क्यों चर्चा में हैं NSA और PSA, इन दोनों कानूनों में क्या अंतर हैं?

उत्तर प्रदेश के डॉक्टर कफील खान पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। उन पर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ भड़काऊ बयान देने के लिए देने के लिए NSA लगाया गया है। दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को जन सुरक्षा कानून (PSA) के तहत हिरासत में रखा गया है। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किया है। आइये, जानते हैं कि NSA और PSA क्या हैं।
कफील पर 12 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) में CAA के खिलाफ भड़काऊ बयान देने का आरोप है। अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि CAA मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की साजिश है। इसे लेकर उन्हें 29 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था। सोमवार को अदालत ने उनकी रिहाई के आदेश दे दिये थे, लेकिन उनकी रिहाई से पहले उन पर NSA लगा दिया गया और वो जेल से बाहर नहीं आ पाए।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने कार्यकाल में 23 सितंबर, 1980 को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA लेकर आई थीं। यह कानून देशभर में लागू होता है और इसका इस्तेमाल देश की सुरक्षा और विदेशी देशों के साथ संबंध, कानून व्यवस्था बनाए रखने और किसी विदेशी को भारत से बाहर करने के मामलों में हो सकता है। इसके तहत देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए खतरा माने जाने वाले किसी व्यक्ति को ऐहतियातन हिरासत में रखा जा सकता है।
पुलिस को दूसरे मामलों के तहत हिरासत में लिए जाने वाले लोगों की गिरफ्तारी का कारण बताना होता है। साथ ही गिरफ्तार किए गये लोगों के पास जमानत दाखिल करने, वकील चुनने और सलाह लेने का अधिकार होता है। इसके अलावा इन लोगों को हिरासत में लिए जाने के 24 घंटे के अंदर कोर्ट के सामने पेश करना अनिवार्य होता है। NSA के तहत हिरासत में लिए जाने वाले लोगों को इनमें से एक भी अधिकार नहीं मिलता।
NSA के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पुलिस बिना कारण बताए पांच दिन और अपवाद मामलों में 10 दिनों तक हिरासत में रख सकती है। अगर गिरफ्तारी का कारण बताना भी होता है तो पुलिस उस सूचना को गुप्त रख सकती है जिसे सार्वजनिक करना जनहित में नहीं है और ऐसा करना देश की सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो सकता है। कठोर प्रावधानों और पुलिस को अत्यधिक शक्तियां देने के कारण NSA हमेशा ही विवादों में रहा है।
NSA के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर कोर्ट के सामने पेश करना भी जरूरी नहीं है और पुलिस आरोप तय किए बिना उसे एक साल तक जेल में रख सकती है। गिरफ्तार व्यक्ति को एक हाई कोर्ट एडवाइजरी बोर्ड के सामने अपील करने का अधिकार होता है, जिसका गठन सरकार करती है। हालांकि, बोर्ड में सुनवाई के दौरान उसे किसी भी वकील की मदद लेने की इजाजत नहीं होती।
पिछले साल जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने से पहले उमर अब्दुला को हिरासत में लिया गया था। 5 अगस्त, 2019 से CrPC की धारा 107 के तहत हिरासत में थे। इसके तहत उनकी ऐहतियातन हिरासत 5 फरवरी 2020 को खत्म होने वाली थी, लेकिन उससे पहले सरकार ने उनके खिलाफ जन सुरक्षा कानून (PSA) लगा दिया। उनके अलावा उनके पिता फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को भी PSA के तहत हिरासत में रखा गया है।
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और उमर अब्दुला के दादा शेख अब्दुल्ला की सरकार लकड़ी की तस्करी रोकने और तस्करों पर लगाम लगाने के लिए जन सुरक्षा कानून लेकर आई थी। इसे 8 अप्रैल, 1978 को वहां के राज्यपाल से मंजूरी मिली थी। इसके तहत सरकार 18 साल से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए हिरासत में रख सकती है। एक डिविजनल कमिश्नर या जिलाधिकारी PSA लगाए जाने का आदेश जारी कर सकता है।
PSA के तहत यदि राज्य सरकार को लगे कि किसी व्यक्ति के कृत्य से सुरक्षा को खतरा है तो उसे दो सालों तक और किसी के कृत्य से कानून-व्यवस्था बनाए रखने में बाधा उत्पन्न होती हो तो एक साल तक हिरासत में रख सकते हैं।
PSA के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को जिलाधिकारी पांच दिनों के भीतर लिखित में उसे हिरासत में लेने का कारण बताएगा। अपवाद के मामलों में यह समय 10 दिन भी हो सकता है। हालांकि, जिलाधिकारी के पास यह अधिकार होता है कि वह हिरासत में लिए जाने के सभी कारणों का खुलासा न करें। इस कानून के तहत हिरासत में रखे गए लोगों की एक गैर-न्यायिक समिति समीक्षा करती है।