#NewsBytesExplainer: अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश मामले में भाजपा को हराने के लिए क्या रणनीति बनाई है?
केंद्र सरकार ने दिल्ली में नौकरशाहों की पोस्टिंग और ट्रांसफर को लेकर एक अध्यादेश जारी किया है, जिसे दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने गैर-संवैधानिक करार दिया है। मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्ष के नेताओं को एकजुट करने की कवायद में जुटे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार इस अध्यादेश को कानून बनाने के लिए राज्यसभा में लाती है तो विपक्ष को उसका साथ देना चाहिए। आइए जानते हैं कि केजरीवाल क्या-क्या कर रहे हैं।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 11 मई को अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग से जुड़े अधिकार दिल्ली सरकार को दे दिए थे। इसके बाद मामले में केंद्र ने 19 मई को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 जारी किया। इसके तहत दिल्ली में नौकरशाहों की ट्रांसफर और पोस्टिंग के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण बनाया गया है, जिसमें दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव भी होंगे।
केंद्र की भाजपा सरकार को घेरने के लिए केजरीवाल की क्या योजना?
AAP संयोजक केजरीवाल अध्यादेश को लेकर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को घेरने के लिए विपक्ष को एकजुट करेंगे। वह कल यानी 23 मई को कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस (TMC) प्रमुख और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी से मिलेंगे। इसके बाद वह मुंबई में 24 मई को शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे और 25 मई को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार से मिलेंगे। केजरीवाल मामले में अन्य विपक्षी पार्टियों के अध्यक्षों से भी मुलाकात कर सकते हैं।
केजरीवाल ने नीतीश के साथ मिलकर बनाई रणनीति
केजरीवाल ने रविवार को दिल्ली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से भी मिले, जो आगामी लोकसभा चुनाव में विपक्ष की एकजुटता के लिए काम कर रहे हैं। केजरीवाल ने उनके साथ मिलकर रणनीति बनाई। इसके बाद केजरीवाल ने कहा, "अगर विपक्ष राज्यसभा में केंद्र के अध्यादेश को पारित होने से रोकने में सफल रहा तो यह 2024 के आम चुनावों से पहले एक संदेश देगा कि भाजपा केंद्र की सत्ता से बेदखल होने वाली है।"
केजरीवाल को मिला कांग्रेस का समर्थन
कांग्रेस ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ राज्यसभा में AAP को समर्थन देने की घोषणा की है। कांग्रेस के राज्यसभा में 31 सांसद हैं, जिससे केजरीवाल की विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम को और बल मिलेगा। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों ने NDTV को बताया कि पार्टी संसद में इस अध्यादेश को कानून बनाने के लिए लाए जाने वाले विधेयक का विरोध करेगी। मामले में भाजपा का विरोध करने के लिए विभिन्न पार्टियों के कुल 68 सांसद तैयार हैं।
केजरीवाल को राज्यसभा में कितने सांसदों का समर्थन मिलने की उम्मीद?
राज्यसभा में कांग्रेस के 31 सांसदों के अलावा नीतीश की JDU और तेजस्वी की RJD के पास कुल 11 सांसद हैं। इसके अलावा AAP, TMC, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और NCP को मिलाकर ऐसे सांसदों की कुल संख्या 61 तक पहुंच जाती है, जिन्होंने केजरीवाल के अध्यादेश के खिलाफ केंद्र सरकार के विरोध की घोषणा की है। केजरीवाल को इस लड़ाई में वाम पार्टियों का भी साथ मिल सकता है, जिनके राज्यसभा में कुल 7 सांसद हैं।
केजरीवाल को इन पार्टियों का भी मिल सकता है साथ
केजरीवाल को राज्यसभा में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के 10, भारत राष्ट्र समिति (BRS) के 7, समाजवादी पार्टी (SP) के 3, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के 2 और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के एक सांसद का समर्थन मिलने की उम्मीद भी है।
अंत में राज्यसभा में क्या बन सकती है स्थिति?
अगर ये सभी पार्टियां AAP का समर्थन करती हैं तो उसके पास राज्यसभा में अध्यादेश के खिलाफ कुल 91 सांसद हो जाएंगे, जो भाजपा के 93 सांसद से 2 कम हैं। हालांकि, भाजपा को अपने सांसदों के अलावा कुछ सहयोगी पार्टियों का समर्थन भी प्राप्त है। इसके अलावा बीजू जनता दल (BJD) जैसी कुछ सरकार से बाहर पार्टियां भी सरकार के समर्थन में वोटिंग करती आई हैं। ऐसे में केजरीवाल के लिए भाजपा सरकार को पटखनी देना बेहद मुश्किल होगा।
केजरीवाल और क्या करेंगे?
केजरीवाल मामले में राजनीतिक के साथ-साथ कानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे और AAP सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियां खत्म होने के बाद 1 जुलाई को अध्यादेश के खिलाफ याचिका दाखिल करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस बात की संभावना है कि कोर्ट केंद्र के अध्यादेश को गैर-संवैधानिक बता कर रद्द कर दे क्योंकि सेवाओं पर दिल्ली सरकार के अधिकार का पिछला फैसला 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने सुनाया था। अगर ऐसा होता है तो ये केजरीवाल की बड़ी जीत होगी।