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    पेरारिवलन की 31 साल बाद रिहाई: राजीव गांधी हत्याकांड मामले में कब-क्या हुआ?
    पेरारिवलन की 31 साल बाद रिहाई: राजीव गांधी हत्याकांड मामले में कब-क्या हुआ?

    पेरारिवलन की 31 साल बाद रिहाई: राजीव गांधी हत्याकांड मामले में कब-क्या हुआ?

    लेखन भारत शर्मा
    May 18, 2022
    06:57 pm

    क्या है खबर?

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या मामले में दोषी और तीन दशक से उम्र कैद की सजा काट रहे एजी पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया है।

    इसके साथ ही पिछले सात सालों से दया याचिका के आधार पर रिहाई की उम्मीद लगाए बैठे पेरारिवलन को जेल से छुटकारा मिल गया है।

    आइए जानते हैं कि राजीव गांधी हत्याकांड में पेरारिवलन की क्या भूमिका थी और उन्हें रिहाई कैसे मिली।

    मामला

    क्या है राजीव गांधी की हत्या का मामला?

    बता दें कि 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में एक चुनावी रैली में महिला आत्मघाती हमलावर धनु के खुद को विस्फोट से उड़ा लिया था। इसमें राजीव गांधी सहित 14 लोगों की मौत हुई थी।

    इस मामले की जांच में सामने आया कि महिला आत्मघाती हमलावर ने नौ वोल्ट की बैटरी की मदद से धमाका किया था। इस बैटरी को पेरारिवलन ने ही खरीदा था।

    इसके बाद पुलिस ने 11 जून को पेरारिवलन को गिरफ्तार कर लिया था।

    सजा

    मामले में 26 दोषियों को सुनाई गई थी मौत की सजा

    विशेष जांच दल (SIT) ने इस मामले में पेरारिवलन, नलिनी श्रीहरन और उनके श्रीलंकाई नागरिक पति मुरुगन और संथन सहित 41 लोगों के खिलाफ आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (TADA) के तहत मामला दर्ज किया था। इनमें से 12 की धमाके में मौत हो गई थी।

    SIT के आरोप पत्र के आधार पर लंबी सुनवाई के बाद चेन्नई की कोर्ट ने जनवरी 1998 में पेरारिवलन सहित 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी।

    जानकारी

    सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी थी चार दोषियों की मौत की सजा

    26 दोषियों ने निचली अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती थी। इस पर सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने पेरारिवलन, नलिनी, मुरुगन और संथन की मौत की सजा को बरकरार रखने और अन्य की सजा उम्र कैद में बदलने का आदेश दिया था।

    खारिज

    राष्ट्रपति ने खारिज कर दी थी पेरारिवलन की दया याचिका

    सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सोनिया गांधी की सार्वजनिक अपील और राज्य सरकार की सिफारिश के आधार पर तमिलनाडु के राज्यपाल ने अप्रैल 2000 में नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था।

    उसके बाद शेष तीन दोषियों ने साल 2001 में राष्ट्रपति को दया याचिकाएं भेजी थी, लेकिन 11 साल बाद तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उनकी याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इससे तीनों के बचने की उम्मीद टूट गई थी।

    रोक

    मद्रास हाई कोर्ट ने लगाई फांसी पर रोक

    राष्ट्रपति के दया याचिकाएं खारिज करने के बाद तीनों दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में दया याचिका पर निर्णय में देरी का हवाला देते हुए पुनर्विचार चायिका दायर कर दी।

    इसको देखते हुए साल 2011 में मद्रास हाई कोर्ट ने उनकी फांसी पर रोक लगा दी।

    उसी दौरान तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने तीन दोषियों की मौत की सजा को कम करने का प्रस्ताव पारित कर दिया, लेकिन कानूनी अड़चनों से ऐसा नहीं हो सका।

    जानकारी

    सुप्रीम कोर्ट ने उम्र कैद में बदली मौत की सजा

    सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी, 2014 को तीनों दोषियों की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र द्वारा दया याचिका में 11 साल की देरी करने को अहम आधार मानते हुए पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्र कैद में बदल दिया था।

    मांग

    पेरारिवलन ने 2015 में राज्यपाल को रिहाई के लिए भेजी दया याचिका

    मामले में पेरारिवलन ने दिसंबर 2015 में राज्यपाल के पास दया याचिका भेजकर रिहाई की मांग की थी, लेकिन राज्यपाल ने उस पर कोई निर्णय नहीं किया।

    इसके बाद 2016 में उसने रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

    साल 2018 में पेरारिवलन के परिवार की गुहार के आधार पर तमिलनाडु सरकार ने पेरारिवलन सहित सात दोषियों को रिहा करने का निर्णय किया था और राज्यपाल से मंजूरी देने की मांग की थी।

    आदेश

    सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को दिया था निर्णय लेने का आदेश

    मामले में दिसंबर 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को मामले में जल्द फैसला लेने और अधिक देरी होने पर पेरारिवलन की रिहाई का आदेश देने की बात कही थी।

    इसको लेकर राज्यपाल ने 25 जनवरी, 2021 को दया याचिका को राष्ट्रपति के पास भेज दिया।

    इसके बाद मार्च 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की देरी को देखते हुए पेरारिवलन को जमानत पर रिहा कर दिया और तमिलनाडु सरकार को फटकार लगाई थी।

    सुरक्षित

    सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को सुरक्षित रखा फैसला

    गत 11 मई को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका को राष्ट्रपति के पास भेजने के राज्यपाल के फैसले को गलत और संविधान के खिलाफ बताया था।

    कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल के परामर्श से बंधे हैं और उनका फैसला संविधान के संघीय ढांचे पर प्रहार है। राज्यपाल के निर्णय लेने में सक्षम नहीं होने पर उन्हें राज्य मंत्रिमंडल की सलाह का पालन करना होता है। इसके बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

    रिहाई

    सुप्रीम कोर्ट ने दिया पेरारिवलन की रिहाई का आदेश

    मामले में जस्टिस एल नागेश्वर राव और बीआर गवई की पीठ ने बुधवार को फैसला सुनाते हुए कहा, "जेल में पेरारिवलन के संतोषजनक आचरण, उसके मेडिकल रिकॉर्ड, जेल में उसके द्वारा हासिल की गई शैक्षणिक योग्यता और दिसंबर 2015 से तमिलनाडु के राज्यपाल के समक्ष अनुच्छेद 161 के तहत दायर उनकी दया याचिका के लंबित होने के कारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए अनुच्छेद 142 के तहत हम याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश जारी करते हैं।"

    खुशी

    पेरारिवलन ने कोर्ट के आदेश पर जताई खुशी

    रिहाई के आदेश के बाद पेरारिवलन ने अपनी मां अर्पुथम्मल और रिश्तेदारों से मुलाकात की और फैसले पर खुशी जताई।

    इस दौरान उन्होंने कहा, "मेरा दृढ़ विश्वास है कि मृत्युदंड की कोई आवश्यकता नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों सहित कई न्यायाधीशों ने ऐसा कहा है और कई ऐसे उदाहरण हैं। हर कोई इंसान है।" उन्होंने कहा, "मैं अभी बाहर आया हूं। कानूनी लड़ाई को 31 साल हो चुके हैं। मुझे थोड़ी सांस लेनी है। मुझे कुछ समय दें।"

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