जब कश्मीरी पंडितों का हुआ विस्थापन, जानिए आज से 30 साल पहले क्या-क्या हुआ था
आजादी के बाद भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर धब्बा लगाने वाली जो सबसे बड़ी घटनाएं हुई हैं उनमें कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का विस्थापन भी शामिल है। आज ही की तारीख यानि 19 जनवरी को 30 साल पहले आतंकियों की धमकी के बाद कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का सिलसिला शुरू हुआ था जो कई सालों चला। कश्मीर पंडितों के विस्थापन और अपना घर छोड़ने के दर्द की पूरी कहानी क्या है, आइए आपको बताते हैं।
1987 के विधानसभा चुनाव से शुरू होती है कहानी
कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के कारणों को समझने के लिए कश्मीर में आतंकवाद के उभार की कहानी को जानना जरूरी है। दरअसल, 1987 में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए थे जिनमें जमकर धांधली हुई। इस चुनाव में सैयद सलाउद्दीन और यासिन मलिक समेत मौजूदा समय के कई आतंकी और अलगाववादी नेता भी चुनावी मैदान में उतरे थे। लेकिन धांधली के कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा और उन्होंने राजनीति का रास्ता छोड़ हथियार उठा लिए।
पाकिस्तान ने मौके का उठाया पूरा फायदा
पाकिस्तान ने इस मौके का पूरा फायदा उठाया और हथियार उठाने वाले कश्मीरियों को अपने यहां आतंकी ट्रेनिंग दी। पाकिस्तान ने कश्मीरियों के मन में इस्लाम के नाम पर जहर घोलना भी शुरू कर दिया, जिसका परिणाम कश्मीरी पंडितों के विस्थापन में हुआ।
आतंकियों ने दी पंडितों को कश्मीर छोड़ने की धमकी
पाकिस्तान से ट्रेनिंग हासिल करने के बाद जब आतंकी वापस कश्मीर आए तो उन्होंने कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़ने की धमकी देना शुरू कर दिया। 19 जनवरी, 1990 की रात को आतंकवादियों ने लाउडस्पीकरों पर भड़काऊ भाषण देते हुए कश्मीरी मुस्लिमों को उकसाया और पंडितों को कश्मीर छोड़ने की धमकी दी। बस इसी काली रात से कश्मीर से पंडितों का पलायन शुरू हो गया जो कई सालों तक जारी रहा और कश्मीर पर आज तक एक धब्बे की तरह है।
एक लाख से ऊपर कश्मीरियों को छोड़ना पड़ा था अपना घर
1990 के दशक में अपनी जान बचाने के लिए कश्मीर छोड़ने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या एक लाख के करीब बताई जाती है। कुछ रिपोर्ट्स में इनकी संख्या एक लाख 50 हजार से एक लाख 90 हजार तक बताई जाती है। वहीं जम्मू-कश्मीर सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1989 में आतंकवाद की शुरूआत के बाद से 2004 तक कश्मीर में 219 कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई। कश्मीर विवाद में पंडितों की इस त्रासदी पर बेहद कम चर्चा होती है।
कश्मीरी पंडितों को वापस बसाना भाजपा का बड़ा मुद्दा
अनुच्छेद 370 की तरह कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाना सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी का एक पुराना वादा रहा है। अनुच्छेद 370 पर तो भाजपा सरकार ने अपने वादा पूरा कर दिया है, लेकिन कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने पर मामला थोड़ा पेचीदा है। आश्वासन देते हुए सरकार की ओर से इस मुद्दे पर बयानबाजी तो खूब हुई है, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई खास तरक्की नहीं हुई।
कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने में सुरक्षा एक बड़ा मसला
कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाने में सबसे बड़ी समस्या उनकी सुरक्षा है। उन्हें बसाने के बाद उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सरकार की होगी और इसके लिए अलग कॉलोनी बनाने की बात भी सामने आई थी। लेकिन इसका खुद कश्मीरी पंडितों के कई संगठनों ने यह कहकर विरोध किया कि इससे समुदाय को निशाना बनाना आसान हो जाएगा। दिल्ली जैसी अच्छी जगहों पर बस चुके कई कश्मीरी पंडित खुद वापस घाटी में बसने के प्रति अनिच्छुक हैं।