सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से मांगे आनंद मोहन की रिहाई से संबंधित दस्तावेज
पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई। इस दौरान बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब देने के लिए वक्त मांगा। कोर्ट ने सरकार को 1 अगस्त तक जवाब देने की मोहलत दी है। कोर्ट ने वो कागजात भी पेश करने को कहा है, जिनके आधार पर आनंद की रिहाई की गई। मामले में अगली सुनवाई अब 8 अगस्त को होगी।
आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ दायर की गई है याचिका
बता दें कि बाहुबली आनंद मोहन को गोपालगंज के जिला अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा हुई थी। बिहार सरकार ने कानून में फेरबदल कर पिछले महीने उन्हें जेल से रिहा कर दिया था। इसके खिलाफ कृष्णैया की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। 8 मई को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए बिहार सरकार और आनंद को नोटिस जारी किया था।
क्या है मामला?
5 दिसंबर, 1994 को गोपालगंज के तत्कालीन जिला अधिकारी जी कृष्णैया की उग्र भीड़ ने हत्या कर दी थी। भीड़ को उकसाने का आरोप बाहुबली आनंद मोहन पर लगा और उसकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को इसमें आरोपी बनाया गया था। साल 2007 में पटना हाई कोर्ट ने आनंद समेत 3 लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी। 2008 में इस सजा को कम कर उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।
बिहार सरकार ने नियम बदलकर की थी आनंद की रिहाई
बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को कारा अधिनियम, 2012 के नियम 481 (1) (क) में संशोधन किया था। इससे पहले सरकारी कर्मचारी की हत्या के दोषी को अंतिम सांस तक जेल में ही रहना पड़ता था। सरकार ने इसमें से 'सरकारी सेवक की हत्या' वाला वाक्यांश हटा दिया। इस संशोधन के बाद ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या भी साधारण हत्या की श्रेणी में आ गई। इसके बाद 27 अप्रैल को आनंद मोहन को रिहा कर दिया गया।
कौन है आनंद मोहन?
आनंद बिहार के सहरसा जिले से ताल्लुक रखते हैं। 1990 बिहार चुनाव में जनता दल के टिकट से उन्होंने महिसी विधानसभा सीट से चुनाव जीता था। वह विधायक रहते हुए एक कुख्यात सांप्रदायिक गिरोह के अगुवा थे, जो आरक्षण के विरोध में था। जब OBC आरक्षण को लेकर मंडल आयोग की सिफारिश का जनता दल ने समर्थन किया तो आनंद ने जनता दल से नाता तोड़कर 1993 में खुद की बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) बना ली।