अयोध्या विवाद की किस्मत तय करने जा रहे तीन मध्यस्थों के बारे में जानें
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अयोध्या जमीन विवाद पर सुनवाई करते हुए मामले को आपसी सहमति से सुलझाए जाने का फैसला दिया। कोर्ट ने इसके लिए तीन तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति भी घोषित की है। समिति में पूर्व न्यायाधीश फकीर मोहम्मद इब्राहिम खलीफुल्ला, 'आर्ट ऑफ लिविंग' के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल हैं। आइए आपको अयोध्या विवाद की तकदीर तय करने जा रहे इन तीन सदस्यों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं।
वकील से सुप्रीम कोर्ट के जज तक का सफर
समिति के चेयरमैन जस्टिस खलीफुल्ला तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के कराईकुडी से आते हैं। वह स्वर्गीय जस्टिस एम फकीर मोहम्मद के बेटे हैं। उन्होंने 20 अगस्त, 1975 में एक वकील के तौर पर अपने सफर की शुरुआत की थी और श्रम कानूनों पर अपना पक्ष रखते थे। वह साल 2000 में मद्रास हाई कोर्ट के जज बने। इस दौरान उन्होंने वैदिक ज्योतिष को वैज्ञानिक विषय के तौर पर भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने का महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था।
BCCI पर ऐतिहासिक फैसला देने वाली बेंच का हिस्सा थे जस्टिस खलीफुल्ला
सितंबर, 2011 में उन्हें जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। यहां से 2 अप्रैल, 2012 को उनकी सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज पदोन्नति हो गई। सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान वह मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर के साथ उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) की संरचना, प्रबंधन और प्रशासन में ऐतिहासिक बदलाव से संबंधित अहम फैसला सुनाया था। वह 2011 में कुछ समय के लिए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश भी रहे थे।
श्रीराम पंचू को सबसे अच्छा मध्यस्थ बता चुकी है सुप्रीम कोर्ट
समिति के दूसरे सदस्य वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू तमिलनाडु के चेन्नई से आते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें देश के सबसे अच्छे मध्यस्थों में से एक बताया था। वह कई नागरिक और व्यावसायिक विवादों में मध्यस्थता कर चुके हैं। असम और नागालैंड के बीच 500 वर्ग किलोमीटर जमीन के विवाद और मुंबई में पारसी समुदाय को लेकर हुए एक सार्वजनिक विवाद में उन्होंने मध्यस्थता की थी। वह राष्ट्रीय मध्यस्थ संघ के अध्यक्ष हैं। उन्होंने दो किताबें भी लिखी हैं।
श्री श्री रविशंकर का अयोध्या मसले से पुराना नाता
समिति के तीसरे सदस्य 'आर्ट ऑफ लिविंग' के संस्थापक श्री श्री रविशंकर का जन्म तमिलनाडु के पपानासम में हुआ था। वह एक आध्यात्मिक गुरु हैं और चिंता और हिंसा मुक्त दुनिया की वकालत करते है। श्री श्री पहले भी अपने स्तर पर अयोध्या विवाद को कोर्ट से बाहर सुलझाने की कोशिश कर चुके हैं। पिछले साल उन्होंने कहा था कि विवाद का समाधान केवल विवादित स्थल पर हिंदू और मुस्लिमों के सहयोग से राम मंदिर बनाकर किया जा सकता है।
श्री श्री रविशंकर के नाम पर ओवैसी ने जताई आपत्ति
श्री श्री रविशंकर का नाम मध्यस्थों में होने पर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आपत्ति जताई है। औवेसी की आपत्ति श्री श्री के पुराने बयान के कारण है जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर मुसलमान अयोध्या पर अपना दावा नहीं छोड़ते हैं तो भारत सीरिया बन जाएगा। उन्होंने कहा कि बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट किसी निष्पक्ष व्यक्ति को समिति का हिस्सा बनाती। हिंदू पक्ष के निर्मोही अखाड़े ने भी श्री श्री के नाम पर आपत्ति जताई है।