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    12 साल पहले भी इतनी थी कच्चे तेल की कीमत, लेकिन दोगुने हुए पेट्रोल-डीजल के दाम

    12 साल पहले भी इतनी थी कच्चे तेल की कीमत, लेकिन दोगुने हुए पेट्रोल-डीजल के दाम
    लेखन भारत शर्मा
    Mar 27, 2022, 03:55 pm 1 मिनट में पढ़ें
    12 साल पहले भी इतनी थी कच्चे तेल की कीमत, लेकिन दोगुने हुए पेट्रोल-डीजल के दाम
    देश में 12 साल में 50 प्रतिशत तक महंगा हुआ पेट्रोल-डीजल।

    अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ी कच्चे तेल की कीमतों का हवाला देते हुए तेल कंपनियां लगातार पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा रही हैं। रविवार को भी पेट्रोल-डीजल के दामों में इजाफा किया गया। यूक्रेन युद्ध के कारण तेल की बढ़ती कीमतों को इस वृद्धि का कारण बताया जा रहा है। हालांकि आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि वर्तमान में कच्चा तेल 12 साल पहले की कीमत से थोड़ा ही अधिक है, लेकिन पेट्रोल-डीजल के दाम लगभग दोगुने हो गए हैं।

    मेट्रो शहरों में अब पेट्रोल-डीजल की क्या कीमत?

    देश की राजधानी दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 99.11 रुपये और डीजल की कीमत 90.42 रुपये प्रति लीटर हो गई है। आर्थिक राजधानी मुंबई में आज पेट्रोल 113.88 रुपये प्रति लीटर और डीजल 98.13 रुपये, चेन्नई में पेट्रोल 104.90 रुपये और डीजल 95 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। इसी तरह कोलकाता में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 108.53 रुपये और डीजल की कीमत 93.57 रुपये प्रति लीटर है।

    12 सालों में कैसी रही है कच्चे तेल की कीमतें?

    पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (PPAC) के अनुसार, वर्तमान में कच्चे तेल की कीमत 2011 की तुलना में थोड़ी अधिक हैं। साल 2011 में कच्चा तेल 111.89 डॉलर प्रति बैरल था। उसके बाद 2012 में 109.39, साल 2013 में 107.97, साल 2014 में 105.52, साल 2015 में 84.16, साल 2016 में 46.17, साल 2017 में 47.56, साल 2018 में 56.43, साल 2019 में 69.88, साल 2020 में 60.47, साल 2021 में 44.82 और वर्तमान में 120.70 डॉलर प्रति बैरल है।

    कच्चे तेल की तुलना में तेजी से बढ़े पेट्रोल-डीजल के दाम

    साल 2011 में कच्चे तेल की कीमत 111.89 डॉलर प्रति बैरल होने पर दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 55.37 रुपये प्रति लीटर थी, लेकिन वर्तमान में यह 43.74 रुपये अधिक यानी 99.11 रुपये प्रति लीटर पर है। इसी तरह उस समय राजधानी में डीजल 41.12 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था, जो अब 49.30 रुपये की वृद्धि के साथ 90.42 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। इससे साफ है तेल की कीमतें कंपनियों की मर्जी से बढ़ी है।

    क्या है कीमतों में तेजी से वृद्धि का कारण?

    कच्चे तेल की कीमतों की तुलना में पेट्रोल-डीजल के दामों में तेजी से वृद्धि का बड़ा कारण सरकारी टैक्स है। साल 2011 में पेट्रोल पर आयात शुल्क 14.35 रुपये प्रति लीटर था, जिसे 2021 तक 18.36 रुपये बढ़ाकर 32.98 रुपये कर दिया गया। इसी तरह 2011 में डीजल पर आयात शुल्क 4.60 रुपये प्रति लीटर था, जिसे 2021 तक 27.23 रुपये बढ़ाकर 31.83 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया है। इसके अलावा अन्य टैक्स भी लगाए जाते हैं।

    सरकार ने साल 2020 में बढ़ाया था सबसे अधिक आयात शुल्क

    बता दें कि केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में पेट्रोल-डीजल पर सबसे अधिक आयात शुल्क बढ़ाया था। तब पेट्रोल पर आयात शुल्क को 19.98 रुपये से बढ़ाकर 32.90 रुपये और डीजल पर 15.83 रुपये से बढ़ाकर 31.80 रुपये कर दिया गया था।

