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    #NewsBytesExplainer: क्या है राजदंड 'सेंगोल' और इसका ऐतिहासिक महत्व, जिसे नई संसद में किया जाएगा स्थापित? 
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    #NewsBytesExplainer: क्या है राजदंड 'सेंगोल' और इसका ऐतिहासिक महत्व, जिसे नई संसद में किया जाएगा स्थापित? 

    लेखन सकुल गर्ग
    May 24, 2023
    04:46 pm
    #NewsBytesExplainer: क्या है राजदंड 'सेंगोल' और इसका ऐतिहासिक महत्व, जिसे नई संसद में किया जाएगा स्थापित? 
    नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा सेंगोल

    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की सीट के पास राजदंड 'सेंगोल' की स्थापना करेंगे। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से तमिल संस्कृति में सेंगोल की महत्वपूर्ण भूमिका है और यह सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। आइए जानते हैं कि सेंगोल क्या होता है और इसका ऐतिहासिक महत्व क्या है।

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    चोल काल में सेंगोल का था काफी महत्व 

    चोल काल के दौरान राजाओं के राज्याभिषेक समारोहों में सेंगोल का काफी अधिक महत्व था। यह राजा के राजदंड के रूप में कार्य करता था और इसमें नक्काशी और सजावटी तत्व शामिल है। इसका अर्थ 'संपदा से संपन्न' होता है, जो चोल राजाओं की शक्ति और संप्रभुता के प्रतीक के रूप में उभरा। सेंगोल को अधिकार का एक पवित्र प्रतीक माना जाता था, जो एक राजा से दूसरे राजा के बीच सत्ता के हस्तांतरण का भी प्रतिनिधित्व करता था।

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    अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद हुआ था सेंगोल का इस्तेमाल

    वर्ष 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने पर भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले प्रधानमंत्र जवाहरलाल नेहरू से सत्ता हस्तनांतरण के प्रतीकात्मक समारोह के आयोजन के बारे में पूछा था। इसके बाद नेहरू ने समारोह के ऐतिहासिक दृष्टिकोण को लेकर सी राजगोपालाचारी से सलाह मांगी थी, जिन्होंने चोल वंश के सत्ता हस्तांतरण के इतिहास से प्रेरणा लेते हुए सेंगोल के इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था।

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    तमिलनाडु के मठ ने करवाया था सेंगोल का निर्माण

    राजगोपालाचारी ने सेंगोल को तैयार करने के लिए तमिलनाडु के तंजौर जिले में स्थित धार्मिक मठ थिरुवदुथुराई अधीनम से संपर्क किया था। इसके बाद 500 वर्षों से अधिक प्राचीन मठ के प्रमुख ने अंग्रेजों से भारत को सत्ता हस्तनांतरण के लिए सेंगोल को बनाने का निर्देश दिया था। करीब 5 फीट लंबे इस सेंगोल के शीर्ष पर नंदी (बैल) की एक मूर्ती को स्थापित करने का निर्णय भी लिया गया था, जो न्याय और निष्पक्षता का प्रतीक है।

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    चेन्नई के जौहरी ने बनाया था सेंगोल 

    सेंगोल को तैयार करने का काम चेन्नई के जाने-माने जौहरी वुम्मिदी बंगारू चेट्टी को सौंपा गया था। इसके निर्माण में उनके परिवार के 2 सदस्य वुम्मिदी एथिराजुलु और वुम्मिदी सुधाकर भी शामिल थे, जो आज भी जीवित हैं। सेंगोल पर नक्काशी के साथ-साथ कई पारंपरिक आकृतियां भी बनाई गई थीं। इसके बाद थिरुवदुथुराई अधीनम के उप प्रमुख, नादस्वरम वादक राजरथिनम पिल्लई और एक गायक सेंगोल को तमिलनाडु से अपने साथ लेकर दिल्ली आए थे।

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    पारंपरिक तरीके से पंडित नेहरू को सौंपा गया था सेंगोल 

    दिल्ली आए तीनों प्रतिनिधियों ने सबसे पहले 14 अगस्त, 1947 को सेंगोल को लॉर्ड माउंटबेटन के सामने पेश किया था, जिसके बाद उसे वापस ले लिया गया था। सेंगोल को पवित्र जल से शुद्ध किया गया था, जो इसकी पवित्रता और इससे जुड़े आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता है। शुद्धिकरण के बाद सेंगोल को अगले दिन पारंपरिक तरीके से नेहरू के आवास तक ले जाया गया था और उन्हें सत्ता के हस्तांतरण के रूप में सौंप दिया गया था।

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    मौजूदा समय में भी है सेंगोल का काफी महत्व

    मौजूदा समय में भी सेंगोल गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है। सेंगोल को विरासत और परंपरा के प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, त्योहारों और समारोहों के महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग के रूप में कार्य करता है। केंद्र सरकार ने इसी लिहाज से आजादी के अमृत महोत्सव में सांस्कृतिक विरासत, इतिहास, परंपरा और सभ्यता को नए भारत से जोड़ने के लिए सेंगोल को नए संसद भवन में स्थापित करने का निर्णय लिया है।

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