
#NewsBytesExplainer: विश्वास और अविश्वास मत में क्या है अंतर और सदन में कब लाए जाते हैं?
क्या है खबर?
दिल्ली विधानसभा में शनिवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विश्वास मत साबित कर दिया। इस दौरान 70 सदस्यीय सदन में केवल 55 ने विश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया में भाग लिया।
भाजपा के 8 में से 7 और आम आदमी पार्टी (AAP) के 62 में से 8 सदस्य विभिन्न कारणों से सदन में अनुपस्थित रहे।
इस बहाने आइए जानते हैं कि विश्वास मत और अविश्वास मत में क्या अंतर है और इन्हें कब सदन में लाया जाता है।
कारण
केजरीवाल सरकार क्यों लेकर आई विश्वास मत?
मुख्यमंत्री केजरीवाल के विधानसभा के बजट सत्र में विश्वास प्रस्ताव करते हुए भाजपा पर AAP की सरकार गिराने और उसके विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि AAP के 2 विधायकों ने उन्हें बताया कि उनसे भाजपा के सदस्यों ने संपर्क किया था, जिन्होंने दावा किया था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को जल्द ही गिरफ्तार किया जाएगा।
उनका आरोप है कि AAP विधायकों को भाजपा में शामिल होने के लिए 25 करोड़ रुपये की पेशकश की गई।
विश्वास मत
क्या होता है विश्वास मत?
विश्वास मत, एक संसदीय प्रक्रिया है और इसके तहत सरकार को सदन में बहुमत साबित करना होता है। वैसे आमतौर पर विश्वास मत सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव के बाद लाया जाता है।
इसके अलावा सरकार खुद भी किसी महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव, लोकप्रियता में गिरावट, किसी घोटाले या विवाद के बाद भी सदन में विश्वास मत ला सकती है।
सदन में विश्वास मत पेश करने के लिए स्पीकर की मंजूरी लेना आवश्यक है।
फायदे और नुकसान
विश्वास मत के क्या फायदे और नुकसान?
फायदे की बात करें तो विश्वास मत सरकार और विधानमंडल के बीच जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
यह सरकार को अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है और सरकार को अस्थिरता से बचाता है।
विश्वास मत का नुकसान भी हैं। ये सरकार को विपक्ष के दबाव में आने के लिए मजबूर और राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है। इसके अलावा सरकार को उसकी लोकप्रिय नीतियां लाने से भी रोक सकता है।
अविश्वास मत
क्या होता है अविश्वास मत और विश्वास मत से कैसे अलग?
विश्वास प्रस्ताव सरकार की तरफ से लाया जाता है, जिससे वह साबित कर सके कि उनके पास बहुमत है। इसके विपरीत विपक्ष सदन में सरकार के खिलाफ कभी भी अविश्वास मत भी ला सकता है।
मजेदार बात ये है कि अविश्वास मत लाने वाले को इसकी कोई वजह भी बताना जरूरी नहीं है। हालांकि, इसके लिए भी स्पीकर की सहमति लेना आवश्यक है।
विश्वास मत हो या फिर अविश्वास मत दोनों परिस्थितियों में सरकार को बहुमत साबित करना होता है।
मतदान
प्रस्ताव पर स्पीकर मंजूरी के बाद क्या हैं प्रावधान?
स्पीकर द्वारा प्रस्ताव लाने की मंजूरी के 10 दिनों के अंदर सदन में इस पर बहस और मतदान कराने का प्रावधान है। सदन में मतदान 3 प्रकार से किया जाता है। पहला ध्वनिमत, दूसरा मत विभाजन और तीसरा मत पत्र।
ध्वनि मौखिक प्रक्रिया है, जबकि मत विभाजन के मामले में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स या पर्ची का इस्तेमाल होता है। मतपत्र में गुप्त रूप से बैलेट पेपर में स्टैंप लगाकर बैलेट बॉक्स में वोट डाले जाते हैं।
विश्वास मत
विश्वास मत हारने पर क्या होता है?
विश्वास मत के दौरान अगर वर्तमान सरकार के पक्ष में आधे से कम मत होते हैं तो सरकार गिर जाती है और मुख्यमंत्री समेत पूरी कैबिनेट को इस्तीफा देना होता है।
इसके बाद आमतौर पर 2 स्थितियां बनती हैं। पहली ये कि विपक्षी पार्टी या कई अन्य पार्टियां मिलकर गठबंधन की सरकार बनाने का दावा करती है।
दूसरी ये कि कोई सरकार न बनने की स्थिति में विधानसभा भंग करके दोबारा चुनाव भी कराए जा सकते हैं।
अविश्वास प्रस्ताव
कब लाया गया था पहला अविश्वास प्रस्ताव?
लोकसभा में 1963 में सबसे पहला अविश्वास प्रस्ताव प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय लाया गया था। इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62, जबकि विरोध में 347 वोट पड़े थे।
नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिंह राव, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी की सरकार को भी दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा।
अब तक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव आए हैं, पर केंद्र की कोई सरकार नहीं गिरी है।
जानकारी
कब-कब विश्वास मत लेकर आई है केजरीवाल सरकार?
केजरीवाल सरकार ने सदन में तीसरी बार विश्वास मत पेश किया है। इससे पहले केजरीवाल ने मार्च, 2023 और अगस्त, 2022 में विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पेश किया था। 70 सदस्यीय विधानसभा में AAP के 62, जबकि भाजपा के कुल 8 विधायक हैं।