कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद बोले- जजों की नियुक्ति में पोस्टमैन नहीं बनेगी सरकार, रखेगी अपनी बात
क्या है खबर?
जजों की नियुक्त पर सरकार का रुख साफ करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बुधवार को संसद में कहा कि सरकार जजों की नियुक्त पर पोस्टमैन बनकर नहीं रहेगी और अपनी बात रखेगी।
बता दें कि केंद्र सरकार पर अक्सर जजों की नियुक्ति में देरी करने और इसके जरिए न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिश करने के आरोप लगते रहते हैं।
सरकार इन आरोपों से इनकार करती रही है।
सवाल
TMC सांसद ने उठाया था सवाल
दरअसल, बुधवार को लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद कल्याण बनर्जी ने रविशंकर प्रसाद से कलकत्ता हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को मंजूरी देने को कहा था।
बनर्जी ने प्रसाद से कहा, "कलकत्ता हाई कोर्ट की दो बेंच हैं। दो जजों को पोर्ट ब्लेयर और चार जजों को जलपाईगुड़ी जाना पड़ता है। मेरा सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने कई नामों का सुझाव दिया। कई नाम लंबित हैं। कृपया करके इन नामों को हरी झंडी दें।"
जवाब
रविशंकर का जवाब, जजों की नियुक्ति में सरकार हिस्सेदार
इस मांग का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, "हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्त की एक प्रक्रिया है और वरिष्ठ जजों की एक कॉलेजियम जजों की नियुक्ति के नामों की सिफारिश सरकार से करती है। जजों की नियुक्ति में हम हिस्सेदार हैं। हम पोस्टमैन नहीं हैं और हम अपनी बात रखेंगे।"
इस बीच उन्होंने कल्याण को आश्वासन दिया कि सरकार उनके मामले को देख रही है और इसका जल्द समाधान होगा।
खाली पड़े पद
देशभर में हाई कोर्ट जजों के 40 प्रतिशत पद खाली
केसों के बोझ के बीच देशभर की हाई कोर्ट्स में खाली पदों पर अधर में पड़ी जजों की नियुक्ति एक बड़ा मुद्दा है।
न्याय विभाग के आंकड़ों के अनुसार, एक नवंबर 2019 तक देशभर की हाई कोर्ट्स में जजों के लगभग 40 प्रतिशत पद खाली पड़े हैं।
देशभर में हाई कोर्ट जजों के कुल 1,079 पद हैं जिनमें से 424 खाली पड़े हैं और उन पर भर्तियां होनी हैं।
सरकार पर इसमें जानबूझकर देरी करने का आरोप लगता रहता है।
कॉलेजियम व्यवस्था
कैसे होती है सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति?
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों की कॉलेजियम की सिफारिश के आधार पर होती है।
ये कॉलेजियम नामों की सिफारिश सरकार से करती है जिसे इन जजों की नियुक्ति करनी होती है।
ये जरूरी नहीं है कि सरकार कॉलेजियम की सिफारिश को माने ही और कई बार ऐसा हो चुका है जब सरकार ने किसी जज की नियुक्ति पर कॉलेजिमय को दोबारा विचार करने को कहा हो।
जानकारी
कॉलेजियम में पारदर्शिता की कमी पर भी उठते हैं सवाल
जजों की नियुक्ति में सरकार की दखल के अलावा कॉलेजियम के फैसलों में पारदर्शिता की कमी पर भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। कॉलेजियम ने किस आधार पर नामों की सिफारिश की ये बात कभी सार्वजनिक नहीं होती है।