मतदाताओं को देखना होगा मुफ्त लाभों का असर, नहीं रद्द हो सकती पार्टियों की मान्यता- EC
चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त लाभों की घोषणा करना राजनीतिक दलों का नीतिगत फैसला है। आर्थिक रूप से ये निर्णय कितने व्यवहारिक हैं, इसका फैसला करना मतदाताओं के हाथ में है। आयोग ने कहा कि वह चुनाव जीतने वाली पार्टियों द्वारा लिए जाने वाले फैसलों और नीतियों को नियंत्रित नहीं कर सकता। कानून में प्रावधानों के बिना ऐसा करना शक्तियों का दुरुपयोग होगा।
आयोग ने दिया सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब
चुनाव आयोग ने भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की तरफ से दायर जनहित याचिका पर दाखिल किए एक हलफनामे में अपना रूख साफ किया है। इस याचिका में कहा गया था कि चुनावों से पहले जनता के पैसों से बड़े वादों मुफ्त बांटी गईं चीजों से मतदाता प्रभावित होते हैं और इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बुनियाद कमजोर होती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
पार्टियों के चुनाव चिन्ह जब्त करने की की गई थी मांग
याचिकाकर्ता का कहना था कि ऐसे वादों से चुनाव की पवित्रता धूमिल होती है और सभी पार्टियों के लिए बराबरी के मौके नहीं रहते। उपाध्याय ने मांग की थी कि चुनाव आयोग को जनता के पैसे से तर्कहीन मुफ्त चीजें बांटने वाले दलों के चुनाव चिन्ह जब्त करने और उन पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने का आदेश दिया जाए। इसके जवाब में आयोग ने कहा कि उसके पास ऐसे पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है।
कब हो सकता है पंजीकरण रद्द?
अगर किसी पार्टी ने धोखाधड़ी या गलत जानकारी देकर मान्यता ली है, अगर कोई पार्टी भारत के संविधान में आस्था रखना बंद कर देती है या ऐसे ही किसी और कारण के चलते चुनाव आयोग राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द कर सकता है। बता दें कि आयोग ने 2016 में चुनाव सुधारों के लिए 47 प्रस्ताव भेजे थे, जिनमें उचित कारणों से पार्टियों की मान्यता रद्द करने का अधिकार भी मांगा गया था।
पार्टियों के लिए शर्त रखने पर क्या बोला आयोग?
याचिकाकर्ता की मांग थी कि आयोग राजनीतिक दलों के लिए ऐसी शर्तें रख सकता हैं कि वो जनता के पैसे से लोकलुभावन वादे नहीं करेंगे और मुफ्त में सामान नहीं बांटेंगे। इस पर आयोग ने कहा कि इससे ऐसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं, जिनके चलते पार्टियां चुनावी प्रदर्शन से पहले ही मान्यता गंवा देंगी। हालांकि, आयोग ने बताया कि मान्यता प्राप्त दलों को यह घोषणा करनी होती है कि उनके घोषणा पत्र के वादे आचार संहिता के अनुकूल हैं।