समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगी केंद्र सरकार की राय
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में शामिल करके समलैंगिक विवाह को मान्यता देने पर केंद्र सरकार की राय मांगी है। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने मामले में सरकार के साथ-साथ अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया को भी नोटिस जारी किया है। मामले पर चार हफ्ते बाद सुनवाई की जाएगी। सरकार और अटॉर्नी जनरल को इन चार हफ्तों के अंदर ही मामले में अपना जवाब दाखिल करना होगा।
दो समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दो समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये नोटिस जारी किए हैं। पहले याचिका हैदराबाद के रहने वाले सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने दायर की है। अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि वो पिछले 10 साल से रिलेशन में हैं और हाल ही में उन्होंने अपने परिजनों की मौजूदगी में शादी की थी। उन्होंने कहा कि अब वो चाहते हैं कि विशेष विवाह अधिनियम के तहत उनकी शादी को मान्यता दी जाए।
दो बच्चों का पालन कर रहे समलैंगिक जोड़े ने डाली है दूसरी याचिका
दूसरी याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और और उदय राज आनंद ने दाखिल की है जो पिछले 17 साल से समलैंगिक रिलेशन में हैं। अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि अभी वो दो बच्चों का पालन कर रहे हैं, लेकिन समलैंगिक विवाह को मान्यता दिलाने का कोई प्रावधान न होने के कारण उन दोनों का अपने दोनों बच्चों से कानूनी संबंध नहीं हो सकता। उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की है।
भारत में समलैंगिक संबंध मान्य, समलैंगिक विवाह नहीं
बता दें कि भारत में अभी समलैंगिक संबंध तो मान्य हैं, लेकिन समलैंगिक विवाहों को मान्यता नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2018 को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता को अवैध करार देने वाली IPC की धारा 377 को रद्द कर दिया था। हालांकि कोर्ट ने अपने फैसले में समलैंगिकों के विवाह का कोई जिक्र नहीं किया था, जिसके कारण अभी देश में समलैंगिक विवाह तो हो रहे हैं, लेकिन सरकार उनका रजिस्ट्रेशन नहीं कर रही है।
हाई कोर्ट्स में लंबित हैं समलैंगिक विवाह से संबंधित कई याचिकाएं
सुप्रीम कोर्ट के अलावा दिल्ली हाई कोर्ट और केरल हाई कोर्ट में भी विशेष विवाह अधिनियम, विदेशी शादी अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की कुल नौ याचिकाएं लंबित हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट तो इससे संबंधित एक याचिका को खारिज भी कर चुका है। इन मामलों में केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का विरोध किया था और कहा था कि यह भारतीय मूल्यों के खिलाफ है।