#NewsBytesExplainer: क्या है अध्यादेश का मामला, जिसे लेकर आमने-सामने आईं दिल्ली और केंद्र सरकार?
केंद्र सरकार ने दिल्ली के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग को लेकर एक नया अध्यादेश जारी किया है, जिसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गैर-सवैधानिक करार दिया है। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के 11 मई के फैसले के बाद जारी किया है, जिसमें ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अधिकार दिल्ली सरकार को दिए गए थे। आइए समझते हैं कि यह अध्यादेश क्या है और इसके क्या मायने हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को दिए थे अधिकार
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 11 मई को अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेवाओं पर केंद्र का नहीं बल्कि दिल्ली सरकार का अधिकार है और अगर राज्य सरकार का अपने अधीन अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं होगा तो वो ठीक से काम नहीं करेंगे। कोर्ट ने आगे कहा था कि LG को दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करना होगा।
केंद्र के अध्यादेश में क्या कहा गया है?
केंद्र सरकार ने शुक्रवार देर रात को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 जारी किया था। केंद्र सरकार के मुताबिक, यह अध्यादेश संयुक्त और सामूहिक जिम्मेदारी के माध्यम से दिल्ली के लोगों की आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है। अध्यादेश के जरिए दिल्ली सरकार के मंत्रियों और सचिवों के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के लिए कानूनी आधार प्रदान किया गया है। यह अध्यादेश उनकी भूमिकाओं और जिम्मेदारियों पर अधिक स्पष्टता भी प्रदान करेगा और टकराव के बिना सुचारु शासन सुनिश्चित करेगा।
अध्यादेश के तहत दिल्ली में बनाया गया नया प्राधिकरण
अध्यादेश ने दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाया है, जिसमें दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव भी होंगे। यह प्राधिकरण अधिकारियों और कर्मचारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग, सतर्कता और अन्य प्रासंगिक मामलों से संबंधित मामलों के बारे में उपराज्यपाल को सिफारिशें करेगा। प्राधिकरण के सभी निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाएंगे और राय में अंतर होने पर अंतिम निर्णय उपराज्यपाल का होगा।
उपराज्यपाल का निर्णय होगा अंतिम
दिल्ली के उपराज्यपाल प्राधिकरण के फैसले से सहमत नहीं होने की स्थिति में किसी मामले में पुनर्विचार के लिए फाइलों को दोबारा प्राधिकारण के पास वापस भी भेज सकते हैं। हालांकि, राय में अंतर होने पर उपराज्यपाल का निर्णय ही अंतिम होगा।
दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने किया अध्यादेश का विरोध
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं ने केंद्र सरकार के अध्यादेश का विरोध किया है। उनकी आपत्ति है कि कैसे केंद्र सरकार एक अध्यादेश के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकती है और इसलिए यह अध्यादेश गैर-संवैधानिक है। केजरीवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने दिल्ली सरकार को शक्तियां दी थीं, जिन्हें अध्यादेश लाकर दोबारा उपराज्यपाल को दे दिया गया है।
क्या केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच संतुलन बनाएगा अध्यादेश?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सेवाओं से जुड़े सभी अधिकार केंद्र सरकार से छीनकर दिल्ली सरकार के पास आ गए थे। केंद्र सरकार के मुताबिक, दिल्ली की स्थिति अन्य राज्यों से अलग होने के कारण यह सुनिश्चित करना आवश्यक था कि राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर चुनी गईं सरकारों के लोकतांत्रिक हितों के बीच एक संतुलन हासिल किया जाए। यह अध्यादेश उस संतुलन को हासिल करने की कोशिश करने के तहत लाया गया है।
क्या अध्यादेश को दी जा सकती है सुप्रीम कोर्ट में चुनौती?
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, इस अध्यादेश को सुप्रीम कोर्ट के सामने सिर्फ इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि क्या अध्यादेश को लागू करने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता थी या नहीं। अगर दिल्ली सरकार अध्यादेश को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में वापस जाती है तो केंद्र सरकार को यह साबित करना होगा कि तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता थी और अध्यादेश सिर्फ विधायिका में चर्चा को दरकिनार करने के लिए जारी नहीं किया गया।
अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में दिल्ली सरकार
बता दें कि केंद्र सरकार ने अध्यादेश जारी करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के 11 मई के फैसले की समीक्षा के लिए एक याचिका दाखिल की है। वहीं दिल्ली सरकार ने भी केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में ग्रीष्मकालीन अवकाश के कारण इस मामले की सुनवाई जुलाई के पहले सप्ताह से पहले होने के आसार नहीं हैं।