#NewsBytesExplainer: पूर्व CJI रंजन गोगोई के संविधान के मूल ढांचे पर दिए गए बयान पर क्या विवाद?
भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई ने सोमवार को राज्यसभा में अपना पहला भाषण दिया था। इस दौरान वे दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी सरकार (संशोधन) विधेयक, 2023 पर बोल रहे थे। उन्होंने भाषण में संविधान के मूल ढांचे का जिक्र किया, जिस पर खूब विवाद हुआ। कांग्रेस ने भाषण पर आपत्ति जताई तो सुप्रीम कोर्ट में भी इस पर चर्चा हुई। आइए समझते हैं कि गोगोई ने क्या बोला और विवाद क्यों हो रहा है।
गोगोई ने क्या कहा था?
रंजन गोगोई ने कहा था, "मैं चाहता हूं कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच संबंध के लिए फिर से संविधान के अनुच्छेद 105, 121, 122 देखने चाहिए। वहां इस बारे में स्पष्ट व्यवस्था है। भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल अंध्यअरिजुना ने केशवानंद भारती मामले पर एक किताब लिखी थी। उस किताब को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि संविधान के मूल ढांचे पर बहस हो सकती है। इसका कानूनी आधार है। इससे ज्यादा मैं और कुछ नहीं कहूंगा।"
दिल्ली विधेयक पर क्या बोले गोगोई?
विधेयक पर गोगोई ने कहा, "यह विधेयक सही है। मामला विचाराधीन नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जो मामला लंबित है, वह अध्यादेश की वैधता पर है। जो 2 प्रश्न संवैधानिक पीठ को भेजे गए हैं, उनका सदन में बहस से कोई लेना-देना नहीं है। संसद के पास दिल्ली में राज्य के विषयों यानी सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि से अलग विषयों पर भी कानून बनाने की शक्ति हैं। ये विधेयक संविधान के मूल ढांचे से कोई छेड़छाड़ नहीं करता।"
गोगोई के भाषण पर विवाद की वजह क्या है?
दरअसल, विपक्षी दल इस विधेयक को देश के संघीय ढांचे पर हमला मान रहे हैं और इसका विरोध कर रहे हैं। गोगोई के संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाने पर विपक्षी दलों का कहना है कि ये संविधान को खत्म करने के लिए भाजपा की चाल है और वह एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश के जरिए ऐसा कर रही है। विपक्षी दलों को आशंका है कि केंद्र सरकार राज्यों की शक्तियों को कमजोर कर सकती है।
गोगोई के भाषण पर क्या बोली कांग्रेस?
कांग्रेस महासचिव और संगठन प्रभारी केसी वेणुगोपाल ने कहा, ''क्या ये भारत के संविधान को खत्म करने की भाजपा की चाल थी? क्या वो समझती है कि लोकतंत्र, समानता, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और न्यायिक स्वतंत्रता ऐसे विचार हैं, जिन पर बहस करने की जरूरत है? जिन लोगों का संवैधानिक मूल्य में विश्वास नहीं है, वो संविधान पर हमला करने के लिए एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश का सहारा ले रहे हैं।"
क्या है संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत?
1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के मूल ढांचे का सिद्धांत दिया था। तब कोर्ट ने कहा था कि लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद और कानून के शासन जैसी कुछ मौलिक विशेषताओं में संसद संशोधन नहीं कर सकती है। कोर्ट ने कहा था कि संविधान के संशोधन के जरिये भी मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। हालांकि, संविधान में मूल ढांचे का कोई जिक्र नहीं है, ये अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा से जुड़ा विचार है।
मामले पर विशेषज्ञों का क्या कहना है?
BBC से बात करते हुए वकील वकासा सचदेव मेश्राम ने कहा, "अगर मूल ढांचे के सिद्धांत को खत्म कर दिया जाए तो कोई भी बहुमत वाली सरकार संविधान में बड़े बदलाव कर सकती है। अगर मूल ढांचे में बदलाव न करने का सिद्धांत खत्म कर दिया जाता है तो सरकार अनुच्छेद 25 या अनुच्छेद 19 जैसे अहम अनुच्छेदों में बदलाव कर सकती है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अहम अधिकारों में कटौती हो सकती है।''
गोगोई की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मामले पर सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने CJI डीवाई चंद्रचूड़ से कहा, "आपके माननीय सहकर्मी ने संविधान के बुनियादी ढांचे पर बहस की बात कही है।" इस पर CJI चंद्रचूड़ ने कहा, "सिब्बल जी, अगर आप किसी सहकर्मी का जिक्र करते हैं तो मौजूदा सहकर्मी का करना होगा। एक बार जब हम पद छोड़ दें तो हमारे विचार केवल राय होती है। वो बाध्यकारी आदेश नहीं रह जाते।"
कौन हैं रंजन गोगोई?
गोगोई असम के डिब्रूगढ़ में पैदा हुए थे। 2001 में गोगोई को गुवाहाटी हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। 2011 में वे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए। अक्टूबर 2018 में वे CJI बने थे। 2020 में उन्हें राज्यसभा में मनोनीत किया गया। 2019 में CJI रहते हुए गोगोई पर एक पूर्व कर्मचारी ने यौन दुर्व्यवहार का आरोप लगाया था। गोगोई की राज्यसभा सदस्यता पर भी विवाद हुआ था।