सुप्रीम कोर्ट ने दिया एक्टिविस्ट की रिहाई का आदेश, फेसबुक पोस्ट के कारण लगा था रासुका
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत हिरासत में लिए गए मणिपुर के राजनीतिक कार्यकर्ता एरेंड्रो लीचोम्बम की तत्काल रिहाई के आदेश दिए हैं। 37 वर्षीय लीचोम्बम ने फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि गाय का गोबर और गौमूत्र कोरोना वायरस के खिलाफ काम नहीं करते। इसी फेसबुक पोस्ट को लेकर उन पर रासुका लगा दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आज शाम 5 बजे तक लीचोम्बम की रिहाई के आदेश जारी किए हैं।
किस पोस्ट के लिए लगा रासुका?
इसी साल मई में मणिपुर भाजपा के पूर्व प्रमुख एक टिकेंद्र सिंह सिंह की कोरोना संक्रमण के कारण मौत हो गई थी। उनकी मौत के बाद 13 मई को लीचोम्बम ने फेसबुक पर लिखा, 'गाय का गोबर और गौमूत्र काम नहीं करता। रेस्ट इन पीस।' इस पोस्ट को लेकर मणिपुर भाजपा के सचिव पी प्रेमानंद मीतेई और प्रदेश उपाध्यक्ष ऊषाम देनेब सिंह ने FIR दर्ज कराई थी। बाद में पुलिस ने लीचोम्बम को रासुका के तहत हिरासत में ले लिया।
याचिकाकर्ता को हिरासत में रखना जीवन के अधिकार का उल्लंघन- कोर्ट
सोमवार को सुनवाई के दौरान सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने मामले को कल तक स्थगित करने की मांग की, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह की बेच ने कहा "हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता को लगातार हिरासत में रखना जीवन और स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन होगा। हम अंतरिम आदेश के जरिए 1,000 रुपये के निजी मुचलके पर रिहाई का निर्देश देते हैं।" लीचोम्बम की पिता की याचिका पर यह आदेश आया है।
कोर्ट ने दिया तुरंत रिहाई का आदेश
कोर्ट ने लीचोम्बम के पिता की ओर से पेश वकील को सुनने के बाद कहा कि इस व्यक्ति को एक दिन के लिए भी हिरासत में रखने की अनुमति नहीं दे सकते। कोर्ट ने रजिस्ट्रार को आज शाम पांच बजे से पहले लीचोम्बम की रिहाई के लिए मणिपुर सेंट्रल जेल को आदेश देने का निर्देश दिया है। पिछले साल उन पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था, जिसमें अब वो जमानत पर है।
राजद्रोह के मामले का भी सामना कर रहे लीचोम्बम
NDTV के अनुसार, पिछले साल जून में लीचेम्बम पर फेसबुक पोस्ट को लेकर ही राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में फिलहाल उन्हें जमानत मिली हुई है। बता दें कि बीते सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A यानि राजद्रोह के कानून पर सख्त टिप्पणी करते हुए इसे औपनिवेशक कानून बताया और आजादी के 75 साल बाद भी इसके वजूद में होने पर सवाल खड़े किए थे।