क्या कहता है कानून, जब वकील किसी व्यक्ति का केस लड़ने से मना कर देते हैं?
क्या है खबर?
बीते महीने कर्नाटक के हुबई बार एसोसिएशन के वकीलों ने देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार युवकों का केस लड़ने से इनकार कर दिया था।
इसके बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने पाया कि बार एसोसिएशन का यह फैसला पूरी तरह गैरकानूनी और अनैतिक है, जिसके बाद बार एसोसिएशन ने अपना फैसला वापस लिया।
आपके मन में भी सवाल उठ रहा होगा कि अगर वकील किसी व्यक्ति का केस लड़ने से मना कर दें तो क्या होता है?
आइए जानें इसका जवाब।
जानकारी
पहले भी सामने आ चुके हैं ऐसे मामले
यह पहली बार नहीं था जब बार एसोसिएशन ने केस लड़ने से मना किया था। पहले भी कही बार ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। यह तब है जब सुप्रीम कोर्ट कई बार ऐसे फैसलों को संविधान और पेशेवर मूल्यों के खिलाफ बता चुका है।
मामला
ऐसे मामलों के लिए संविधान में क्या कहा गया है?
संविधान के अनुच्छेद 22 (1) में यह प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी पसंद के वकील से केस लड़ने से मना नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि भारत में रहने वाले हर व्यक्ति को कानून के समक्ष बराबरी का हक है।
अनुच्छेद 39A में लिखा गया है कि किसी भी व्यक्ति को न्याय के लिए बराबरी से वंचित नहीं किया जा सकता।
संविधान में बराबरी की बात प्रमुखता से की गई है।
सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट का ऐसे फैसलों पर क्या कहना है?
साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने बार एसोसिएशन के केस न लड़ने के प्रस्तावों की वैधानिकता पर सुनवाई की थी।
दरअसल, 2006 में कोयंबटूर में एक पुलिसकर्मी और वकील के बीच झगड़ा हुआ था। इसके बाद वकीलों ने पुलिसकर्मी का केस न लड़ने का प्रस्ताव पारित किया था।
मामला जब मद्रास हाई कोर्ट में पहुंचा तो कोर्ट ने बार के इस फैसले को गैर-पेशेवर बताया था, जिसके बाद वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था यह उदाहरण
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इंग्लैंड के लेखक थॉमस पैन का उदाहरण दिया था। पैन पर 1792 में राजद्रोह का मुकदमा चला था।
प्रिंस ऑफ वेल्स के अटर्नी जनरल थॉमस एर्स्किन जब उनका मुकदमा लड़ने को तैयार हुए तो उन्हें उनके पद से हटाने तक की धमकी दी गई।
तब एर्स्किन ने कहा कि अगर वकील यह तय करने लगे कि क्या सही है और क्या गलत तो वो जज की भूमिका में आ जाते हैं।
सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे प्रस्तावों को बताया था संविधान के खिलाफ
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा, 'हमारे विचार में ऐसे प्रस्ताव बार की परंपराओं और पेशेवर नैतिकता के खिलाफ है। हर व्यक्ति चाहे वह कितना भी कमजोर, पिछड़ा, शातिर या पापी हो, उसे कोर्ट में अपनी बात रखने का हक है और वकील का कर्तव्य है कि वह उसका बचाव करे।'
कोर्ट ने कहा कि ऐसे प्रस्ताव संविधान के मूल्यों के खिलाफ है और ये कानूनी समुदाय का अपमान करता है।
कार्रवाई
क्या ऐसे प्रस्तावों पर वकीलों के खिलाफ कार्रवाई हुई है?
उत्तराखंड के कोटद्वार बार एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पास किया था। इसमें कहा गया था कि अगर कोई वकील एक वकील की हत्या के आरोपी का केस लड़ता है तो उसकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी।
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए राज्य की बार काउंसिल को भविष्य में ऐसे प्रस्ताव लाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया था। ऐसे वकीलों अदालत की अवमानना का भी दोषी माना जा सकता है।