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    भाजपा सांसद ने किया समलैंगिक विवाह का विरोध, क्या कहता है कानून और कोर्ट के फैसले?

    भाजपा सांसद ने किया समलैंगिक विवाह का विरोध, क्या कहता है कानून और कोर्ट के फैसले?
    लेखन मुकुल तोमर
    Dec 21, 2022, 08:49 pm 1 मिनट में पढ़ें
    भाजपा सांसद ने किया समलैंगिक विवाह का विरोध, क्या कहता है कानून और कोर्ट के फैसले?
    सुशील मोदी ने कहा कि भारतीय समाज समलैंगिक विवाह के लिए तैयार नहीं है

    समलैंगिक विवाह पर भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी की टिप्पणी से ये मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है। मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में ये मुद्दा उठाते हुए कहा कि समलैंगिक संबंध स्वीकार्य हैं, लेकिन समलैंगिक विवाह की मंजूरी देना समाज के नाजुक संतुलन को बिगाड़ सकता है और भारतीय समाज इसके लिए तैयार नहीं है। आइए आपको बताते हैं कि समलैंगिक विवाह पर कानून और कोर्ट के फैसले क्या कहते हैं।

    समलैंगिक संबंधों पर क्या कानून है?

    कुछ साल पहले तक भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 377 के तहत देश में समलैंगिक संबंध अपराध की श्रेणी में आते थे, लेकिन 6 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अपराध करार देने वाले धारा 377 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में समलैंगिक विवाह का कोई जिक्र नहीं किया था, जिसके कारण अभी तक इनकी स्थिति अधर में लटकी हुई है।

    क्या देश में अभी समलैंगिक विवाह नहीं हो रहे हैं?

    धारा 377 निरस्त होने के बाद से देश में समलैंगिक विवाह तो हो रहे हैं, लेकिन इन्हें कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है और सरकार इनका रजिस्ट्रेशन नहीं कर रही है। सबसे पहले दिसंबर, 2018 में उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में दो युवतियों ने समलैंगिक विवाह किया था, लेकिन जिला प्रशासन ने उनकी शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया और कहा कि उनकी शादी के रजिस्ट्रेशन के लिए कोई कानून नहीं है।

    समलैंगिक जोड़ों की क्या मांग है?

    धारा 377 रद्द होने के बाद से ही समलैंगिक जोड़े मांग कर रहे हैं कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन करके समलैंगिक विवाह को इसमें शामिल किया जाना चाहिए, ताकि वो अपनी शादी का इसके तहत कानूनी रजिस्ट्रेशन करा सकें। समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के लिए उन्होंने इस अधिनियम और विवाह से संबंधित अन्य कानूनों को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की है, ताकि वो भी सामान्य जोड़ों को मिलने वाले अधिकारों का लाभ उठा सकें।

    कोर्ट का समलैंगिक विवाह पर क्या कहना है?

    समलैंगिक विवाह पर कोर्ट्स के अलग-अलग फैसले आए हैं। 2011 में हरियाणा की एक कोर्ट ने दो महिलाओं के समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दे दी थी, वहीं इलाहाबाद हाई कोर्ट इससे संबंधित एक याचिका को खारिज कर चुका है। 12 जून, 2020 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था कि समलैंगिक जोड़े अभी शादी भले ही नहीं कर सकें, लेकिन उन्हें साथ यानि लिव-इन में रहने का अधिकार है।

    सुप्रीम कोर्ट का मामले पर क्या कहना है?

    इसी साल एक अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 'परिवार' की परिभाषा में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे समलैंगिक जोड़ों को भी शामिल कर दिया था, जिससे उन्हें सामान्य शादीशुदा जोड़ों जितने अधिकार मिलने का रास्ता साफ हो गया।

    समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए अभी कहां-कहां याचिकाएं लंबित हैं?

    देशभर की हाई कोर्ट्स में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाएं लंबित हैं। दिल्ली हाई कोर्ट और केरल हाई कोर्ट में मिलाकर इस संबंध में कुल नौ याचिकाएं लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट में भी इस संबंध में कम से कम चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं और इन पर सुनवाई चल रही है। पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर मामले में केंद्र सरकार की राय मांगी थी।

    केंद्र सरकार और जनता का समलैंगिक विवाह पर क्या रुख है?

    भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह के विरोध में है और कोर्ट में इसका विरोध कर चुकी है। उसका कहना है कि यह भारतीय मूल्यों के खिलाफ है और कोर्ट इतने बड़े सामाजिक मुद्दे पर अकेले फैसला नहीं ले सकता। जनता की बात करें तो 2021 में इप्सोस कंपनी के सर्वे में सामने आया था कि भारत के 44 प्रतिशत लोग समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के पक्ष में हैं, वहीं 18 प्रतिशत इसके खिलाफ हैं।

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