाचित अध्यक्ष के 'प्रथम कर्तव्यों' में से एक के रूप में सभापति की ओर से यह आना और भी गंभीर हो जाता है। मैं कांग्रेस की ओर से संसदीय परंपराओं के इस उपहास पर गहरी चिंता और पीड़ा व्यक्त करता हूं।"
राहुल गांधी ने की स्पीकर से मुलाकात
इस मामले पर लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने स्पीकर बिरला से मुलाकात की। राहुल ने स्पीकर द्वारा आपातकाल का जिक्र किए जाने पर ये कहते हुए आपत्ति दर्ज कराई कि ये कदम राजनीतिक था और इससे बचा जा सकता था। वेणुगोपाल ने कहा कि यह एक शिष्टाचार मुलाकात थी और इस दौरान राहुल गांधी ने सदन में अध्यक्ष द्वारा आपातकाल का उल्लेख किए जाने का मुद्दा भी उठाया।
स्पीकर ने क्या कहा था?
26 जून को बिरला ने अपने संबोधन में 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लगाए जाने की निंदा की थी। उन्होंने कहा था, "आपातकाल काले अध्याय के रूप में दर्ज है, जब देश में तानाशाही थोपी गई थी, लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया था और अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंट दिया गया था।" स्पीकर द्वारा इस संबंध में निंदा प्रस्ताव लाकर 2 मिनट का मौन भी रखा गया था। इस दौरान संसद में खूब हंगामा हुआ था।
राष्ट्रपति ने भी किया आपातकाल का जिक्र
आज (27 जून) को संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी आपातकाल का जिक्र किया। उन्होंने कहा, "25 जून, 1975 को आपातकाल लागू करना संविधान पर सीधे हमले का सबसे बड़ा और काला अध्याय था। पूरा देश आक्रोशित था। लेकिन देश ऐसी असंवैधानिक ताकतों पर विजयी हुआ, क्योंकि गणतंत्र की परंपराएं भारत के मूल में हैं।" राष्ट्रपति के इस बयान पर भी हंगामा हुआ था।