समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी, जानें तीसरे दिन क्या-क्या हुआ
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर लगातार तीसरे दिन सुनवाई हुई।
दूसरे दिन भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र सरकार के उस विचार को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि समलैंगिकता महज शहरी अभिजात्य वर्ग की अवधारणा है।
दूसरी तरह केंद्र ने मामले में हलफनामा दायर कर राज्यों को पक्षकार बनाने की मांग की थी।
आइए जानते हैं आज कोर्ट में क्या-क्या हुआ।
महिला-पुरुष
CJI ने पूछा- शादी के लिए क्या महिला-पुरुष ही जरूरी?
गुरुवार की सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या विवाह के लिए महिला और पुरुष का ही होना जरूरी है।
उन्होंने कहा कि वह समलैंगिक संबंधों को न केवल शारीरिक संबंधों के रूप में देखते हैं, बल्कि एक स्थिर और भावनात्मक संबंध के रूप में ज्यादा देखते हैं।
उन्होंने कहा, "69 साल पुराने विवाह अधिनियम के दायरे का विस्तार करना गलत नहीं है। अब ये रिश्ते हमेशा के लिए टिके रहने वाले हैं।"
अयोध्या
अयोध्या मामले की तर्ज पर होगी सुनवाई
CJI ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह अयोध्या मामले की सुनवाई की थी, उसी तरह इस मामले की भी सुनवाई करेगा। इसका मतलब मामले की रोजाना सुनवाई होगी।
कोर्ट ने आज सुनवाई की पूरी रूपरेखा तय कर दी है और इसके आधार पर ही अब आगे की सुनवाई होगी।
CJI ने कहा, "समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करके हम ये स्वीकार करते हैं कि समलैंगिक संबंध केवल शारीरिक संबंध नहीं हैं।"
अवधारणा
याचिकाकर्ताओं ने भी उठाए शहरी अभिजात्य वाली अवधारणा पर सवाल
याचिकार्ताओं के वकील वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा, "पंजाब के अमृतसर में एक युवती काजल ने दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की। वो दलित हैं, जबकि उनकी चंडीगढ़ निवासी पार्टनर भावना OBC वर्ग से ताल्लुक रखती हैं। उनका परिवार भी साधारण है। उनको शहरी अभिजात्य वर्ग तो कतई नहीं माना जा सकता। ऐसे में केंद्र सरकार की ये शहरी अभिजात्य मानसिकता वाली दलील काल्पनिक और असंवेदनशील है।"
बच्चा गोद
बच्चों को गोद लेने के मुद्दे पर भी हुई बहस
वकील रामचंद्रन ने कहा कि केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के नियम किसी एक सदस्य को तब तक गोद लेने की अनुमति नहीं देते, जब तक वे शादीशुदा न हों।
रामचंद्रन ने कहा, "केवल बच्चे के कल्याण की आवश्यकता वाले कानून को लागू किया जाए तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि विषमलैंगिक युगल है या समलैंगिक युगल। अध्ययनों और सबूतों के अनुसार, समलैंगिक जोड़े बच्चों को पालने के लिए विषमलैंगिक जोड़ों के समान ही उपयुक्त हैं।"
कल की सुनवाई
सुनवाई के दौरान कल क्या हुआ था?
कल सुनवाई के दौरान समलैंगिक विवाह होने की स्थिति में दोनों पार्टनर की आयु को लेकर बहस हुई थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग के लिए तर्क पेश किए थे।
इसी तरह वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा था कि विषमलैंगिकता की धारणा को तोड़ने की आवश्यकता है, वहीं वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने पीठ को LGBTQ कार्यकर्ताओं के उदाहरण दिए थे।
जानकारी
5 जजों की संविधान पीठ कर रही है सुनवाई
इस मामले की सुनवाई 5 जजों की संविधान पीठ कर रही है, जिसमें CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एसआर भट, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।
विरोध
केंद्र सरकार कर रही है समलैंगिक विवाह का विरोध
केंद्र सरकार लगातार समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का विरोध कर रही है।
केंद्र ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं सुनवाई के योग्य नहीं हैं और समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना न्यायपालिका की जगह संसद के क्षेत्राधिकार का मामला है।
केंद्र सरकार ने पहले कहा था कि याचिकाएं पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती हैं और यह सिर्फ एक सीमित शहरी वर्ग के विचारों को दर्शाती हैं।
मौजूदा कानून
समलैंगिक संबंधों पर क्या कहता है मौजूदा कानून?
भारत में कुछ साल पहले तक भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे। 6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए धारा 377 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया था।
इस फैसले में समलैंगिक संबंधों को तो कानूनी मान्यता मिली, लेकिन समलैंगिक विवाह को लेकर कोई बात नहीं की गई। इसी वजह से फिलहाल समलैंगिक विवाह को देश में कानूनी मान्यता नहीं मिली हुई है।