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    लेट ट्रेन की जांच के लिए खोई नौकरी, अब 12 साल बाद हुई मजिस्ट्रेट की बहाली

    लेट ट्रेन की जांच के लिए खोई नौकरी, अब 12 साल बाद हुई मजिस्ट्रेट की बहाली

    लेखन मुकुल तोमर
    Jul 09, 2019
    02:00 pm

    क्या है खबर?

    कोलकाता के जिस मजिस्ट्रेट को 12 साल पहले जबरन रिटायर कर दिया गया था, अब हाई कोर्ट ने उसकी बहाली करते हुए कहा है कि उसे नौकरी से निकालना एक गलती थी।

    मिंटू मलिक नामक इस रेलवे मजिस्ट्रेट को केवल इसलिए जबरन रिटायर कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने एक ट्रेन के देरी से आने के मामले में जांच के आदेश दिए थे।

    4 जुलाई को सुनाए गए अपने फैसले में कलकत्ता हाई कोर्ट उनकी नीयत की तारीफ की है।

    मामला

    क्या है पूरा मामला?

    मामला 5 मई 2007 का है। मलिक उस समय सियालदह के मजिस्ट्रेट थे और रेलवे का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे।

    इस दिन वह रोजाना की तरह अपने काम पर लगे हुए थे और एक लोकल ट्रेन का लेक गार्डन रेलवे स्टेशन से सियालदह रेलवे स्टेशन पहुंचने का इंतजार कर रहे थे।

    लेकिन ट्रेन समय पर नहीं आई।

    इस दौरान उन्होंने कई यात्रियों से बात की और पूछा कि उपनगरीय कोलकाता में ट्रेनें हमेशा लेट क्यों होती हैं।

    देरी का कारण

    तस्करों का सामान उतारने के लिए ट्रेन रोकते थे ड्राइवर

    यात्रियों से मलिक को पता चला कि ट्रेनों के ड्राइवर और गार्ड तस्करों से मिले हुए हैं और गाड़ी में मौजूद वर्जित साम्रगी को उतारने के लिए ट्रेन को कई जगहों पर रोकते हैं।

    ये पता होते हुए भी ऐसा करना अनधिकृत है, मलिक इसके बाद मोटरमैन के केबिन में गए और मोटरमैन और ट्रेन गार्ड को मौखिक रूप से उनकी कोर्ट के सामने पेश होने और ट्रेन आने में देरी के कारणों पर रिपोर्ट देने को कहा।

    विरोध प्रदर्शन

    रेलवे अधिकारियों ने की निलंबन और जांच की मांग

    इसके बाद पुलिस मोटरमैन और गार्ड को थाने ले गई और फिर उन्हें मलिक की कोर्ट के सामने पेश होने का आदेश दिया।

    इसके कुछ ही घंटों के अंदर रेलवे कर्मचारियों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया, जो जल्द ही हिंसक हो गया और सियालदह में ट्रेन सेवाएं बाधित हुईं।

    उन्होंने मलिक का तत्काल निलंबित करने और अनुशासनात्मक जांच की मांग की।

    तब कलकत्ता हाई कोर्ट ने मलिक के खिलाफ फैसला देते हुए जांच का आदेश दिया।

    फैसला

    कोर्ट ने दिया जबरन रिटायर करने का आदेश

    जांच में मलिक पर बिना इजाजत के मोटरमैन के केबिन में जाने का आरोप सही पाया गया।

    इसके अलावा ये भी सामने आया कि रेलवे मजिस्ट्रेट के पास ट्रेन की देरी के मामलों में स्वसंज्ञान लेने का अधिकार नहीं होता है।

    इन आरोपों के सही पाए जाने के बाद हाई कोर्ट की प्रशासनिक समिति ने उन्हें जबरन रिटायर करने का फैसला सुनाया।

    मलिक ने फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से अपील की, लेकिन ये खारिज हो गई।

    कलकत्ता हाई कोर्ट

    अब हाई कोर्ट ने सजा को बताया बेहद सख्त

    2017 में हाई कोर्ट की सिंगल जज बेंच ने भी मलिक की याचिका को खारिज कर दिया, जिसके बाद उसने दो जज की बेंच के सामने अपील की और खुद अपने तर्क रखे।

    अब मामले में कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए मलिक की बहाली के आदेश दिए हैं।

    उसने मलिक की नीयत की तारीफ की, लेकिन ये भी कहा कि वह अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर गए थे।

    बेंच ने मलिक को सुनाई गई सजा को बेहद सख्त माना।

    सरकार को निर्देश

    मलिक को मिलेगा 12 साल की सैलरी का 75 प्रतिशत हिस्सा

    हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "इस न्यायिक अधिकारी ने मूर्खतापूर्वक ये सोचा कि वह अकेले तस्कर माफिया से लड़ सकता है।"

    सरकार को मलिक की 12 साल की सैलरी के 75 प्रतिशत हिस्से का भुगतान करने को कहा है।

    कोर्ट ने खुद पर भी 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।

    फैसले पर मलिक ने कहा, "मैं फैसले के बारे में नहीं बोल सकता लेकिन मैं आशा करता हूं कि इस बार ट्रेन लेट नहीं होगी।"

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