पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट का फैसला, कहा- विवाहित बेटी भी है अनुकंपा नौकरी की हकदार
अब तक आपने अमूमन यही देखा और सुना है कि अनुकंपा नौकरी का लाभ पत्नी या बेटे को ही दिया जाता है, लेकिन शनिवार को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि विवाहित बेटा अनुकंपा के आधार पर नौकरी का हकदार है तो विवाहित बेटी को इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। वैवाहिक स्थिति या लिंग के आधार पर सौतेला व्यवहार नहीं किया जा सकता।
पुलिसकर्मी की इकलौती विवाहित बेटी ने दायर की थीं याचिका
पंजाब पुलिस में नौकरी के दौरान जान गंवाने वाले एक पुलिसकर्मी की बेटी अमरजीत कौर ने याचिका दाखिल करते हुए बताया कि साल 2004 में उसका विवाह हुआ था। वो अपने पति और बच्चों को लेकर अपने माता-पिता के साथ रह रही थीं। वह इकलौती संतान होने के कारण सेवा के उद्देश्य से ऐसा कर रही थीं। पूरे परिवार में उनके पिता ही कमाई का जरिया थे। 2008 में ड्यूटी के दौरान हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई थीं।
साल 2009 में किया था अनुकंपा नौकरी के लिए आवेदन
अमरजीत कौर ने साल 2009 में अनुकंपा नौकरी के लिए आवेदन किया था। इसके पक्ष में तरनतारन CID की ओर से दी गई रिपोर्ट में बताया गया था कि परिवार के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है और केवल एक एकड़ खेती की भूमि है। इसके बाद भी साल 2015 में तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने यह कहते हुए आवेदन को ठुकरा दिया था कि वह विवाहित है और विवाहित बेटियों को इसका लाभ नहीं मिलता।
हाई कोर्ट ने अमरजीत कौर के पक्ष में सुनाया फैसला
पुलिस महानिदेशक के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि संविधान में सभी को बराबरी का अधिकार है और यदि विवाहित लड़का अनुकंपा के आधार पर नौकरी का हकदार है तो विवाहित लड़की को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है। कोर्ट ने पंजाब पुलिस को याचिकाकर्ता को एक महीने में अनुकंपा नौकरी का लाभ देने तथा आदेश की पालना के बाद कोर्ट को अवगत कराने का आदेश दिया हैं।
हाईकोर्ट ने फैसले के साथ कि यह अहम टिप्पणी
हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाने के साथ यह भी कहा कि यह आम धारणा बनी हुई है कि विवाह के बाद लड़की की जिम्मेदारी पति की होती है और वह पिता पर आश्रित नहीं होती। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि विवाह के बाद बेटा पिता पर आश्रित की श्रेणी में आता है तो बेटी भी समानता के अधिकार के तहत उसी श्रेणी में आती है। लिंग और वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव करना संविधान के खिलाफ है।