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    क्या है राज्यों द्वारा CBI को दी जाने वाली सामान्य सहमति और इसकी जरूरत क्यों?
    क्या है राज्यों द्वारा CBI को दी जाने वाली सामान्य सहमति

    क्या है राज्यों द्वारा CBI को दी जाने वाली सामान्य सहमति और इसकी जरूरत क्यों?

    लेखन प्रमोद कुमार
    Nov 11, 2021
    12:14 pm

    क्या है खबर?

    पिछले कुछ समय में कई राज्यों ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली है।

    इसी हफ्ते CBI ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 2018 के बाद आठ राज्यों से सहमति न मिल पाने के कारण 150 मामलों की जांच शुरू नहीं हो पाई है। इस पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने मामले को मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया है।

    आइये, जानते हैं कि सामान्य सहमति क्या होती है।

    जानकारी

    सामान्य सहमति क्या होती है?

    राज्य सरकारें जांच के लिए CBI को सामान्य या मामला विशेष से जुड़ी सहमति देती हैं।

    सामान्य सहमति CBI की केंद्रीय कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में जांच के लिए मदद करती है।

    अगर यह सहमति न मिली हो तो CBI को हर मामले में छोटी से छोटी कार्रवाई के लिए भी राज्य सरकार की मंजूरी की जरूरत होती है। आमतौर पर राज्य CBI को यह सहमति दे देते हैं।

    जरूरत

    सहमति लेना जरूरी क्यों है?

    CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम द्वारा शासित है और केवल केंद्र सरकार के विभागों और कर्मचारी ही इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

    ऐसे में यह राज्य सरकार के कर्मचारियों और किसी राज्य में हिंसक अपराध से संबंधित मामले की जांच संबंधित सरकार की सहमति के बाद ही कर सकती है।

    अगर किसी राज्य ने सामान्य सहमति वापस ली है तो CBI उस राज्य में बिना सरकार की मंजूरी के नया मामला दर्ज नहीं कर सकती।

    जानकारी

    किन राज्यों ने सहमति वापस ली और क्यों?

    महाराष्ट्र, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, केरल और मिजोरम ने सामान्य सहमति वापस ली है। मिजोरम को छोड़कर बाकी जगहों पर विपक्ष की सरकार है।

    मिजोरम ने सबसे पहले 2015 में सहमति वापस ली थी, जब यहां पर कांग्रेस की सरकार थी। 2018 में यहां सरकार बदली, लेकिन NDA की सहयोगी होने के बावजूद जोरामथंगा सरकार ने सहमति बहाल नहीं की है।

    इनका आरोप है कि केंद्र विपक्ष को निशाना बनाने के लिए CBI का दुरुपयोग कर रहा है।

    CBI

    कलकत्ता हाई कोर्ट ने दिया था अहम आदेश

    अवैध कोयला खनन और गौतस्करी के मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा था कि केंद्रीय एजेंसी को दूसरे राज्यों में केंद्रीय कर्मचारियों की जांच से नहीं रोका जा सकता।

    कोर्ट ने कहा था कि भ्रष्टाचार के मामलों को पूरे देश में एक तरह से देखा जाना चाहिए और किसी केंद्रीय कर्मचारी को इस आधार पर अलग नहीं रखा जा सकता कि जिस राज्य में उसका कार्यालय है, उसने CBI को सामान्य सहमति नहीं दी है।

    जानकारी

    फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती

    हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि सामान्य सहमति वापस लेने पर केवल राज्य सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ जांच नहीं हो सकती। हालांकि, इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जहां इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है।

    जानकारी

    आठ राज्यों में CBI की क्या स्थिति है?

    जिन आठ राज्यों ने सामान्य सहमति वापस ली है, उनमें अब भी CBI पुराने मामलों की जांच जारी रख सकती है।

    साथ ही देश में किसी दूसरी जगह दर्ज हुए मामले के सिलसिले में इन आठ राज्यों में तैनात केंद्रीय कर्मचारी CBI के क्षेत्राधिकार में आते हैं।

    इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, सहमति वापस होने के बाद पुराने मामलों में तलाशी को लेकर अभी तक अधिकार स्पष्ट नहीं है, लेकिन एजेंसी स्थानीय अदालत से वारंट लेकर तलाशी ले सकती है।

    इतिहास

    क्या पहले भी राज्यों ने वापस ली है सहमति?

    भाजपा के सत्ता में आने से पहले भी राज्य सरकारें ऐसे कदम उठाती आई हैं। छत्तीसगढ़, नागालैंड और सिक्किम ने अभी से पहले भी सामान्य सहमति वापस ली थी।

    1998 में कर्नाटक की जनता दल सरकार ने सहमति वापस ले ली थी। इसके बाद कांग्रेस सरकार ने भी इसे बहाल नहीं किया ।

    एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि उस वक्त आठ साल तक सहमति नहीं दी गई थी और हर मामले के लिए मंजूरी लेनी पड़ती थी।

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