कौन हैं राम जन्मभूमि ट्रस्ट के पहले सदस्य पारासरण?

सुप्रीम कोर्ट के वकील और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल के पारासरण को राम मंदिर निर्माण के लिए बने 'श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' ट्रस्ट का पहला सदस्य बनाया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को इस ट्रस्ट के गठन को मंजूरी दी थी जिसमें 15 सदस्य होंगे। अयोध्या विवाद में रामलला विराजमान की सफल पैरवी कर चुके 92 वर्षीय पारासरण कौन हैं और उनका अब तक का सफर कैसा रहा है, आइए जानते हैं।
पारासरण का जन्म 9 अक्टूबर, 1927 को तमिलनाडु के श्रीरंगम में हुआ था और उन्हें वकालत और धर्म की जानकारी दोनों विरासत में मिलीं। उनके पिता केशव अयंगर वकील और वैदिक विद्वान थे। उन्होंने 1949 में सरोजा से शादी की। सरोजा की 2010 में मौत हो गई। दिलचस्प ये है कि पारासरण के तीनों बेटे, मोहन, सतीश और बालाजी, भी वकील हैं। मोहन तो 2013-14 में कुछ समय के लिए सॉलिसिटर जनरल भी रहे।
पारासरण ने सुप्रीम कोर्ट की अपनी प्रैक्टिस 1958 में शुरू की और आपातकाल के समय वह तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल थे। 1980 में उन्हें भारत का सॉलिसिटर जनरल बनाया गया और 1983-89 के बीच वह अटॉर्नी जनरल रहे। पारासरण को दो पद्म सम्मान भी मिल चुके हैं। 2003 में पहले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया और फिर 2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा।
1970 के दशक से लगभग हर सरकार का पारासरण पर भरोसा रहा है। लेकिन इस बीच उन्होंने राम सेतु मामले में सरकार के खिलाफ केस लड़ा था। उन्होंने कहा था कि वह राम सेतु का केस इसलिए लड़ रहे हैं क्योंकि ये न्यूनतम है जो वो भगवान राम के लिए कर सकते हैं। इसके अलावा बहुचर्चित सबरीमाला केस में उन्होंने महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर पाबंदी के पक्ष में कोर्ट में दलीलें दीं।
2016 से पारासरण को कोर्ट में कम ही देखा जाता है, लेकिन वह अयोध्या केस के लिए आगे आए। मामले में सुप्रीम कोर्ट की मैराथन 40 दिन सुनवाई के शुरूआत में जब मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई ने पारासरण से पूछा कि क्या वो बैठकर बहस करना चाहेंगे तो उन्होंने जबाव दिया कि वो खड़े होकर ही बहस करेंगे क्योंकि इसकी परंपरा रही है। ये कोर्ट की परंपरा को लेकर उनके समर्पण को दर्शाता है।
सुनवाई में रामलला का पक्ष रखते हुए पारासरण ने कहा कि भगवान राम का जन्मस्थान होने के नाते जमीन अपने आप में एक स्वयंभू देवता है। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में पूजा करने के लिए मूर्ति की आवश्यकता नहीं होती। इसके लिए उन्होंने वेदों से सूर्य भगवान आदि की पूजा का उदाहरण दिया। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मुस्लिम किसी भी मस्जिद में नमाज पढ़ सकते हैं, लेकिन हिंदू राम का जन्मस्थान नहीं बदल सकते।
सुनवाई के दौरान पारासरण ने कहा था कि मरने से पहले उनकी अंतिम इच्छा इस केस को खत्म करने की है। कानून और हिंदू धर्मशास्त्रों पर उनकी पकड़ के कारण मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश उन्हें 'भारतीय बार का पितामह' कह चुके हैं।
पारासरण के अलावा जगतगुरू शंकराचार्य, ज्यातिपीठधीश्वर स्वामी वसुदेव, सरस्वती जी महाराज, जगतगुरू माधवाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्नातीर्थ जी महाराज, पेजावर मथ, युगपुरुष परमानंद जी महाराज, स्वामी गोविंददेव गिरी जी महाराज और विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्रा को भी ट्रस्ट में जगह दी गई है। इसके अलावा केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार अपना एक-एक सदस्य मनोनीत करेंगी। वहीं बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज बहुमत के जरिए दो प्रबुद्ध हिंदुओं का चयन करेगा जो ट्रस्ट का हिस्सा होंगे।