
इलाहाबाद हाई कोर्ट के विवादित फैसलों पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, कहा- क्यों दे रहे ऐसे बयान
क्या है खबर?
पिछले दिनों इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा यौन अपराधों से जुड़े अलग-अलग मामलों में सुनाए गए फैसलों और टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है।
ये मामले "लड़की के स्तन पकड़ना अपराध नहीं" और "महिला ने खुद ही मुसीबत को बुलाया" जैसी टिप्पणियों से जुड़े हैं।
कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इन मामलों की समीक्षा के लिए 4 सप्ताह बाद का समय तय किया है और ऐसी टिप्पणियों से बचने को कहा है।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ने क्या कहा?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश राम मनोहर मिश्रा के "लड़की के स्तन पकड़ना अपराध नहीं" आदेश का स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रहा था।
इसी बीच मंगलवार को जब दोबारा सुनवाई हुई तो कोर्ट ने बताया कि एक और न्यायाधीश ने दूसरा आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा, "जमानत दी जा सकती है, लेकिन इस बयान की क्या जरूरत है कि पीड़िता ने खुद ही मुसीबत बुलाई थी, ऐसे बयान से बचना चाहिए।"
मामला
क्या है इलाहाबाद हाई कोर्ट का पहला विवादित बयान के साथ फैसला?
न्यायमूर्ति मिश्रा 17 मार्च को रेप से जुड़े मामले में निचली कोर्ट द्वारा आरोपियों को समन जारी करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।
इसपर उन्होंने कहा, "केवल यह तथ्य कि आरोपियों ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा, उसके पायजामे की डोरी तोड़ी और पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की, यह रेप के प्रयास का मामला नहीं बनता।"
फैसले को 'वी द वूमन ऑफ इंडिया' और पीड़िता की मां ने चुनौती दी थी।
बयान
क्या है इलाहाबाद हाई कोर्ट का दूसरे विवादित बयान के साथ फैसला?
10 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह का एक फैसला सामने आया था, जिसमें उन्होंने एक रेप आरोपी को यह कहते हुए जमानत दे दी कि "पीड़िता ने मुसीबत को खुद आमंत्रित किया था और वह इसके लिए स्वयं जिम्मेदार भी है।"
जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सिंह ने कहा था कि पीड़िता शराब के नशे में खुद आराम करने के लिए आरोपी के घर गई थी।