#NewsBytesExplainer: क्या होता है अध्यादेश, इस पर संविधान की स्थिति और ये विधेयक से कैसे अलग?
क्या है खबर?
आम आदमी पार्टी (AAP) की दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार में अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिए थे।
इसके बाद 19 मई को केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश जारी कर ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए स्थायी प्राधिकरण बनाने की सिफारिश की है।
आइए समझते हैं ये अध्यादेश क्या होता है और कैसे लागू किया जाता है।
अध्यादेश
अध्यादेश क्या होता है?
आसान भाषा में समझें तो अध्यादेश किसी विशेष स्थिति में लाया गया अस्थायी कानून होता है। ये तभी लागू किया जा सकता है, जब संसद का सत्र न चल रहा हो।
अगर सरकार को किसी विषय पर तुरंत कानून बनाने की जरूरत है, लेकिन संसद का सत्र नहीं चल रहा है तो ऐसी स्थिति में अध्यादेश लाया जाता है।
अध्यादेश संसद से पारित किए गए स्थायी कानून जितना ही ताकतवर होता है।
संविधान
अध्यादेश को लेकर संविधान में क्या कहा गया है?
संविधान के अनुच्छेद 123 में अध्यादेश का जिक्र किया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्ट्रपति के पास अध्यादेश जारी करने की शक्ति है। हालांकि, अध्यादेश के जरिए सरकार कोई भी ऐसा कानून नहीं ला सकती, जो नागरिकों के मूल अधिकार को खत्म कर दे।
केंद्र में राष्ट्रपति की तरह राज्य में राज्यपाल के पास अध्यादेश जारी करने की शक्ति होती है। राज्यपाल अध्यादेश तभी जारी कर सकते हैं, जब विधानसभा का सत्र न चल रहा हो।
शर्तें
अध्यादेश जारी करने के लिए क्या शर्तें हैं?
अध्यादेश केवल उन्हीं विषयों पर जारी किया जा सकता है, जिन पर संसद को कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है।
संविधान में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता।
जब संसद के दोनों सदन चल रहे हो तो उस समय अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता।
जब संसद का केवल एक सदन चल रहा हो तो अध्यादेश जारी किया जा सकता है क्योंकि विधेयक की तरह इसे भी दोनों सदनों से पारित कराना होता है।
अवधि
कितनी अवधि के लिए लागू होता है अध्यादेश?
अध्यादेश की अवधि 6 महीने से ज्यादा नहीं हो सकती है। अध्यादेश लागू होने के 6 महीने के भीतर इसे संसद या विधानसभा में विधेयक के रूप में पेश किया जाता है। यहां से पारित होने के बाद ही ये कानून का रूप लेता है।
अगर अध्यादेश संसद से पारित नहीं होता है तो ये प्रभावशील नहीं रहता है। विशेष परिस्थितियों में अध्यादेश की अवधि 6-6 महीने करके बढ़ाई जा सकती है।
कानून
अध्यादेश स्थायी कानून कैसे बनता है?
अगर सरकार किसी अध्यादेश को स्थायी तौर पर कानून बनाना चाहती है तो इसे 6 महीने के भीतर संसद में पेश करना होता है।
संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद ये अध्यादेश स्थानी कानून बन जाता है।
राज्य के मामले में सरकार को अध्यादेश को विधानसभा में पास कराना होता है।
विधेयक
अध्यादेश और विधेयक में क्या अंतर होता है?
इसके लिए पहले विधेयक क्या होता है, वो समझिए। जब भी सरकार कोई कानून बनाना चाहती है तो इसके प्रारूप को संसद में पेश किया जाता है। इसे विधेयक (बिल) कहा जाता है।
ये लोकसभा और राज्यसभा में पेश होता है, जहां इस पर बहस होती है। दोनों सदनों से पारित होने के बाद ये राष्ट्रपति की मंजूरी से कानून बनता है।
अध्यादेश को सदन में पेश किए बिना राष्ट्रपति की मंजूरी से लागू किया जाता है।
कोर्ट
क्या अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?
बिल्कुल, किसी भी कानून की तरह अध्यादेश को भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। ऐसी स्थिति में सरकार को कोर्ट में अध्यादेश लाने की वजह बतानी होती है। अगर कोर्ट सरकार के तर्क से सहमत नहीं होती है तो अध्यादेश को रद्द भी कर सकती है।
दिल्ली सरकार भी केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को कोर्ट में चुनौती देगी। मामले में अध्यादेश को लाने के समय के आधार पर चुनौती दी जा सकती है।
क्या
दिल्ली से जुड़े अध्यादेश में क्या कहा गया है?
ताजा अध्यादेश के जरिए अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग जैसे मामलों के बारे में उपराज्यपाल को सिफारिश करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक स्थायी प्राधिकरण बनाया गया है।
प्राधिकरण में दिल्ली के मुख्यमंत्री के अलावा दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव भी शामिल हैं।
प्राधिकरण द्वारा तय किए जाने वाले सभी मामले सदस्यों के बहुमत से तय किए जाएंगे। मतभेद की स्थिति में आखिरी फैसला उपराज्यपाल का होगा।