असम: डिब्रूगढ़ जेल में छापेमारी, अमृतपाल सिंह की सेल से मोबाइल फोन समेत कई उपकरण बरामद
क्या है खबर?
असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह को लेकर चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। जेल की जिस सेल में अमृतपाल कैद है, वहां से पुलिस ने मोबाइल फोन, कैमरा और स्मार्टवॉच समेत कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बरामद किए हैं।
शक है कि अमृतपाल जेल के अंदर से ही अपना अवैध नेटवर्क चला रहा था। असम के पुलिस महानिदेशक (DGP) ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने इसकी जानकारी दी है।
सामान
क्या-क्या हुआ बरामद?
सिंह के मुताबिक, जेल से सिम लगा स्मार्टफोन, एक कीपैड फोन, कीबोर्ड, टीवी रिमोट, खुफिया कैमरे वाला पेन, पेन ड्राइव, ब्लूटूथ हेडफोन, स्मार्टवॉच और स्पीकर बरामद हुआ है।
उन्होंने कहा, 'जेल में अनाधिकृत गतिविधियों के इनपुट प्राप्त हुए थे, जिसके आधार पर जेल कर्मचारियों ने आज परिसर की तलाशी ली। इन अनधिकृत वस्तुओं के स्रोत और इन्हें शामिल करने के तरीके का पता लगाया जा रहा है। आगे की विधि सम्मत कार्रवाई की जा रही है।'
जेल
NSA के तहत जेल मे बंद है अमृतपाल
इस मामले को जेल की सुरक्षा में बड़ी चूक माना जा रहा है क्योंकि अमृतपाल और उसके साथी यहां राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के मामले में बंद हैं।
खुफिया एजेंसियां आशंका जता चुकी हैं कि अमृतपाल के पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) से संबंध है।
खुफिया एजेंसियों ने अमृतपाल के करीबी सहयोगी दलजीत सिंह कलसी को लेकर भी कहा था कि उसके पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बेटे साद बाजवा के साथ संबंध हैं।
अमृतपाल
कौन है अमृतपाल?
17 जनवरी, 1993 को जन्मा अमृतपाल कट्टरपंथी खालिस्तान समर्थक विचारों और स्व-घोषित सिख उपदेशों के लिए जाना जाता है। शुरुआती पढ़ाई के बाद वो रोजगार की तलाश में दुबई चला गया, जहां परिवार के साथ ट्रांसपोर्ट का कामकाज करने लगा।
2022 में उसने दुबई से लौटकर 'वारिस पंजाब दे' संगठन की कमान संभाली थी। पिछले साल पंजाब पुलिस ने अमृतपाल और उसके संगठन के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की थी, जिसके बाद अमृतपाल ने आत्मसमर्पण कर दिया था।
प्लस
न्यूजबाइट्स प्लस
असम की डिब्रूगढ़ जेल को 1857 में हुए स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले भारतीयों को रखने के लिए बनाया गया था। आधिकारिक तौर पर जेल की स्थापना 1859-60 में हुई थी।
47 बीघा जमीन में फैली हुई इस जेल में 680 कैदियों को रखा जा सकता है। जून, 1991 में इस जेल से प्रतिबंधित चरमपंथी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के 5 हाई प्रोफाइल चरमपंथी फरार हो गए थे, जिसके बाद दीवारों की ऊंचाई बढ़ाई गई थी।