    देश में लगातार बढ़ रही है पेट्रोल-डीजल की खपत

    देश में पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी के साथ-साथ खपत में इजाफा हुआ है। PPAC के डाटा के अनुसार, 2016-17 में देश में 237.65 लाख मीट्रिक टन पेट्रोल की खपत हुई थी, जो 2017-18 में 261.74 लाख, 2018-19 में 282.84 लाख, 2019-20 में 299.75 लाख और 2020-21 में 279.51 लाख मीट्रिक टन रही। इसी तरह डीजल की खपत 760.27 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 826.02 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गई थी।

    पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से भरा केंद्र सरकार का खजाना

    पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से भले ही आम आदमी की जेब पर डाका पड़ा है, लेकिन आवश्यक से अधिक टैक्स लगाकर सरकार ने अपना खजाना खूब भरा है। PPAC के डाटा के अनुसार, अकेले आयात शुल्क से सरकार को 2014-15 में 99,059 करोड़, 2015-16 में 1,78,477 करोड़, 2016-17 में 2,42,691 करोड़, 2017-18 में 2,29,716 करोड़, 2018-19 में 2,14,369 करोड़, 2019-20 में 2,23,057 करोड़, 2020-21 में 3,72,970 करोड़ और अप्रैल 2021 से सितंबर 2022 तक 1,70,894 करोड़ की आय हुई है।

    राज्यों को भी हुई है भारी कमाई

    पेट्रोल-डीजल से केंद्र सरकार ही नहीं बल्कि राज्यों ने भी बिक्री कर और VAT के जरिए बड़ी कमाई की है। इसके जरिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 2014-15 में 1,37,157 करोड़, 2015-16 में 1,42,807 करोड़, 2016-17 में 1,66,414 करोड़, 2017-18 में 1,85,850 करोड़, 2018-19 में 2,01,265 करोड़, 2019-20 में 2,00,493 करोड़, 2020-21 में 2,02,937 करोड़ और अप्रैल 2021 से सितंबर 2022 तक 1,21,341 करोड़ की कमाई की है।

    तेल कंपनियों को भी हुआ बड़ा मुनाफा

    पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से न केवल सरकारों बल्कि सरकारी तेल कंपनियों ने भी मोटा मुनाफा कमाया है। केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में दिए गए एक जवाब में बताया गया था कि सरकारी तेल कंपनियों ने साल 2016-17 में 64,333 करोड़, साल 2017-18 में 69,636 करोड़, साल 2018-19 में 69,736 करोड़, 2019-20 में 26,927 करोड़ और 2020-21 में कुल 74,720 करोड़ का मुनाफा हुआ है। ऐसे में सरकार और कंपनियां मोटी कमाई कर रही है।

    मूडीज ने कही तेल कंपनियों को 19,000 करोड़ का घाटा होने की बात

    रेटिंग एजेंसी मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नवंबर, 2021 से मार्च, 2022 के बीच भारत की तेल कंपनियों को लगभग 19,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। ऐसे में ये कंपनियां घाटा पूरा करने के लिए फिर से दाम बढ़ा सकती है।

    तेल कंपनियों के हाथों में हैं कीमतें

    पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के पीछे बड़ा कारण इस पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण नहीं होना है। सरकार ने जून 2010 में तेल कंपनियों को पेट्रोल और अक्टूबर 2014 में डीजल की कीमतें निर्धारित करने का अधिकार दिया था। इसके बाद तेल कंपनियों ने अप्रैल 2017 में फैसला किया कि आम आदमी के फायदे के लिए पेट्रोल-डीजल के दाम प्रतिदिन तय किए जाएंगे। हालांकि इससे आम आदमी को तो लाभ नहीं हुआ, लेकिन सरकार और कंपनियों को भरपूर फायदा हुआ।

    आम आदमी की कमाई में आई गिरावट

    देश में एक तरफ पेट्रोल-डीजल के दाम सहित महंगाई लगातार बढ़ रही है, वहींं इसके विपरीत आम आदमी की कमाई घट गई है। पिछले साल कराए गए आर्थिक सर्वे में सामने आया था कि 2019-20 में देश में प्रत्येक व्यक्ति की सालाना कमाई 1.34 लाख रुपए थी, जो 2020-21 में घटकर 1.26 लाख रुपए रह गई। इस रिपोर्ट को संसद में भी पेश किया गया था, लेकिन सरकार ने कोरोना वायरस महामारी को कारण बताते हुए अपना बचाव किया था।

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