#NewsBytesExplainer: क्या है कावेरी जल विवाद, जिसे लेकर एक बार फिर आमने-सामने आए कर्नाटक और तमिलनाडु?
कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी के पानी को लेकर एक बार फिर विवाद छिड़ गया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले में दोनों राज्यों का पक्ष सुनने के लिए एक पीठ का गठन किया जाएगा। दरअसल, तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से जल बंटवारे के समझौते पर नए निर्देशों की मांग को लेकर याचिका दाखिल की थी। आइए जानते हैं कि कावेरी जल विवाद एक बार फिर क्यों चर्चा में है।
कब शुरू हुआ था कावेरी जल विवाद?
कावेरी जल विवाद करीब 150 वर्ष पुराना है और यह 1892 और 1924 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर राज्य के बीच मध्यस्थता के दो समझौतों से संबंधित है। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद 1974 में शुरू हुआ जब कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति के बिना नदी के पानी को मोड़ना शुरू कर दिया था। विवाद को सुलझाने के लिए 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (CWDT) की स्थापना की गई थी।
क्या है जल बंटवारे की व्यवस्था?
CWDT ने 2007 में एक अंतिम निर्णय जारी किया था, जिसमें कावेरी जल को चार तटवर्ती राज्यों के बीच विभाजित किया। सामान्य वर्ष में 740 TMC की कुल उपलब्धता को कावेरी बेसिन में चार राज्यों के बीच जल बांटा जाएगा, जिसमें तमिलनाडु को 404.25 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (TMC), कर्नाटक को 284.75 TMC, केरल को 30 TMC, और पुडुचेरी को 7 TMC जल मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इस जल बंटवारे की व्यवस्था को बरकरार रखा।
तमिलनाडु ने वर्तमान में क्या मांग की है?
तमिलनाडु सरकार ने पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर कर्नाटक सरकार को रोजाना 24,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश देने की मांग की थी। तमिलनाडु ने अपनी याचिका में कहा था कि राज्य के किसानों को उनकी फसलों के लिए पानी की जरूरत है। तमिलनाडु ने कहा था कि कर्नाटक ने समझौते के तहत जून से अगस्त तक उसके हिस्से का पानी जारी नहीं किया है, जिसका वह हकदार है।
कर्नाटक सरकार का क्या है तर्क?
कर्नाटक सरकार का कहना है कि कावेरी जलग्रहण क्षेत्र में कम बारिश होने के कारण नदी में कम प्रवाह है और ऐसे में अधिक जल छोड़ा जाना संभव नहीं है। कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (CWMA) ने हाल ही में कर्नाटक सरकार को अगले 15 दिनों के अंदर तमिलनाडु के लिए 10,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया था, लेकिन कर्नाटक सरकार ने इस समय अवधि के दौरान 8,000 क्यूसेक पानी छोड़ने की बात कही।
कर्नाटक में विपक्ष क्यों कर रहा है विरोध?
कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने भी कम बारिश का हवाला देते हुए CWMA से पानी छोड़ने आदेश की समीक्षा करने की मांग की है। दूसरी तरह भाजपा और जनता दल सेक्युलर समेत तमाम विपक्षी पार्टियां कर्नाटक सरकार पर राज्यों के किसानों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन कर रही हैं। कर्नाटक सरकार ने मामले पर चर्चा करने के लिए 23 अगस्त को एक सर्वदलीय बैठक भी बुलाई है।
पानी के बंटवारे को लेकर क्यों होता है विवाद?
कावेरी नदी के जल बंटवारे समझौते के तहत कर्नाटक को सामान्य बारिश होने पर एक वर्ष के दौरान जून से मई तक तमिलनाडु को 177.25 TMC जल साझा करना अनिवार्य है। इस वार्षिक कोटे में जून से सितंबर तक मानसून महीनों के दौरान आवंटित 123.14 TMC जल शामिल है। हालांकि, दक्षिण-पश्चिम मानसून के मौसम में अक्सर यह जल विवाद उत्पन्न हो जाता है, विशेषकर जब बारिश उम्मीद से कम होती है।
न्यूजबाइट्स प्लस
कावेरी दक्षिण भारत की एक पवित्र नदी है। इसका उद्गम स्थान कर्नाटक के कोडागु जिले में स्थित है और यह तमिलनाडु से होकर दक्षिण-पूर्व की ओर बहते हुए पुडुचेरी से बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। 802 किलोमीटर लंबी कावेरी नदी का बेसिन 81,155 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इसका 34,273 वर्ग किलोमीटर इलाका कर्नाटक में पड़ता है, जबकि 44,016 वर्ग किलोमीटर तमिलनाडु और पुडुचेरी में है। बचा हुआ 2,866 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र केरल में है।