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    खबरों से गायब रहने वाला लक्षद्वीप इन दिनों सुर्खियों में क्यों है?

    खबरों से गायब रहने वाला लक्षद्वीप इन दिनों सुर्खियों में क्यों है?
    लेखन प्रमोद कुमार
    May 27, 2021, 04:25 pm 1 मिनट में पढ़ें
    खबरों से गायब रहने वाला लक्षद्वीप इन दिनों सुर्खियों में क्यों है?

    अक्सर खबरों से गायब रहने वाला केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप इन दिनों चर्चा में है। लोग यहां के प्रशासक प्रफुल पटेल के खिलाफ जनविरोधी फैसले लेने का आरोप लगा रहे हैं। उनके कुछ फैसलों का विरोध कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और खुद भाजपा कर रही है। भाजपा के कई पदाधिकारियों ने इन फैसलों के विरोध में पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। वहीं पटेल का कहना है कि लक्षद्वीप में सब कुछ नियमों के मुताबिक हो रहा है।

    प्रशासक पर लगे संघ का एजेंडा आगे बढ़ाने के आरोप

    36 द्वीपों के समूह लक्षद्वीप की आबादी 70,000 से कम है और यहां कोई विधानसभा नहीं है। केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते राष्ट्रपति की तरफ से यहां प्रशासक की नियुक्ति की जाती है। फिलहाल प्रफुल पटेल यहां के प्रशासक है। प्रधानमंत्री मोदी के करीबी माने जाने वाले पटेल एक समय गुजरात के गृह मंत्री भी रह चुके हैं। इसलिए कुछ लोग यह भी आरोप लगा रहे हैं कि वो संघ के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।

    विवाद की जड़ में क्या है?

    प्रफुल पटेल लक्षद्वीप में कुछ कानून बनाने के लिए मसौदे लेकर आए हैं। इनमें से पहला लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनिमयन, दूसरा असमाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, तीसरा पंचायत अधिसूचना का मसौदा और लक्षद्वीप पशु सरंक्षण विनियमन, 2021 है। फिलहाल इनको मसौदों के रूप में लाया गया है। केंद्र सरकार की तरफ से इन्हें हरी झंडी मिलने के बाद ये कानून बन जाएंगे। यहां के लोग और राजनीतिक दल इन संभावित कानूनों का ही विरोध कर रहे हैं।

    किस मसौदे पर क्या विवाद?

    लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन के मसौदे को इस साल जनवरी में पेश किया गया था। इसके तहत इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से जुड़े कामों के लिए स्थानीय लोगों को उनकी जगहों या जमीनों से हटाने और दूसरी जगह पर विस्थापित करने का प्रावधान किया गया है। साथ ही किसी भी तरह की अचल संपत्ति विकास से जुड़े काम के लिए दी जा सकती है। लोगों को डर है कि इससे आने वाले समय में उनकी जमीनें छीन सकती हैं।

    असमाजिक गतिविधि रोकथाम कानून पर क्या विवाद?

    असमाजिक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम के मसौदे में लिखा गया है कि बिना सार्वजनिक जानकारी दिए किसी भी व्यक्ति को एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। इसके विरोधियों का कहना है कि जब लक्षद्वीप में अपराध दर देश में सबसे कम है तो ऐसे कड़े कानून की कोई जरूरत नहीं है। आलोचकों का कहना है कि नए कानूनों के विरोध में खड़े होने वाले लोगों को चुप कराने के लिए यह अधिनियम लाया जा रहा है।

    गुंडा एक्ट कहकर विरोध कर रहे लोग

    इस कानून को स्थानीय लोग गुंडा एक्ट भी कह रहे हैं। लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैसल ने BBC से कहा, "ये कानून इसलिए लाए जा रहे हैं ताकि कोई सड़क पर उतर कर विरोध न कर सके। ये हमारे संवैधानिक अधिकार छीनने की कोशिश है।"

    पंचायत अधिसूचना से जुड़ा क्या विवाद?

