शीतकालीन सत्र में पेश होगा नागरिकता संशोेधन बिल, जानिये क्यों हो रहा इसका विरोध
क्या है खबर?
मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता (संशोधन) बिल पास कराने की कोशिश करेगी। सरकार ने इस बिल को इस सत्र के लिए अपने एजेंडे में शामिल किया है।
भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने पिछले कार्यकाल के दौरान भी इसे पेश किया था, लेकिन भारी विरोध के चलते इसे पारित नहीं करवाया जा सका।
अब एक बार फिर सरकार इसे पास कराने की कोशिश करेगी और विपक्ष फिर इसके विरोध के लिए तैयार है।
शीतकालीन सत्र
शीतकालीन सत्र में पेश होने के लिए लिस्ट किए गए 22 बिल
संसद का शीतकालीन सत्र 18 नवंबर से शुरू हो रहा है। इस सत्र में पेश करने के लिए सरकार ने नागरिकता (संशोधन) बिल समेत कुल 22 बिल लिस्ट किए हैं।
इनमें मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी बिल इंडस्ट्रियस रिलेशंस कोड बिल मेंटनेंस ऐंड वेलफेयर ऑफ पैरंट्स ऐंड सीनियर सिटिजंस अमेंडमेंट बिल आदि शामिल हैं।
नागरिकता (संशोधन) बिल को लेकर संसद में हंगामा होने की उम्मीद है क्योंकि कांग्रेस समते कई विपक्षी पार्टियां इसके विरोध में है।
बिल
क्या है नागरिकता (संशोधन) बिल?
नागरिकता (संशोधन) बिल पर होने वाले हंगामे की वजह समझने से पहले इस बिल के बारे में जानना जरूरी है।
दरअसल, यह बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है।
इसमें बदलाव होने के बाद भारत की नागरिकता दिए जाने के नियम बदल जाएंगे।
अगर यह बिल पास होता है तो बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए सभी गैर-मुस्लिम लोगों को बिना वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी।
प्रस्तावित बिल
बिल में निवास अवधि कम करने का भी प्रावधान
मौजूदा नियमों के मुताबिक, किसी दूसरे देश का नागरिक 11 साल तक भारत में रहता है तो वह भारत की नागरिकता के योग्य होता है, लेकिन प्रस्तावित बिल में यह अवधि कम किए जाने का प्रावधान है।
नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है।
इस बिल का विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ भाजपा के सहयोगी भी विरोध कर रहे हैं।
विरोध
बिल के विरोध में क्यों हैं विपक्षी पार्टियां?
विपक्षियों पार्टियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन के लिए धार्मिक पहचान को आधार बनाया जा रहा है जो संविधान के अनुच्छेद 14 की भावना के खिलाफ है।
यह अनुच्छेद सभी लोगों को बराबरी की बात कहता है। विपक्षी दल इस बिल को मुस्लिम विरोधी बता रहे हैं।
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस समेत अन्य पार्टियों का का कहना है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है ऐसे में यहां धर्म के आधार पर नागरिकता नहीं दी जा सकती।
विरोध
पूर्वोत्तर राज्यों में भी भारी विरोध
असम समेत पूर्वोत्तर के राज्यों में इस बिल का भारी विरोध हो रहा है।
विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह बिल 1985 के असम समझौते को अमान्य करेगा, जिसके तहत 1971 के बाद असम में आने वाले किसी भी धर्म के विदेशी नागरिक को निर्वासित करने की बात कही गई है।
इसे लेकर भाजपा की सहयोगी असम गण परिषद ने लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा का साथ छोड़ दिया था।