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    राजनीति

    चुनावों के ऐलान के साथ ही लागू होने वाली आचार संहिता का क्या मतलब है?

    चुनावों के ऐलान के साथ ही लागू होने वाली आचार संहिता का क्या मतलब है?
    लेखन प्रमोद कुमार
    Jan 08, 2022, 04:18 pm 1 मिनट में पढ़ें
    चुनावों के ऐलान के साथ ही लागू होने वाली आचार संहिता का क्या मतलब है?
    चुनावों के ऐलान के साथ ही लागू होने वाली आचार संहिता का क्या मतलब है?

    शनिवार को चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान कर दिया है। इसके साथ ही इन राज्यों में आचार संहिता लागू हो गई। क्या आप आचार संहिता के बारे में सारी बातें जानते हैं? अगर नहीं तो हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। दरअसल, चुनाव आयोग ने निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव कराने के लिए कुछ नियम बनाए हैं, इन्हें नियमों को आचार संहिता कहा जाता है।

    आचार संहिता के दायरे में कौन-कौन आता है?

    आचार संहिता के तहत सरकारी कर्मचारी, राजनेता, राजनीतिक दलों से जुड़े लोग और मतदाता आते हैं। यानी चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने वाला हर व्यक्ति आचार संहिता के दायरे में आता है।

    सरकारी कर्मचारियों के लिए आचार संहिता

    पूरे देश में आचार संहिता लागू होते ही केंद्र सरकार और राज्यों में लागू होने पर राज्य सरकारों के अधीन काम करने वाले कर्मचारी आचार संहिता हटने तक निर्वाचन आयोग के तहत काम करते हैं। इस दौरान सरकारी पैसे से ऐसी कोई कार्यक्रम या गतिविधि आयोजित नहीं की जा सकती, जिससे किसी राजनीतिक दल का प्रचार होता हो या उसे फायदा मिले। साथ ही चुनाव प्रचार के लिए सरकारी मशीनरी या सरकारी इमारतों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

    चुनाव आयोग नियुक्त करता है पर्यवेक्षक

    इन सब पर निगाह रखने के लिए चुनाव आयोग पर्यवेक्षक नियुक्त करता है। अगर पर्यवेक्षकों को कहीं गड़बड़ी मिलती है तो वे चुनाव आयोग को शिकायत करते है, जिस पर आयोग कार्रवाई करता है।

    राजनेताओं के लिए क्या हैं आचार संंहिता के नियम?

    आचार संहिता लागू होने के बाद राजनीतिक पार्टियों, उनके उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं को किसी भी प्रकार की रैली या जुलूस निकालने से पहले स्थानीय प्रशासन से इजाजत लेनी होती है। नेता अपने भाषणों में जाति, धर्म के आधार पर वोट की अपील नहीं कर सकते और न ही वे ऐसी कोई बात कर सकते हैं, जिससे समाज में नफरत फैलने की आशंका हो। यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि राजनीतिक दल मतदाताओं को किसी प्रकार का लालच न दें।

    आचार संहिता के उल्लंघन पर क्या होता है?

    इन नियमों के उल्लंघन पर कड़ी कार्रवाई का प्रावधान है। अगर कोई उम्मीदवार इन नियमों का पालन नहीं करता है तो उसका नामांकन रद्द किया जा सकता है। कई मामलों में तो नियमों के उल्लंघन करने वालों को जेल भी हो सकती है।

    मतदाताओं के लिए क्या नियम हैं?

    आचार संहिता के दायरे में मतदाता भी आते हैं। आचार संहिता के नियमों के तहत मतदाता को समय पर मतदान केंद्र पहुंचना होता है। मतदाता के पास अपना मतदाता पहचान पत्र या सरकार द्वारा जारी किया गया कोई दूसरा पहचान पत्र होना चाहिए। साथ ही यह उम्मीद भी की जाती है कि मतदाता खुद मतदान करने के साथ-साथ दूसरे मतदाताओं को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।

    सबसे पहले आचार संहिता कब लागू हुई?

    पहली बार आचार संहिता का इस्तेमाल 1960 में केरल विधानसभा चुनावों के दौरान किया गया था। तब कुछ नियम बनाकर पार्टियों को बताया गया था कि वे चुनाव की घोषणा होने के बाद क्या कर सकती हैं और क्या नहीं।

    लगातार होते रहे हैं आचार संहिता में बदलाव

    साल 1967 के लोकसभा और राज्यसभा चुनावों में आचार संहिता लागू की गई थी। इसके बाद 1979 में राजनीतिक दलों से परामर्श के बाद आचार संहिता में कुछ बदलाव किए गए। कुछ साल बाद इसे और मजबूत बनाने के लिए 1991 में इसमें फिर बदलाव हुए। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को चुनाव घोषणापत्र से जुड़े दिशानिर्देश भी इसमें शामिल करने का आदेश दिया था, जिन्हें 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान शामिल किया गया।

    कानूनी तौर पर आचार संहिता का पालन करना जरूरी?

    आचार संहिता को लागू करवाने का कोई कानून नहीं है। इसलिए कानूनी तौर पर इसका पालन करना जरूरी नहीं है, लेकिन इसका उल्लंघन करने पर पर IPC, कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर, 1973 और जनप्रतिनिधि कानून, 1951 के तहत कार्रवाई की जाती है।

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