    तीसरा विवादित मसौदा पंचायत अधिसूचना से जुड़ा हुआ है। इसमें कहा गया है कि ऐसे किसी व्यक्ति को पंचायत चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं होगी, जिसके दो से अधिक बच्चे हैं। इसके विरोध में लोगों का आरोप है कि प्रशासक इस कानून के जरिये पंचायत और पंचायत सदस्यों की ताकत कम करना चाहते हैं। यह लोकतांत्रिक अधिकार छीनने की कोशिश हो रही है। फैसल का कहना है कि प्रशासक को ताकत देने के लिए ये कानून लाया जा रहा है।

    बीफ बैन का प्रावधान

    2011 की जनगणना के अनुसार, लक्षद्वीप की 96 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है। इन लोगों का कहना है कि बीफ उनका मुख्य भोजन है। चौथा विवादित मसौदा बीफ से ही जुड़ा हुआ है। दरअसल, लक्षद्वीप पशु सरंक्षण विनियमन के लागू होने के बाद यहां किसी भी जानवर को मारना बेहद मुश्किल हो जाएगा। दरअसल, जानवरों को मारने के लिए फिटनेस सर्टिफिकेट की जरूरत होगी, लेकिन गाय, भैंस, बछड़ा और बैल आदि के लिए यह सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा।

    बीफ खाने, रखने और बेचने की नहीं होगी इजाजत

    इस मसौदे की एक धारा में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बीफ या बीफ से बनी चीजों को किसी भी रूप में बेचने, रखने, स्टोर करने या कहीं ले जाने की इजाजत नहीं होगी। गाय की हत्या पर 10 साल से उम्रकैद तक की सजा और पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। वहीं गौमांस प्रतिबंध का उल्लंघन करने के दोषी को न्यूनतम सात साल की सजा हो सकती है।

    "खाना खाने से रोकने की कोशिश"

    इस मसौदे का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यहां ज्यादातर लोग मुसलमान है और इस कानून के जरिये उन्हें खाना खाने से रोकने की कोशिश हो रही है। इसके अलावा बीफ के कारोबार से जुड़े लोगों पर रोजगार का संकट मंडरा रहा है। इसका विरोध कर रहे सांसद फैसल ने कहा, "वो हमें अपनी पसंद का खाना नहीं खाने देना चाहते। मिड डे मील में भी बच्चों को बीफ देना बंद कर दिया गया है।"

    पटेल पर कोरोना से निपटने में असफल रहने के आरोप

    इन सबके अलावा प्रफुल पटेल पर कोरोना संकट से निपटने में असफल रहने के भी आरोप लगते हैं। दरअसल, इस साल जनवरी से पहले केंद्र शासित प्रदेश में कोरोना का कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था, लेकिन उसके बाद मामले तेजी से बढ़ने लगे। अब तक यहां लगभग 6,500 लोग संक्रमित पाए जा चुके हैं और 24 लोगों की मौत हुई है। लोगों का आरोप है कि नियमों में ढील देने के कारण यहां मामले बढ़ने लगे हैं।

    प्रफुल पटेल का इन आरोपों पर क्या कहना है?

    प्रफुल पटेल ने इस सभी मसौदों को कानून के तहत बताया है और आलोचकों पर अपने स्वार्थ के लिए विरोध करने का आरोप लगाया है। पहले मसौदे को लेकर उन्होंने इसे लक्षद्वीप के विकास के लिए लाया जा रहा है। लोगों की जमीन जाने की चिंता गलत है। दूसरे मसौदा को लेकर उन्होंने कहा कि हालिया कुछ अपराधिक घटनाओं को देखते हुए इसकी जरूरत पड़ी है। निर्दोष लोगों को इससे डरने की जरूरत नहीं है।

    बीफ बैन को सांप्रदायिक रंग देने की हो रही कोशिश- पटेल

    पंचायत अधिसूचना के विरोध में लगाए जा रहे आरोपों पर जवाब देते हुए पटेल ने कहा कि ऐसे नियम पहले से दूसरे राज्यों में लागू हैं और इनमें कुछ गलत नहीं है। वहीं बीफ को लेकर लाए जा रहे कानून पर उन्होंने कहा कि इसे सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया जा रहा है। इस पर पहले चर्चा हो चुकी है और देश के कई और राज्यों में ऐसा नियम लागू है।

    कई पार्टियों ने की पटेल को हटाने की मांग

    कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी समेत कई राजनैतिक दल पटेल के इन मसौदा का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व प्रमुख और लोकसभा सांसद राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा, 'लक्षद्वीप भारत का कहना है। सत्ता में बैठे कुछ अज्ञानी लोग इसे नष्ट कर रहे हैं। मैं लक्षद्वीप के लोगों के साथ खड़ा हूं।' कांग्रेस समेत कई पार्टियों के नेताओं और सांसदों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर पटेल को पद से हटाने की मांग की है।

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