बिहार: जिलाधिकारी की हत्या करने वाले डॉन आनंद मोहन सिंह जेल से रिहा
बिहार के पूर्व सांसद और डॉन आनंद मोहन सिंह को गुरुवार को 14 साल बाद सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया। जेल अधिकारियों ने बताया कि सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें सुबह 4:30 बजे रिहा किया गया। आनंद मोहन गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे थे। बिहार सरकार ने हाल ही में कारा अधिनियम में बदलाव किया था, जिसके बाद उनकी रिहाई संभव हुई है।
किस नियम के तहत हुई आनंद मोहन की रिहाई?
बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को कारा अधिनियम, 2012 के नियम 481 (1) (क) में संशोधन किया था। इसमें से उस वाक्यांश को हटा दिया गया था, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था। इस संसोधन के बाद ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या जल्द रिहाई के लिए अपवाद की श्रेणी में नहीं आएगी, बल्कि इसे भी एक साधारण हत्या माना जाएगा। इसी के तहत डॉन आनंद मोहन की रिहाई हुई है।
बिहार सरकार के आदेश के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में याचिका दाखिल
आनंद मोहन की रिहाई को लेकर बिहार सरकार की खूब अलोचना भी हो रही है और विपक्ष सरकार पर हमलावर है। इसी बीच पटना हाई कोर्ट में सरकार के फैसले के खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। इस याचिका में बिहार सरकार द्वारा कारा अधिनियम में बदलाव के आदेश को निरस्त करने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि सरकार के फैसले से सरकारी सेवकों का मनोबल गिरेगा।
बिहार सरकार ने दिया था 27 कैदियों को रिहा करने का आदेश
सरकार ने कारा अधिनियम में संसोधन के बाद 14 से 20 की साल काट चुके जेल में बंद 27 कैदियों की रिहाई का आदेश दिया था, जिसमें डॉन आनंद मोहन का नाम भी शामिल था। आनंद मोहन अपने बेटे और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के विधायक चेतन आनंद की शादी को लेकर 15 दिनों की पैरोल पर पहले से ही बाहर थे। पैरोल की अवधि पूरी होने के बाद वह 26 अप्रैल को सहरसा जेल लौटे थे।
IAS संघ ने भी आनंद मोहन की रिहाई पर जताई आपत्ति
आनंद मोहन की रिहाई के बिहार सरकार के इस फैसले पर केंद्रीय IAS संघ ने भी आपत्ति जताई थी। संघ ने ट्विटर पर लिखा, 'आनंद मोहन IAS जी कृष्णैया की नृशंस हत्या का दोषी है। कारा नियमों में बदलाव करके ऐसे दोषियों को रिहा किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है और वे सरकार के इस फैसले की निंदा करते हैं। सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। इस तरह के फैसलों से लोक सेवकों का मनोबल गिरता है।'
क्या था मामला?
5 दिसंबर, 1994 को गोपालगंज के दलित IAS अधिकारी और जिलाधिकारी जी कृष्णैया की भीड़ ने पिटाई की और फिर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। इस भीड़ को आनंद मोहन ने ही उकसाया था। इस मामले में आनंद और उसकी पत्नी लवली समेत 6 लोगों को आरोपी बनाया गया था। साल 2007 में पटना हाई कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और फांसी की सजा सुनाई। हालांकि, 2008 में इस सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया।