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    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून को औपनिवेशक बताया, सरकार से पूछा- अब इसकी क्या जरूरत?
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून को औपनिवेशक बताया

    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून को औपनिवेशक बताया, सरकार से पूछा- अब इसकी क्या जरूरत?

    लेखन मुकुल तोमर
    Jul 15, 2021
    12:55 pm

    क्या है खबर?

    सुप्रीम कोर्ट ने आज तल्ख टिप्पणी करते हुए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A यानि राजद्रोह के कानून को औपनिवेशक बताया और आजादी के 75 साल बाद देश में इसकी जरूरत पर सवाल उठाए।

    इस कानून के खिलाफ दायर की गई याचिकाओं को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि इसका दुरूपयोग किया जा सकता है। उसने कहा कि अंग्रेजों ने इसका इस्तेमाल देश के स्वतंत्रता सेनानियों के दबाने के लिए किया था।

    टिप्पणी

    महात्मा गांधी के खिलाफ हुआ था राजद्रोह के कानून का इस्तेमाल- CJI

    धारा 124A के खिलाफ दायर याचिका को स्वीकार करते हुए मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना ने कहा, "राजद्रोह का कानून एक औपनिवेशक कानून है और अंग्रेजों ने इसका इस्तेमाल हमारी आजादी को दबाने के लिए किया था। इसका महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था। क्या देश को आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है?"

    उन्होंने कहा कि उनकी चिंता इसके दुरुपयोग और अधिकारियों की जवाबदेही न होने को लेकर है।

    टिप्पणी

    संस्थानों को कानून से गंभीर खतरा- CJI

    CJI ने कानून को संस्थानों के लिए गंभीर खतरा भी बताया। उन्होंने कहा, "दुरूपयोग की बहुत अधिक संभावना है। हम इसकी बढ़ई से तुलना कर सकते हैं जो लकड़ी काटने की बजाय पूरे जंगल को ही काट देता है। ये इसका प्रभाव है।"

    उन्होंने यह भी कहा कि इस कानून के इतिहास में आरोपियों के दोषी सिद्ध होने की दर न्यूनतम रही है।

    इन्हीं आधारों पर कोर्ट इसकी समीक्षा करने को तैयार हो गया और केंद्र को नोटिस जारी किया।

    सुनवाई

    रिटायर्ड सैन्य अधिकारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड मेजर-जनरल एसजी वोम्बत्केरे की याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही।

    उन्होंने अपनी याचिका में कहा था कि धारा 124A पूरी तरह से असंवैधानिक है और इसे बिना संदेह के स्पष्ट तौर पर निरस्त कर देना चाहिए।

    इसमें यह भी कहा गया है कि कोई भी कानून जो "सरकार के प्रति असंतोष" की अस्पष्ट परिभाषा के आधार पर अभिव्यक्ति का अपराधीकरण करता है, वह बोलने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित पाबंदी है।

    अन्य याचिकाएं

    राजद्रोह के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी CJI की बेंच

    बता दें कि इससे पहले भी कई बार सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह के कानून के खिलाफ याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की एक दूसरी बेंच ने इस कानून को चुनौती देने वाली दो पत्रकारों का याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था।

    अब CJI रमन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच इन सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगी। इस बेंच में जस्टिस एस बोपन्ना और ऋषिकेश रॉय भी शामिल हैं।

    कानून

    क्या है राजद्रोह की धारा 124A?

    धारा 124A के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति देश की सरकार के विरोध में कुछ बोलता या लिखता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ-साथ संविधान को नीचा दिखाने की गतिविधि में शामिल होता है तो उसे उम्रकैद की सजा हो सकती है।

    वहीं देश के सामने संकट पैदा करने वाली गतिविधियों का समर्थन करने या प्रचार-प्रसार करने पर भी राजद्रोह का मामला हो सकता है।

    दुरूपयोग

    अंग्रेजों ने आजादी के आंदोलन को दबाने के लिए किया था इस कानून का इस्तेमाल

    अंग्रेजों ने 1870 में धारा 124A को IPC में जोड़ा था और आजादी के समय तक भारतीय राष्ट्रवादियों और स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस कानून का इस्तेमाल किया गया।

    इस कानून के तहत 1908 में बाल गंगाधर तिलक और 1922 में महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार किया गया था।

    आजादी के बाद भी विभिन्न सरकारें इस कानून का इस्तेमाल अपने आलोचकों को दबाने के लिए करती आई हैं। हालिया समय में इसका दुरूपयोग बढ़ गया है।

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