
महाराष्ट्र थप्पड़कांड पर देवेंद्र फडणवीस बोले- मराठी के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं होगी
क्या है खबर?
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य में मराठी भाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच पहली बार बयान दिया है। उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के कार्यकर्ताओं को चेतावनी देते हुए कहा कि मराठी के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा, "मराठी का सम्मान किया जाना चाहिए, लेकिन किसी की पिटाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।" बता दें कि मुंबई में मराठी नहीं बोलने को लेकर MNS के कार्यकर्ताओं ने एक दुकानदार को थप्पड़ मारे थे।
बयान
फडणवीस बोले- मारपीट करना गलत
फडणवीस ने कहा, "मारपीट करना गलत है। मुंबई में मराठी बोली जानी चाहिए, लेकिन अगर किसी को मराठी नहीं आती, तो उसे पीटना बर्दाश्त नहीं है। हमारे मराठी भाई कई जगहों पर व्यापार करते हैं, अगर उन्हें वहां की भाषा न आए तो क्या उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जाना चाहिए? मराठी को लेकर अभिमान गलत नहीं है, लेकिन गुंडागर्दी हम सहन नहीं करेंगे। जिस प्रकार की घटना हुई है, उसे लेकर FIR दर्ज हुई है और आगे भी होगी।"
मराठी
लोगों से केवल अपील कर सकते, जबरदस्ती नहीं- फडणवीस
मुख्यमंत्री ने कहा, "मुझे हैरानी होती है कि ये लोग अंग्रेजी को गले लगाते हैं और हिंदी पर विवाद करते हैं। अगर कोई मराठी व्यक्ति असम में काम करता है और उसे असम की भाषा नहीं आती, तो क्या उसकी पिटाई होनी चाहिए? मराठी को लेकर अभिमान है, तो मराठी सिखाओ, लोगों को मराठी बोलने के लिए प्रेरित करो, बच्चों को मराठी पढ़ाओ। हम लोगों से मराठी बोलने की अपील कर सकते हैं लेकिन जबरदस्ती नहीं कर सकते।"
मामला
क्या है मराठी को लेकर विवाद
28 जून को MNS के कार्यकर्ताओं ने मुंबई के मीरा रोड पर जोधपुर स्वीट्स के 48 वर्षीय मालिक बाबूलाल चौधरी की मराठी न बोलने को लेकर पिटाई कर दी थी। घटना का वीडियो भी सामने आया था, जिसमें कार्यकर्ता पहले चौधरी को मराठी में बात करने को कहते हैं। जब चौधरी ने कहा कि महाराष्ट्र में सभी भाषाएं बोली जाती हैं तो कार्यकर्ताओं ने उन्हें थप्पड़ मारे। पुलिस ने 7 लोगों को नोटिस जारी किया है।
हिंदी
महाराष्ट्र में हिंदी को लेकर भी चल रहा विवाद
महाराष्ट्र सरकार ने अप्रैल में सभी मराठी और अंग्रेजी स्कूलों में कक्षा पहली से 5वीं तक हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बना दिया था। ये फैसला राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रि-भाषा नीति के अनुरूप लिया गया था। विपक्षी पार्टियों ने इसकी खूब आलोचना की थी। यहां तक कि सालों से अलग रहे चचेरे भाई राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे भी इस मामले पर साथ आ गए थे। विवाद के बाद सरकार ने आदेश वापस ले लिया था।