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होम / खबरें / देश की खबरें / क्या राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर लगेगी अस्थायी रोक? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
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क्या राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर लगेगी अस्थायी रोक? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

क्या राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर लगेगी अस्थायी रोक? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
लेखन मुकुल तोमर
May 10, 2022, 04:24 pm 3 मिनट में पढ़ें
क्या राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर लगेगी अस्थायी रोक? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
क्या राजद्रोह कानून के इस्तेमाल पर लगेगी अस्थायी रोक? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

आज सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह के कानून की संवैधानिक वैधता पर महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि जब तक वह (सरकार) इस कानून की समीक्षा करती है, तब तक इसके इस्तेमाल पर रोक लगाने पर उसका क्या विचार है। कोर्ट ने सरकार को जवाब देने के लिए कल तक का समय दिया है। सरकार ने कल ही कोर्ट से कहा था कि वह राजद्रोह के कानून की समीक्षा करने को तैयार है।

सुनवाई
कोर्ट ने सरकार से पूछा- समीक्षा करने में कितना समय लगेगा

आज सुनवाई शुरू होने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि उसे राजद्रोह कानून की समीक्षा और इस पर पुुनर्विचार करने में कितना समय लगेगा। इसका जवाब देते हुए सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कानून पर पुनर्विचार की प्रक्रिया जारी है। इस पर मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना ने कहा, "हमें तय करना होगा कि कितना समय देना है। (राजद्रोह के) लंबित मामलों और इसके दुरुपयोग को लेकर चिंताएं हैं।"

सवाल
कोर्ट ने पूछा- राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को कैसे रोकेगी सरकार

CJI रमन्ना ने मेहता से कहा, "केंद्र के हलफनामे में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नागरिक स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दों से अवगत रहे हैं और उनका मानना है कि आजादी के 75 साल होने पर देश को पुराने औपनिवेशक कानूनों समेत अपने औपनिवेशक बोझ को कम करना चाहिए... राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर चिंताएं हैं। अटॉर्नी जनरल ने खुद कहा कि हनुमान चालीसा पढ़ने पर भी ऐसे मामले दर्ज हो रहे हैं। आप इसका समाधान कैसे करेंगे?"

सुझाव
कोर्ट ने सरकार से 3-4 महीने में पुनर्विचार की प्रक्रिया खत्म करने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सुझाव दिया कि वह तीन-चार महीने में राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार की प्रक्रिया खत्म कर ले। इसके साथ ही उसने सरकार को राज्यों को इस अंतराल में राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल न करने का निर्देश देने का सुझाव दिया। मेहता ने कहा कि वह सरकार के साथ इस पर चर्चा कर सकते हैं और इस संबंध में गाइडलाइंस बनाई जा सकती हैं। कोर्ट ने उनसे कल जवाब दाखिल करने को कहा है।

जानकारी
राजद्रोह के लंबित मामलों पर भी मांगी गई सरकार की राय

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से राजद्रोह के तहत दर्ज मामलों के बारे में उसे सूचित करने और इनका क्या होगा, इस पर अपनी राय देने को भी कहा है। मामले पर अगली सुनवाई कल ही होगी।

धारा 124A
क्या है राजद्रोह का कानून?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A को राजद्रोह का कानून कहा जाता है। इसके तहत अगर कोई व्यक्ति सरकार के विरोध में कुछ बोलता-लिखता है, ऐसी सामग्री का समर्थन करता है या राष्ट्रीय चिन्हों और संविधान को नीचा दिखाने की गतिविधि में शामिल होता है तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है। देश के सामने संकट पैदा करने वाली गतिविधियों का समर्थन करने और इनका प्रचार-प्रसार करने पर भी राजद्रोह का मामला हो सकता है।

दुरूपयोग
अंग्रेजों ने आजादी के आंदोलन को दबाने के लिए किया था इस कानून का इस्तेमाल

अंग्रेजों ने 1870 में धारा 124A को IPC में जोड़ा था और आजादी के समय तक भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया गया। इस कानून के तहत 1908 में बाल गंगाधर तिलक और 1922 में महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार किया गया था। आजादी के बाद भी विभिन्न सरकारें इस कानून का इस्तेमाल अपने आलोचकों को दबाने के लिए करती आई हैं। हालिया समय में इसका दुरूपयोग बढ़ गया है।

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मुकुल तोमर
मुकुल तोमर
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IIMC से पढ़ाई के बाद पिछले चार साल से नौकरी। 2019 की शुरूआत से न्यूजबाइट्स के साथ। दिल्ली के दंगों से अमेरिका के प्रदर्शनों और चीन के पंगों तक, वैश्विक और राजनीतिक महत्व की हर बड़ी हलचल पर नजर। खबर के नाम पर "ज्ञान" देने से बचता हूं।
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