
NDA ने सीपी राधाकृष्णन को ही उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार क्यों चुना? जानिए पूरा गणित
क्या है खबर?
भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने गत रविवार (17 अगस्त) को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन का अपना उम्मीदवार चुनाव है। भाजपा संसदीय दल की बैठक में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके नाम पर मुहर लगाई। उसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसकी घोषणा करते हुए राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी। ऐसे में आइए जानते हैं NDA ने राधाकृष्णन को ही क्यों चुना है।
परिचय
कौन है सीपी राधाकृष्णन?
तमिलनाडु के तिरुप्पुर में 20 अक्टूबर, 1957 को जन्मे चन्द्रपुरम पोनुस्वामी राधाकृष्णन भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे हैं। वह 31 जुलाई, 2024 से में महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में सेवाएं दे रहे हैं। इससे पहली वह फरवरी 2023 से जुलाई 2024 तक झारखंड के राज्यपाल रहे और मार्च से जुलाई 2024 तक तेलंगाना का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला है। इसी तरह उन्होंने मार्च से अगस्त 2024 तक पुडुचेरी के उपराज्यपाल का भी अतिरिक्त प्रभार संभाला था।
सफर
कैसा रहा है राधाकृष्णन का राजनीतिक सफर?
राधाकृष्णन ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और जनसंघ से की थी। वह साल 1974 में महज 16 साल की उम्र में ही RSS और जनसंघ से सदस्य के रूप में जुड़ गए थे। वह साल 1996 में तमिलनाडु भाजपा में सचिव बने और 1998-99 में कोयंबटूर से लोकसभा सांसद चुने गए। उन्होंने 2004 से 2007 तक तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी संभाली थी। इसी तरह 2020-2022 तक केरल भाजपा के प्रभारी रहे थे।
कारण
राधाकृष्णन को चुनने के पीछे क्या रहा कारण?
भाजपा ने इस साल तमिलनाडु में होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए उपराष्ट्रपति पद के लिए राधाकृष्णन को चुना है। भाजपा कई सालों से तमिलनाडु में जड़े जमाने का प्रयास कर रही है। काेयंबटूर में राधाकृष्णन की लोकप्रियता को देखते हुए भाजपा ने उनके साथ आकर तमिलनाडु की पश्चिमी बेल्ट पर फोकस किया है। बता दें कि 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 2.6 प्रतिशत था और पार्टी अब उसे बढ़ाना चाहती है।
संबंध
RSS के साथ संबंधों में आई खटास दूर करने का प्रयास
भाजपा ने राधाकृष्णन को चुनकर RSS के साथ संबंधों को मजबूत करने का प्रयास किया है। लोकसभा चुनाव से पहले नड्डा ने कहा था कि भाजपा को अब RSS की जरूरत नहीं है। इससे RSS नाराज हो गया। इसका परिणाम यह रहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा 240 सीटें ही हासिल कर पाई, जो बहुमत से 32 कम थी। अब भाजपा ने RSS से रिश्तों को मजबूत करने और संगठन की वैचारिक रीढ़ को संदेश देने का कदम उठाया है।
राजनीति
DMK पर समर्थन देने का दबाव बनाना
भाजपा ने राधाकृष्णन को चुनकर बड़ा मास्टर स्ट्रोक चला है। उनका विरोध करना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा। राधाकृष्णन खुद तमिलनाडु से हैं और इस समय वहां DMK की सरकार है। इसके चलते अब मुख्यमंत्री एमके स्टालिन स्थानीय राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए चाहकर भी राज्य के उम्मीदवार का विरोध नहीं कर सकेंगे। ऐसे में केंद्र की राजनीति में भाजपा की धुर विरोधी DMK भी अब राधाकृष्णन को समर्थन देने के लिए मजबूर होती दिखेगी।
वोट बैंक
OBC वोट बैंक को साधने का प्रयास
तमिलनाडु में लगातार प्रयासों के बाद भाजपा की स्थिति में सुधार तो हुआ है, लेकिन अभी भी उम्मीद के मुताबिक समर्थन नहीं मिल रहा है। अब पार्टी ने राधाकृष्णन को आगे कर OBC कार्ड खेला है। असल में राधाकृष्णन OBC में शामिल गाउंटर (कोंगु वेल्लालर) समुदाय से आते हैं। यह तमिलनाडु की राजनीति का अहम वोट बैंक है। पश्चिमी तमिलनाडु में तो OBC और ज्यादा निर्णायक साबित होते हैं। ऐसे में भाजपा ने बड़ा दांव खेला है।
जुड़ाव
महाराष्ट्र से तमिलनाडु तक का राजनीतिक जुड़ाव
राधाकृष्णन फिलहाल महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं। महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध लंबे समय से रहे हैं। मुंबई और पुणे में बड़ी संख्या में तमिल समुदाय के लोग हैं। तमिलनाडु की फिल्म इंडस्ट्री और महाराष्ट्र की मराठी-संस्कृति के बीच भी दशकों पुराना मेलजोल है। भाजपा ने राधाकृष्णन को चुनकर दिखाया है कि दक्षिण का नेता पश्चिमी भारत में शासन संभाल सकता है और दिल्ली में नंबर दो पद पर आसीन है।