चुनावों के दौरान मुफ्त उपहारों के वादों पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, केंद्र को भेजा नोटिस
क्या है खबर?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले 'मुफ्त उपहारों' के वादों को गंभीर मानते हुए हैरानी जताई कि केंद्र सरकार इस पर अपना स्टैंड साफ क्यों नहीं कर रही है।
कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या वह चुनाव आयोग के कहने पर राजनीतिक दलों को इससे रोक सकता है और क्या इससे निपटने के लिए वित्त आयोग की राय ली जा सकती है?
आइये यह पूरी खबर जानते हैं।
मामला
जनहित याचिका पर हो रही सुनवाई
वरिष्ठ वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर राजनीतिक दलों की तरफ से मुफ्त उपहारों के वादों पर रोक लगाने की मांग की है।
उनका तर्क है कि सरकारी पैसे से तर्कहीन मुफ्त उपहारों का वादा या वितरण निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव के लिए ठीक नहीं है और यह चुनावी प्रक्रिया की शुद्धता को खराब करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी करते हुए 3 अगस्त को अगली सुनवाई की बात कही है।
जानकारी
चुनाव आयोग ने दी यह राय
अप्रैल में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करते हुए चुनाव आयोग ने कहा था कि चुनाव से पहले या बाद में मुफ्त उपहार वितरित करना राजनीतिक पार्टियों का फैसला है। इस तरह की नीतियों का असर और यह देखना कि ये आर्थिक रूप से व्यवहारिक है या नहीं, यह मतदाताओं का काम है।
चुनाव आयोग ने कहा कि वह राज्य की नीतियों और पार्टियों के फैसलों को नियंत्रित नहीं कर सकता।
टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की?
मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन्ना के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि वह देखेगी कि किस हद तक राजनीतिक पार्टियों को मुफ्त के तर्कहीन उपहारों को बांटने से रोक सकती है।
साथ ही बेंच ने ASG से पूछा कि इस मामले पर कम से कम बहस शुरू करने के लिए वह किस एजेंसी को काम पर लगा सकती है।
बता दें, जनवरी में भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसी मामले में नोटिस जारी किया था।
सुनवाई
केंद्र सरकार ने दी यह दलील
मंगलवार की सुनवाई के दौरान ASG ने कोर्ट को बताया कि तथ्यों को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग को इन मामलों से निपटना चाहिए। वो ऐसे वादों पर सामान्य निर्देशों की मांग कर रहे हैं, जबकि कोर्ट से ऐसे निर्देश नहीं दिए जा सकते।
इस पर CJI ने कहा, "आप ये लिखित में क्यों नहीं देते कि हम कुछ नहीं कर सकते। चुनाव आयोग इस पर फैसला ले लेगा।"
जानकारी
सरकार ने भी माना गंभीर मुद्दा
जब ASG ने फिर दोहराया कि चुनाव आयोग को ही इस पर फैसला लेना चाहिए, तब CJI ने पूछा कि क्या केंद्र सरकार इस मुद्दे को गंभीर मानती है या नहीं? इसके जवाब में ASG ने कहा कि यह गंभीर मुद्दा है।
इसके बाद CJI ने कहा, "मुझे समझ नहीं आता कि आप स्टैंड क्यों नहीं ले रहे हैं। आप हिचकिचा क्यों रहे हैं। आप स्टैंड लें। फिर हम देखेंगे कि मुफ्त उपहारों के वादे जारी रहने चाहिए या नहीं।"